श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय 8 आरंभ
समुद्र मंथन से अमृत अन्य रत्नों की उत्पत्ति एवं मोहनी अवतार की कथा
श्री सुखदेव जी का राजा परीक्षित से बोले हे राजन् कालकूट 20 को शिवजी पान कर गए तब जीवो को शांति मिली उसके बाद देवता एवं देशों ने पुनः समुद्र का मंथन आरंभ किया दूसरी बार कामधेनु गो उत्पन्न हुए उसे दैत्यों ने लेना चाहा यह देखकर भगवान श्री नारायण बोले है देखती हूं शास्त्रों में लिखा है कि किसी भी शुभ कार्य की स्थित हेतु ब्राह्मण एवं परिजनों को दान अवश्य देना चाहिए जिससे गांव दान सर्वोत्तम माना गया है पता कामधेनु को ऋषि यों को समर्पित कर देना चाहिए अब समुद्र मंथन से जो भी रत्न निकलेगा उसमें से एक देशों को एक देवताओं के भाग में आएगा समुद्र मंथन में तीसरी बार उच्च श्रावण नामक घोड़ा निकला जिसे राजा बलि ने ले लिया चौथी बार दांत वाला श्वेत रंग का यह रात हाथी निकला जिसे देवराज इंद्र ने ले लिया पांचवीं बार अत्यंत सुंदर पोस्ट मणि निकली जिसे देखकर श्री नारायण बोले इसे हम लेंगे देवता और दैत्य ने प्रसन्नता पूर्वक बामणी त्रिलोकीनाथ को दे दी छठवीं बार पराजित नामक वृक्ष की उत्पत्ति हुई उसे देवताओं में ले जाकर देवलोक में स्थापित कर दिया फिर रंभा नामा की अति रूपवती अप्सरा प्रगट हुई जो किसी को ना मिली वह अपनी नृत्य एवं गायन से हर किसी का मनोरंजन करने हेतु उत्पन्न होती थी आठवीं बार में समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुए उसके दाएं हाथ में कमल तथा बाएं हाथ में वरमाला थी उसे वस्त्र आभूषण से अलंकृत सुंदर रूप को देखकर देवता एवं व्यक्तियों ने समुद्र मंथन छोड़ दिया और उन्हें प्राप्त करने की चेष्टा रखने लगे तब लक्ष्मी जी बोली तुम लोग आपस में मत लड़ो जिस रूप से में संपूर्ण गुण विद्यमान होंगे मैं उसी के पास रहूंगी बलपूर्वक कोई भी मुझे अपने पास नहीं रख सकता यह काका लक्ष्मी जी पुनः बोली तुम लोग पंक्ति बना कर बैठ जाओ जिसमें माय योग्य समझो उसके गले में वरमाला डाल कर उसका वाना कर लूंगी लक्ष्मी जी के वचनों को सुनकर देवता एवं देश के अलग-अलग पंक्ति बना कर बैठ गए तब उन्होंने लक्ष्मी जी के भक्तों की तरफ दृष्टि डालकर कहा यह लोग शक्तिशाली तो है किंतु घमंडी एवं दुराचारी अतः मैं उसके पास नहीं रह सकती इसका राज्य सदैव इस्तीर भी नहीं रहता फिर उनकी दृष्टि देवताओं की तरफ हुई देवताओं को देखकर वे कहने लगे देवता लोग अत्यंत दुर्बल एवं कमजोर हाय जब भी इन पर विपत्ति आती है तब यह भागकर नारायण जी की शरण में जाते हैं तब यह स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकते तो मेरी रक्षा कैसे करेंगे इसी प्रकार ऋषि मुनि एवं अन्य गुण दोष का वर्णन करते हुए श्री नारायण के सम्मुख गए और उन्होंने देखकर मन मन मुस्कुराते हुए बोली है सर्वगुण संपन्न है आता ही नहीं के चरण कमलों की सेवा करके अपना जीवन धन्य करूंगी किया का कर उन्होंने श्री नारायण के गले में वरमाला डाल दी इतनी कथा सुनने के बाद समुद्र मंथन के आग का हाल वर्णन करते हुए सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित पुनः देवता एवं देवताओ ने समुद्र मंथन आरंभ किया तब रविवार कन्या के रूप में वर्णित उत्पन्न हुई जिससे देशों ने ले लिया उसके बाद हाथ में अमृत कलश लिए हुए धनवंतरी वेद प्रगट हुए उन्हें देखकर देवता एवं देशों की प्रशंसा की सीमा ना रही बलशाली देवताओं ने धनवंतरी भारत के हाथ से अमृत कलश छीन लिया या देखकर देवताओं ने कहा तुम लोग का धर्म कर रहे हो अमृत में आधा भाग हमारा है किंतु देशों ने उसके वचनों को अनसुना कर दिया और अमृत के लिए आपस में लड़ने लगे उसी समय निराश हो चुके देवताओं के पास श्री नारायण जी आकर बोले हे देवताओं तुम चिंता मत करो मैं अपनी माया राज कर तुम लोग को सारा अमृत पिला दूंगा इसी तरह से देवताओं को धीरज इन देकर उन्होंने एक द्वितीय सुंदरी का रूप धारण कर क्यों के पास गए मोहिनी का रूप ऐसा था जिसे देखकर ऋषि मुनि अशोक देवता एवं बड़े-बड़े तपस्वी भी मोहित हो जाए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Skandha Chapter 8 Beginning
