श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंद अध्याय 4

श्रीमद् भागवत कथा पुराणआठवां स्कंद अध्याय चार आरंभ

ग्रह के गंधर्व स्थान प्राप्त करने की कथा का वर्णन सुदर्शन चक्र द्वारा ग्रह का चीर देने तक की कथा का वर्णन करने के पश्चात श्री सुखदेव जी बोले थे राजा परीक्षित श्री नारायण के चक्र द्वारा जीत समग्र मारा गया उस समय ब्रह्मा शंकर एवं ऋषि गंधर्व आदि आकाश से पुष्पों की वर्षा करने लगे वहां ग्रह एवं गजेंद्र साहब मुक्त हो गए और सुंदरपुर का स्वरूप धारण कर श्री नारायण के चरणों में गिर पड़े गजेंद्र पूर्व जन्म में ग्रामीण देश का राजा इंद्रधनुष था एक बार वे स्नान आदि कार्य से निवृत्त होकर बैठते थे उसी समय अगस्त्यमुनि का वहां आगमन हुआ किंतु उन्हें अनदेखा कर राजा इंद्र मतवाले हाथी के समान बैठा रहा और अतिथि सत्कार ना किया यह देखकर अगस्ती मुनी अत्यंत क्रोध में होकर श्राप देने देते हुए बोले हे राजन तू अभिमान के वश में होकर मतवाले हाथी के समान बैठा है और ब्राह्मणों का अपमान कर रहा है अतः तू हाथी की योनि में जन्म ले इसी कारण राजा इंद्रधनुष को हाथी की योनि प्राप्त हुई किंतु पूर्व जन्म में ईश्वर की आराधना एवं यज्ञ आदि शुभ कार्य करने से प्रभु के चरणों की स्थिति बनी रही और गजेंद्र के पांव को पकड़कर सीखने वाला ग्रह पूर्व जन्म में नामक गंधर्व था एक बार वह अपनी स्त्रियों सहित विमान में बैठकर बिहार कर रहा था वहीं पर एक सुंदर स्वच्छ जल से भरा हुआ तालाब देखकर दिमाग से उतर कर स्त्रियों सहित बिहार करने लगा उसी तालाब में देवल ऋषि स्नान कर रहे थे उन्हें देखकर वह ऋषि का उपहास करने हेतु गोता मारकर ग्रह के समान उनके पांव को पकड़कर जेल के भीतर खींच ले गया फिर कुछ समय बाद उनके पांव को छोड़कर अपने स्त्रियों सहित तलाब से बाहर निकल कर हंसने लगा यह देखकर देवल ऋषि क्रोधित हुआ और उन्होंने शराब दिया यह गंधर्व तूने विषयों की खिल्ली उड़ाने हेतु मेरा पैर पकड़कर ग्रह के समान इसलिए तुम्हें ग्रह योनि की प्राप्ति हो ऋषि द्वारा शराब पाकर चूचू गंधर्व की सारी हंसी उड़ गई और तुरंत ऋषि देवल के चरणों में गिर पड़ा तथा अनुनय विनय करते हुए बोला हे महात्मा आप ऋषि जनों का स्वभाव क्षमाशील होता है अज्ञातवास मैंने आपका हाथ किया जिसका फल मुझे प्राप्त हुआ है ऋषि राज मेरा उद्धार कब होगा तब देओल ऋषि बोले हे गंधर्व तूने अपने कर्म का प्रेषित किया इसलिए तेरे उधार का समय बताता हूं तू 1000 वर्ष ग्राम योनि में रहकर शराब कांड हो गया तत्पश्चात 1 दिन गजेंद्र के पांव पकड़ेगा तब तीनो लोक के पालनहार श्री नारायण तुझे अपने चक्र से मारकर तेरा उद्धार करेंगे ए राजा परीक्षित इस तरह भगवान ने गजेंद्र एवं ग्रह दोनों का उद्धार किया और स्वयं श्री नारायण इंद्रधनुष गजेंद्र से कहा एक गजेंद्र जो पुरुष प्रातः काल उठकर गजेंद्र स्तुति का पाठ करें अथवा मेरी अवतार का ध्यान करें या फिर मेरे भक्त ध्रुव प्रह्लाद आदि के नामों का ध्यान करेगा उसे स्वप्न में भी दुख व्यक्त नहीं होगा यह कह कर प्रभु श्री हरि नारायण गांव लोग चले गए

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Shrimad Bhagwat Katha PuranaEighth Skanda Chapter Four Beginning

Describing the story of the planet attaining the Gandharva place, after describing the story of the planet being ripped apart by the Sudarshan Chakra, Shri Sukhdev ji said that King Parikshit was killed by the wheel of Shri Narayan, the whole of the sky, at that time Brahma Shankar and Rishi Gandharva etc. From there the planet and Gajendra sahib became free and took the form of Sundarpur and fell at the feet of Shri Narayan. Gajendra was the king of rural country Rainbow in his previous birth, once he used to sit after retiring from bath etc. Agastyamuni came there, but ignoring him, King Indra sat like a drunken elephant and seeing that the guest was not treated, Agastya Muni, being very angry and giving a curse, said, O king, you are sitting like a drunken elephant under the control of pride and You are insulting the brahmins, so you take birth in the elephant's vagina, that is why King Rainbow got the elephant's vagina, but in the previous birth, worshiping God and doing yajna etc., the condition of the feet of the Lord remained and Gajendra's feet catch learner Once there was a Gandharva named Gandharva in his previous birth. Once he was doing Bihar by sitting in a plane with his women, while seeing a beautiful pond filled with clean water, he got down from his mind and started doing Bihar along with the women, in the same pond Deval Rishi was taking bath in them. Seeing that, he took a dive like a planet to ridicule the sage and dragged him inside the prison, then after some time leaving his feet, he came out of the pond with his women and started laughing, seeing this Deval Rishi got angry and gave alcohol This Gandharva, holding my feet to ridicule your subjects, like a planet, so you can get a planet vagina, after getting liquor from the sage, all the laughter of Chuchu Gandharva went away and immediately fell at the feet of the sage Deval and said humbly, O Mahatma you The nature of the sages is forgiving, I did your hand in ignorance, whose fruit I have received, when will the sage king be my salvation, then Deol sage said, O Gandharva, you sent your karma, so I tell you the time of your borrowing, you live in the vagina for 1000 years. Liquor scandal happened after that 1 The day will catch the feet of Gajendra, then Shri Narayan, the guardian of all the three worlds, will save you by killing you with his wheel, A. King Parikshit, in this way God saved both Gajendra and the planet and Shri Narayan himself said to Rainbow Gajendra, a Gajendra, a man who woke up in the morning, Gajendra Recite praise or meditate on my incarnation or else my devotee will meditate on the names of Dhruv Prahlad etc. He will not express sorrow even in a dream, saying that Lord Shri Hari Narayan went to the village

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