श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 8

श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 8 आरंभ

नरसिंह अवतार एवं श्री राम कश्यप का वध देवर्षि नारद बोले हे धर्मराज युधिष्ठिर पहलाद द्वारा ज्ञान का उपदेश प्राप्त कर समस्त बालक गुरु की बताई विद्या को त्याग कर श्री नारायण के नाम का उच्चारण ऊंचे स्वर में करने लगे उसी समय शुभ एवं अमृत आ गए बालकों की अदा सा देखकर वह भयभीत हो गए और खुशी समय किरण कश्यप के पास जाकर सारा वृत्तांत कहा अपने पुत्र पहलाद एवं अन्य सूट बालकों में नारायण के प्रति ऐसी प्रति बड़ी देखकर हिरण कश्यप ने निश्चय किया कि पहलाद को मार डालना कि उचित है और उसने विरोध करके कहा अरे दुष्ट बालक मैंने तुझे दंड देखकर समझा कि नारायण का नाम ना लेगा परंतु तू पोयम तो बिगड़ ही रहा है साथ में असुर बालकों को भी पथभ्रष्ट कर रहा है तूने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है नारायण का नाम जप कर तू मेरा शत्रु बन गया है मुझे मालूम हो गया कि तेरी मृत्यु के दिन निकट आ गई है तुझे मैं अपने हाथ को मार दूंगा देखता हूं इस साल के हाथ से तेरा नारायण तेरी रक्षा कैसे करता है पिता के वचनों को सुनकर पहलाद ने कहा है पिताश्री जिस सर्वशक्तिमान से संपूर्ण जगत के प्राणी है उसी की भक्ति से तुम्हारा राज्य स्थित है यही आदि पुरुष मेरी रक्षा करेंगे अब तीनो लोक के देवता तान किन्नर एवं यश को अपनी अधीन समझ रहे हैं यह भी श्री नारायण की कृपा ही है अतः है पिता महाराज आप राक्षसी स्वभाव एवं धर्म कर्म का त्याग कर मन एवं इंद्रियों को वश में रखकर आदि पुरुष श्री हरि नारायण के चरण कमल में स्वयं को अर्पित कर दो के परम कृपालु तुम्हारे समस्त पापों को क्षमा करके अब हाय गति प्रदान करेंगे और भाव रूपी अपार सागर से पार कर देंगे पहलाद के इस प्रकार के उपदेश को सुनकर हिरण कश्यप की आंखें पोर्ट से अधिकता से सुलगने लगी चेहरा अत्यंत भयानक हो गया और कोर्ट मिश्रित स्वर में बोला अरे मूर्ख तू मुझे ₹20 को ज्ञान का उपदेश दे रहा है अब तक मैं तेरे वचनों का नादान बालक समझकर क्षमा करता रहा किंतु पानी सिर से ऊपर उठने लगा है तू समझने वाला नहीं है यह कह कर वह अपने हाथों मे खड़क लेकर सिहासन से कूद पड़ा और आंखें लाल करके बोला जिस नारायण का तू दिन-रात ध्यान करता है वह नारायण इस खंभे में भी है अगर मैं तो बुला उसे आकर वहां तेरी रक्षा करेगा हिरण कश्यप उपरोक्त वचन का कर पहलाद को मारने के लिए जियो ही हड़प ऊपर उठाया उसी छाड़ एक घनघोर शब्द हुआ उस शब्द से वहां उपस्थित समस्त देश के भय से थरथर कांपने लगे कुछ तो दलहन मूर्छित हो गये उस भयानक गर्जना के साथ खंबा फट गया तथा श्री हरि नारायण नर्सिंग शरीर मनुष्य का तथा मूल सिंह का अवतार धारण कर प्रकट हुए उन्हें देखते ही भय से हिरण कश्यप के हाथ से खड़क छटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा नरसिंह भगवान ने एक बार फिर बयाना गर्जना की जिसे तीनो लोक गूंज उठा उनके पीले नेत्र भयंकर दाढ़ी तथा उसके गर्दन के बाद उन्हें और अधिक भयंकर बना रहे थे उन्होंने 10 योजन विस्तार कर सके धारण किया था इस अद्भुत स्वरूप को देखकर मन ही मन किरण कश्यप विचार ने लगा कि ऐसा अद्भुत रूप मैंने कभी ना देखा था इससे उससे ब्रह्मा जी का दिया हुआ वरदान याद आने लगा उन्होंने कहा था कि तू ना तो मनुष्य से मरेगा और ना देवताओं से नाराज घर से तथा गंधर्व किन्नरों के हाथों भी ना मारेगा ना पशु से और ना पक्षी से अतः ना तो यह मनुष्य है ना ही यह पशु उन्होंने कहा था ना तू रात में मरेगा ना दिन में और इस समय संध्या का समय है ऐसे प्रतीत हो रहा है कि ब्रह्मा जी का वचन सत्य होगा यह मेरा काल बनकर उपस्थित हुए है किंतु फिर या विचार किया कि हो ना हो महामाया भी विष्णु कि मुझे मारने के लिए प्रकट हुआ है मैं अत्यंत बलशाली हूं यह मेरा क्या बिगाड़ लेगा यह कह कर वह अपनी कदर लेकर नरसिंह भगवान पर टूट पड़ा किंतु नरसिंह