श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय 5

श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंद अध्याय 5 आरंभ

कक्षा अवतार की कथा महात्मा सुख जी कहने लगे हे राजन श्री नारायण जी धर्म की रक्षा हेतु अवतार लेते हैं मैंने चौथे मन्वंतर में हरी अवतार में नारायण के प्रकट होने की कथा सुनी पांचवें में मनु रेवत हुए यह तपस्या मुनि के भाई थे मनु के पुत्र विभव इंद्र एवं अर्जुन बली विज्ञान आदि देवगढ़ हुए हिरण रोमा वेद सिर्फ उद्धव बहू आदि शक्ति हुए और सुख ऋषि की स्त्री में बैकुंठ नाथ ने अवतार लिया उन्होंने लक्ष्मी जी का वचन मानकर बैकुंठ लोक का निर्माण किया छठ में मनु जासूस हुए उसके पुत्र मित्र रूपेंद्र और अभी-अभी देवता तथा हर यस देव वर्ग आदि सहित हुए बिराज की स्त्री संभूता के गर्व से अर्जित भगवान ने अवतार लिया उन्होंने देवता एवं दानों के समुद्र मंथन कराया समुद्र मंथन में मथनी यूपी मदर चल पर्वत को समुद्र में डूबने से रोकने के लिए श्री नारायण ने कक्ष का रूप धारण कर मात्रा चल पर्वत को अपनी पीठ पर उठा या यह कथा सुनकर राजा परीक्षित ने श्री सुखदेव जी महाराज से पूछिए स्वामी किस तरह भगवान ने कक्ष रूप धारण कर विशाल मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और किस उद्देश्य से समुद्र मंथन कर आया तब सुखदेव जी बोले हे राजन् पूर्व काल में राजा बलि के राज्य में देवताओं से अधिक शक्तिशाली देते हो गए थे और देवताओं से शत्रुता का भाव रखते थे उनके बलवान होने का एक कारण यह भी था कि उन्हें शुक्राचार्य की शक्ति प्राप्त थी क्योंकि बढ़ती हुई शक्ति देखकर देवताओं को अत्यधिक चिंता हुए उन्होंने ब्रह्मा जी के पास जाकर विनती करते हुए सारा वृत्तांत सुनाया कथा ब्रह्माजी देवताओं सहित बैकुंठधाम गए किंतु वहां उन्हें बैकुंठ धाम श्री नारायण कहीं दिखाई ना दिए ब्रह्मा जी ने उस समय भगवान श्री नारायण की इस प्रकार स्तुति की हे देव समस्त लोगों के मालिक आप है समस्त चराचर में आपकी माया व्याप्त है आप ही अत्यंत पुरुष है और आप ही इस रथ रूपी शरीर के आधार हैं सूर्य देव आपके नेत्र अग्निदेव आपके मुंह और कारों की मृत्यु आप ही हैं हे प्रभु आखरी आप अपनी इच्छा से ब्राह्मण देवता एवं हरि भक्तों का दुख दूर करने के लिए अवतार लेते हैं के दिन दयाल शक्ति संपन्न देशों में देवताओं का राज छीन लिया दुखी होकर देवगढ़ आप की शरण में आए हुए हैं आप इनका दुखहरण कीजिए प्रभु

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Shrimad Bhagwat Katha Purana VIII Skanda Chapter 5 Beginning

Mahatma Sukh ji started telling the story of class incarnation, O Rajan, Shri Narayan ji takes incarnation to protect religion, I heard the story of Narayan's appearance in green incarnation in the fourth manvantara Indra and Arjuna became Bali science etc. Devgad, deer Roma Veda became only Uddhav daughter-in-law etc. Shakti and Vaikunth Nath incarnated in Sukh Rishi's woman, he created Baikunth world by accepting the word of Lakshmi ji, Manu became a spy in Chhath, his son friend Rupendra and now Now God, who was proud of the female sovereignty of Biraj, including the gods and every Yas Dev class etc., incarnated. He churned the oceans of gods and charities. In the ocean churning, Shri Narayan churned the UP Mother Chal Parvat from drowning in the sea. Taking the form of a room, he lifted the mountain on his back or after hearing this story, King Parikshit asked Shri Sukhdev Ji Maharaj, Swami, how did God take the form of a room and held the huge Mandarachal mountain on his back and for what purpose the ocean was churning. When he came, Sukhdev ji said, O king. In the earlier times, in the kingdom of Bali, the king had become more powerful than the gods and had a feeling of enmity with the gods. He went to Brahma ji and narrated the whole story, requesting that Brahma ji went to Baikunthdham along with the deities, but there he did not see Baikunth Dham Shri Narayan anywhere. Your Maya is pervasive in all the pastures, you are the supreme man and you are the basis of this chariot-like body, the sun god, your eyes, fire, your mouth and the death of the cars, you are the Lord, the last one by your will, the sufferings of Brahmin gods and Hari devotees. In order to overcome them, they take away the kingship of the gods in the countries of the power-rich countries. Devgad is saddened and has come under your protection, you take care of them, Lord.

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