The origin of nectar and other gems from the churning of the ocean and the story of Mohini Avatar
Shri Sukhdev ji's king said to Parikshit, O king, Shiva drank on Kalkut 20, then the creatures got peace, after that the gods and the countries again started churning the ocean. I have said that it is written in the scriptures that for the status of any auspicious work, donations must be given to Brahmins and relatives, so that village donation is considered the best, know Kamdhenu should be dedicated to the sage, now whatever gem will emerge from the churning of the ocean. In the ocean churning, a horse named Uchha Shravan came out, which was taken by King Bali. Fourth time it turned out to be a white toothed elephant, which was taken by Devraj Indra, for the fifth time a very beautiful post gem turned out. Seeing whom Shri Narayan said, we will take it, the deity and the demon happily gave Bamni to Trilokinath, for the sixth time a tree named Haraar was born, taking it to the gods and established it in Devlok, then Rambha Nama's very beautiful Apsara appeared, who did not know anyone. got that up Ni was born to entertain everyone by dancing and singing. In the eighth time, Lakshmi ji appeared from the churning of the ocean, she had a lotus in her right hand and a garland in her left hand. Seeing her beautiful form decorated with clothes and ornaments, the gods and people churned the ocean. Left and started trying to get them, then Laxmi ji said, do not fight amongst you guys, in which way I will have all the qualities, I will stay with him, no one can keep me by force, this Kaka Lakshmi ji again said you guys Sit in a row in which I consider myself worthy, by putting a garland around his neck, I will make him want, listening to the words of Lakshmi ji, the deities and the country sat in separate rows, then they looked towards the devotees of Lakshmi and said these people. He is powerful but arrogant and mischievous, so I cannot stay with him, his kingdom does not always remain even though his eyes turned towards the gods, seeing the gods, they started saying woe to the deities, very weak and weak, whenever there is a calamity on them, then this Run away and go to the shelter of Narayan ji, then this If you cannot protect yourself, then how will you protect me, similarly the sage went in front of Shri Narayan describing the sages and other virtues and he smiled and said that he is full of all virtues and does not come, by serving his lotus feet. After listening to this story, Sukhdev ji said, O King Parikshit, again the gods and gods started churning the ocean, after listening to such a story, Sukhdev Ji started churning the ocean. The described arose from which the countries took it, after that the Dhanvantari Vedas with the nectar urn in their hands appeared, seeing them, there was no limit to the praise of the gods and the countries, the mighty gods snatched the nectar urn from the hands of Dhanvantari India or seeing the gods said you guys Half of the nectar is ours, but the countries ignored his words and started fighting amongst themselves for the nectar, at the same time, Shri Narayan ji came to the disappointed deities and said, oh God, don't you worry, I am my illusion. I will make you people drink all the nectar by ruling like this After giving patience to the gods, he took the form of a second beauty and went to Mohini, seeing that the form of Mohini was such that the sage Ashok Devta and great ascetics would be fascinated.
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