श्रीमद् भागवत कथा पुराण अष्टम स्कंध अध्याय 6

श्रीमद् भागवत कथा पुराण अष्टम स्कंध अध्याय 6 आरंभ

श्री नारायण का देवताओं को दर्शन देना श्री नारायण के प्रसन्न होने का वृतांत बताते हुए श्री सुखदेव जी बोले हैं राजन ब्रह्मा जी एवं देवताओं की प्रसति किए जाने पर भगवान त्रिलोकीनाथ हजार सूर्य के समान तेज से युक्त होकर प्रकट हुए उनके दिव्य देश से देवताओं के नेत्रों उस तेज को सहन ना कर पाए से बंद हो गए ब्रह्मा जी ने हाथ जोड़कर दंडवत प्रणाम करने के पश्चात स्तुति करते हुए विनती भाव से कहने लगे तब भगवान दीनदयाल मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले हैं ब्रह्मा जी एवं अन्य देवता गण यह समय देवताओं के प्रतिकूल एवं उद्देश्यों के अनुकूल है इसलिए मेरी आज्ञा को ध्यानपूर्वक सुनो या तुम सब का संकट का हाल है इस संकट काल में दैत्यों से मैत्री करना सब प्रकार के उत्तम है उसमें मित्रता करके तुम लोग समुद्र मंथन का कार्य करो शिरसागर को हटाने के लिए व्यक्तियों के साथ मिलकर मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासविक नाथ को रस्सी बनाओ समुद्र से 14 रत्न निकलेंगे जिसमें एक रत्न अमृत होगा तुम लोग अमृत मान कर लेना इस तरह तुम लोग अमर हो जाओगे तब देवताओं ने कहा है स्वामी की आदत यह में अमृत पीने देंगे तब श्री भगवान बोले तुम लोग चिंता ना करो हम भी तुम्हारी सहायता करेंगे प्रभु के इस प्रकार क्यों वचन सुनकर देवता अति प्रसन्न हुए और प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य राजबली के पास जाए तथा समुद्र मंथन कर अमृत निकालने वाले बात बताई देवताओं के वचन सुनकर देत राजबली से प्रसंता व्यक्त करते हुए कहा है देवताओं हम सभी दिव्य सागर मंथन के लिए तैयार हैं तब देवता और देवताओं ने मिलकर मद्रा चल पर्वत को उखाड़ लिया जब वे पर्वत को उठाकर समुद्र के किनारे ले जाने लगे तब पर्वत के भार से बहुत से देवता एवं देश के दब कर मर गए और थक हार कर उन सभी से पर्वत को मर्ग में रख दिया उनका अहंकार नष्ट हो गया तब वह भगवान श्री नारायण की स्तुति करते हुए कहने लगे हैं नात आपकी कृपा के बिना इस विशाल का या पर्वत को ले जाना संभव नहीं है आप हमारी सहायता करें भगवान उन सभी की प्रार्थना सुनकर उनका उत्साह भांग देखकर भगवान वासुदेव गरुड पर सवार होकर उनके पास गए देवता एवं बेटियों ने प्रभु के चरणों में दंडवत प्रणाम करते हुए कहा हे प्रभु इस पर्वत को थोड़ी दूर लाने में बहुत से देवता एवं देते मर गए इसे छीर सागर तक ले जाने में हम लोग समर्थ हैं तब भगवान श्री वासु नारायण ने उन मरे हुए असुरों एवं देवताओं को अपनी कृपा दृष्टि डालकर पुनर्जीवित कर दिया और मंदराचल पर्वत को तिल के सामान उठाकर गरुड़ की पीठ पर रख लिया तथा क्षण मात्र में सूरसागर में ले जाकर रख दिया किंतु बिना आधार के मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा तब भगवान ने कछुआ रूप धारण कर समुद्र में प्रवेश करके उसी मंथन में बने विशाल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Ashtam Skandha Chapter 6 Beginning

Describing the account of Shri Narayan being pleased, Shri Sukhdev ji has said that Lord Trilokinath appeared with the glory of a thousand suns on the worship of Lord Brahma ji and the gods from his divine country. Brahma ji stopped because he could not bear that brilliance, after bowing down with folded hands, he started praying and praying, then Lord Deendayal smiled softly and said that Brahma ji and other deities are at this time unfavorable to the gods and It is according to the objectives, so listen carefully to my orders or you are all in trouble, it is best to make friends with the demons in this crisis, by making friends with them, you should do the work of churning the ocean together with people to remove Shirsagar. Churn the Mandarachal mountain and make Vasvik Nath a rope, 14 gems will come out of the sea, in which one gem will be nectar, you people take it as nectar, in this way you will become immortal, then the gods have said that the habit of the lord will let him drink nectar, then Shri Bhagwan said you guys don't worry We will also help you. When all the divine oceans are ready for churning, then the gods and the gods together uprooted the mountain of Madra, when they started lifting the mountain and carrying it to the shore of the sea, then many gods and the country were buried under the weight of the mountain and died in exhaustion. All of them kept the mountain in the way, their ego was destroyed, then they have started praising Lord Shri Narayan and saying that without your grace it is not possible to take this huge or mountain, you help us, God bless them all. Hearing his prayer, seeing his enthusiasm, Lord Vasudev went to him riding on Garuda, the gods and daughters bowed down to the feet of the Lord and said, Lord, many gods died in bringing this mountain a little far and giving it to take it to the sea. I am capable, then Lord Shri Vasu Narayan has killed those dead Asuras. And revived the gods with his grace and lifted the Mandarachal mountain like a mole and placed it on the back of Garuda and kept it in the ocean for a moment, but without any support, the Mandarachal mountain started drowning in the sea, then the Lord assumed the form of a tortoise. After entering the ocean, he placed the huge mountain formed in the same churning on his back.

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