भगवान ने उसे इस तरह पकड़ लिया जैसे सर चूहे को पकड़ता है और हुंकार करते हुए उसकी गदा छीनकर एक और उछाल दिया और भयंकर 888 करते हुए आपने जांघों पर लिटा लिया तत्पश्चात बोले थे दैत्य राज तुझे ब्रह्मा जी का वरदान मिला है कि ना तू मनुष्य से मरेगा ना पशु से तो मेरा यह स्वरूप ना पशु का है और ना ही मनुष्य का है और ना ही देवता किन्नर यक्ष आदि का नारा है ना दिन है इस समय तो आकाश में भी नहीं है पृथ्वी पर भी नहीं है ना मैं घर के बाहर है ना भीतर क्योंकि तेरा शरीर मेरे जहां पर भवन के दरवाजे पर है और तुझे ना अस्त से मारा रहा हूं और ना सत्र से यात्रा पर उन्होंने अपने नाखूनों से उनका पेट हार डाला और भयंकर गर्जना करने लगा उसके 85 से अस्पताल में लगे समस्त ब्राह्मण कहां पर है देवताओं को अत्यंत चिंता हुआ किसी को उसके जम्मू जाने का सहारा ना हुआ सभी देवताओं ने जाकर ब्रह्मा जी से कहा देवताओं के वचन सुनकर ब्रह्मा जी ने जाकर नरसिंह भगवान की सूची के सभी उनका क्रोध शांत ना हुआ सब रूद्र भगवान से ज्यादा उसकी स्थिति कि हे भगवान आपके क्रोध का समय पर लाइट के लिए होता है यह सर्वशक्तिमान प्रभु अभी यह समय नहीं है आया है आपने देश के राज किरण कश्यप को मारने के लिए स्त किया वह मारा जा चुका है उसके पश्चात वरुण कुबेर विद्याधर यक्ष किन्नर द्वारा स्तुति करने पर भी उनका क्रोध शांत ना हुआ तब वे आपस में विचार कर करने लगे नरसिंह अवतार केवल भक्त पहलाद की रक्षा के लिए श्री नारायण से धारण किया है उसी के विनती करने पर उनका प्रोत्साहन होगा तब वह पहलाद से जाकर बोले हे भक्त पहलाद नरसिंह भगवान का क्रोध शांत कराने में तुम्हें तुम्हारी समर्थन हो देवताओं के वचन सुनकर पहलाद जी बहुत अच्छा कह कर भगवान नरसिंह के पास गए और दंडवत प्रणाम करके उनके चरणों में अपना सिर रख दिया

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shrimad Bhagwat Katha Purana Seventh Skandha Chapter 8 Beginning

Narsingh avatar and killing of Shri Ram Kashyap Devarshi Narad said, O Dharmaraja Yudhishthira after receiving the teachings of knowledge by Pahlada, all the children renounced the teachings of the guru and started reciting the name of Shri Narayan in a loud voice, at the same time auspicious and nectar came to the children. Seeing this, he got frightened and went to Kiran Kashyap at the time of happiness and told the whole story, seeing such a big copy towards Narayan among his son Pahlada and other suit children, Hiran Kashyap decided that it was proper to kill Pahlada and he protested. Said oh wicked child, seeing you punished, I understood that you will not take the name of Narayan, but you are getting spoiled, along with the demonic children are also misleading you, you have violated my orders, you have become my enemy by chanting the name of Narayan. I have come to know that the day of your death is near, I will kill you with my hand, see how your Narayan protects you from this year's hand, listening to the words of the father, Pahlada has said, Father, by whom the whole world is almighty. Your kingdom is established by the devotion of Him who is a living being. Men will protect me, now the gods of all the three worlds are considering Tan, Kinnar and Yash as their subject, this is also the grace of Shri Narayan, so it is Father, Maharaj, you have renounced the demonic nature and religious deeds, keeping the mind and senses under control. Offer yourself at the lotus feet of Hari Narayan, that the Most Merciful will forgive all your sins and will now give you hi speed and will cross the immense ocean of emotion, listening to this kind