समुद्र मंथन का वृतांत श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् भगवान कच्छ के एक लाख योजन जोड़ी पीठ पर मंदराचल पर्वत स्थिर हो गया तत्पश्चात वासु की नाक को बुलाकर लाने हेतु श्री नारायण ने देवताओं को कहा देवताओं ने जाकर व सुना को भगवान के आदेश को का सुनाया तब वह बोला है देवगढ़ मंदराचल पर्वत के चारों ओर लिपटे से मेरा तन को अत्यंत कष्ट होगा उसके वचनों को सुनकर देवताओं ने कहा तुमको भगवान श्री हरि नारायण ने बुलाया है और समुद्र मंथन में अमृत प्राप्त होने पर उसमें तुम्हें भी भाग दिया जाएगा तब उसे नेत्री रस्सी बांधकर यह स्वीकार किया मंथन कार्य आरंभ करने से पहले भगवान श्री हरि नारायण के कहा यह देवता एवं दे तो सर्वप्रथम विदेश्वर गणेश की पूजा करके उसे किसी प्रकार का इतना उत्पन्न ना हो और तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो उन्होंने वैसा ही किया तत्पश्चात श्री हरि ने देवताओं को वास्तविक नहा के सिर के तरफ और नीतियों को पूछा की तरफ पकड़कर समुद्र मंथन करने का आदेश दिया किंतु अभिमानी एवं बलशाली असुरों ने कहा वास्तविक भाग के अशुद्ध उसको हम क्यों पकड़े हम सिर की तरफ रहेंगे देवताओं ने इस प्रकार के वचनों को सुनकर भगवान श्री नारायण ने मन मन मुस्कुराते हुए देशों को पूछ की तरफ करने का आदेश दिया समुद्र मंथन समय जब देते दान जोर लगाकर वासविक नाक के सिर वाले भाग को खींचने उसी समय वासवी के मुख से भयंकर पुकार युक्त ज्वाला निकलने लगे तब देवताओं ने उसकी तरफ पकड़ने की बात कहने लगे किंतु भगवान वासुदेव ने यह कह कर उन्हें चुप करा दिया कि तुम लोग ने स्वेच्छा से सिर के तरफ रहना स्वीकार किया है इसलिए अपने कथन पर अटल रहो समुद्र मंथन मंथन बहुत समय व्यतीत हो गया देवता एवं देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी तब श्री नारायण ने उन्हें धीरज मानते हुए उत्साहित किया तत्पश्चात कुछ समय बाद समुद्र से फलाहार 20 निकाल उसकी जो आलम से तीनों लोग के प्राणी व्याकुल होने लगे चारों दिशाओं में अंधकार जाने लगा तब भगवान श्री नारायण देवता एवं देवताओं से खा हे प्रभु हे सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें इस जहर को रखने का कोई उपाय करें अन्यथा इसके भाव से हम सब नष्ट हो जाएंगे तब उन्होंने शिवजी की स्तुति करने का आदेश दिया और बोले कि इस कालकूट विष से केवल शिवजी बचा सकते हैं तथा देवता एवं नेताओं ने मिलकर कैलाश जी भगवान शंकर की सूती कि भगवान शंकर प्रकट हुए और कालकूट नामक 20 के घड़े को हथेली में संभाल लिया और उनके कष्टों का निवारण करते हुए 20 पार कर गए अति पिछड़ों और होने से उनका कंठ नीला पड़ गया जिस कारण उसके नाम मैं नीलकंठ नाम और जुड़ गया 205 करते समय जो थोड़ा सा बीज नीचे पृथ्वी पर गिर गया जिससे बक्श आदि विषैले नागों की उत्पत्ति हुई
Shri Sukhdev ji said the story of the churning of the ocean, O king, the Mandarachal mountain became stable on the back of one lakh yojana pair of Lord Kutch, after that Shri Narayan asked the gods to bring Vasu's nose, the gods went and heard the orders of God. Then he has said that my body will suffer a lot due to the Devgad wrapped around the Mandarachal mountain, listening to his words, the gods said that you have been called by Lord Shri Hari Narayan and you will also be given a share in it after receiving the nectar in the churning of the ocean. By tying a rope, it was accepted that before starting the churning work, Lord Shri Hari Narayan said to this deity and give it, first of all worshiping the foreigner Ganesha, he should not be born in any way and your wishes are fulfilled, he did the same, then Shri Hari did the same to the deities. Holding him towards the head of the real bath and asked the policies to churn the ocean, but the arrogant and powerful asuras said why should we hold the impure part of the real part, we will remain on the side of the head, the gods listened to such words, Lord Shri man At the time of churning the ocean, when the churning of the ocean, Vasavi started pulling the head part of Vasavi's nose, and at the same time, a fierce cry started coming out of Vasavi's mouth, then the gods tried to catch him. They started talking, but Lord Vasudev silenced them by saying that you have voluntarily accepted to stay on the side of your head, so stay firm on your statement. Shree Narayan encouraged them, considering them to be patient, after some time after taking out fruits and vegetables from the sea, due to which the creatures of the three people started getting distraught, then Lord Shree Narayan started eating from the gods and deities, O Lord, O Almighty God, we Take some way to keep this poison, otherwise we will all be destroyed by its feeling, then he ordered to praise Shiva and said that only Shiva can save from this Kalakoot poison and the gods and leaders together made Kailash ji the cotton of Lord Shankar. that Lord Shankar appeared and called Kalakoot He took a pitcher of 20 in his palm and while redressing his sufferings, crossed 20 being extremely backward and his throat turned blue, due to which I added the name Neelkanth to his name. Gaya from which the poisonous serpents like Baksh etc.
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