of teaching of Pahlada, the eyes of Deer Kashyap will be more than the port. The smoldering face became very terrible and the court said in a mixed voice, oh fool, you are giving me ₹ 20 teachings of knowledge, till now I have been forgiving of your words as an innocent child, but the water is starting to rise above the head, you are not going to understand Having said this, he jumped from the throne with a crack in his hands and said with red eyes, the Narayan whom you meditate day and night, that Narayan is also in this pillar, if I call him, he will come and protect you there Hiran Kashyap above words To kill Pahlad, he only grabbed it and raised it; From that word there was a loud word. Yes, the whole country started trembling with fear, some of the pulses became unconscious, with that terrible roar, the pillar exploded and Shri Hari Narayan appeared in the form of a nursing body of a human being and the original lion appeared in the hands of Deer Kashyap with fear. Lord Narasimha fell on the earth after being knocked down, once again roared earnestly which the three worlds reverberated after his yellow eyes were making him more fierce after his fierce beard and his neck, he could extend 10 yojanas and wore this wonderful form. Seeing this, Kiran Kashyap thought in his mind that I had never seen such a wonderful form, because of this he started remembering the boon given by Brahma ji, he had said that you will neither die from human beings nor from home angry with gods and Gandharva eunuchs. He will not kill neither animal nor bird, so neither it is a human nor this animal, he had said that neither you will die in night nor in day and at this time it is evening time, it seems that the words of Brahma ji It will be true that he has appeared as my time, but then I thought that Mahamaya is also Vishnu's me. I have appeared to kill him. Gave one more jump and made you lie on your thighs while doing a terrible 888, after that you said, the demon king, you have got the boon of Brahma ji that neither you will die from man nor animal, so this form of mine is neither animal nor human and Neither is the slogan of the deity Kinnar Yaksha etc. nor is it day, at this time it is not even in the sky, it is not even on the earth, neither I am outside the house nor inside because your body is at the door of the building where I am and you have not been hit by the set. Where are all the brahmins engaged in the hospital since 85, the gods were very worried, no one had any help for him to go to Jammu, all the gods went After hearing the words of the gods, Brahma ji told Brahma ji, all his anger in the list of Lord Narasimha did not calm down. His position is more than that of Rudra God that oh Lord your anger is for the light on time, this almighty Lord has not yet come, this time has come, you tried to kill the king of the country, Kiran Kashyap, he has been killed, after that Varun Kuber Even after praising Vidyadhar Yaksha Kinnar, his anger did not subside, then they started thinking among themselves. O devotee Pahlada Narasimha, may you have your support in pacifying the anger of God, listening to the words of the gods, Pahlada ji said very well and went to Lord Narasimha and bowed down and laid his head at his feet.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