श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय 3

श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां  स्कंध अध्याय 3 आरंभ

गजेंद्र द्वारा श्री नारायण की स्तुति श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित गजेंद्र अपने पूर्व जन्म के पुण्य से भगवान श्री हरि के चरणों का ध्यान करते हुए इस प्रकार स्तुति करने लगा मैं ओम भगवान दीनदयाल की शरण में हूं जो घट घट वासी है सारी सृष्टि उन्हीं के प्रकाश से प्रकाश महान है जो शाम दृश्य और सबके आधार है मैं उन्हें नमस्कार करता हूं जो अधर धर्म काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाले परमपिता है सब जीवो में उन्हें एक का तेज व्याप्त है उन्हीं की शरण में है ज्ञानी लोग अपने अनीता करण को शुद्ध करके उसे अविनाशी भगवान की आराधना करते हैं जो प्रकृति के रूप में व्याप्त है वह ऋषि मुनि एवं साधुओं जनों को तब करने का पूर्ण फल प्रदान करते हैं अपने भक्तों का कल्याण करते हैं उनकी माया का पार ब्रह्मा आदि भी ना पा सके है वही परमेश्वर इस समय आकर मेरी रक्षा करें मैं गिरा के मुंह से छुड़ाने के लिए जूती नहीं करता एवं वरना माया रूपी आता सागर से निकलने के लिए विनती कर रहा हूं हे कृपा सागर तुम्हारे सिवाय किसी भी वह समस्त समर्थन नहीं है जो दिनों का दुख दूर कर सके हे जगत गुरु मैं कुटुम जनों का आसरा त्याग कर आप की शरण में हूं मुझे मृत्यु का शोक नहीं केवल यह चिंता है कि सांसारिक प्राणी कहेंगे कि श्री नारायण की शरण में पहुंचने के बाद भी गजेंद्र का दुख दूर नहीं हुआ गजेंद्र की इस प्रकार स्तुति करने पर उन्हें अत्यंत दुख आता देखकर मुरली मनोहर सुदर्शन चक्र प्रभु ने उसी समय सुदर्शन चक्र उठा लिया और आपने प्रिया वाहन तिल गामी गरुड पर सवार होकर गजेंद्र की रक्षा हेतु चल पड़े उन्हें आता हुआ देख गजेंद्र ने अपनी ओर से एक कमल पुष्प तोड़ लिया और ऊपर उठाकर कतार स्वर में करने लगा हे दीन दयाल हे भक्तवत्सल ये तीनों के दुखहरण प्रभु मैं सारंगढ़ होकर अपने दंडवत प्रणाम करता हूं मेरी रक्षा कीजिए भक्त हितकारी गजेंद्र कि इस प्रकार के वचनों को सुनकर त्रिभुवन पति सुदर्शन चक्र सहित जरूर से नीचे कूद गए और उनकी रक्षा के लिए पैदल ही दौड़ पड़े और वहां पहुंचकर सुदर्शन चक्र से ग्राहक का चीरघर गजेंद्र के प्राणियों की रक्षा की

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Skandha Chapter 3 Beginning

Gajendra praised Shri Narayan, Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit Gajendra, meditating on the feet of Lord Shri Hari by virtue of his previous birth, started praising Lord Shri Hari in this way, I am in the shelter of Om Lord Deendayal, who is the abode of all creation. The light is greater than the light of the evening, the view and the basis of all, I salute him who is the Supreme Father, who bestows iniquity, sex and salvation, in all the living beings, the glory of the One pervades them, in the shelter of the wise people purify their Anita Karan. By doing that, they worship the imperishable God, who is pervading in the form of nature, he provides the full fruit of doing it to the sages and sages, then they do the welfare of their devotees, even Brahma etc. has not been able to overcome their illusion. Come on time, protect me, I do not wear shoes to get rid of the fallen from my mouth and otherwise I am requesting to come out of the ocean of Maya, O grace ocean, there is no other support except you who can remove the sorrow of days. Jagat Guru, I have given up the shelter of family members and take refuge in you. I do not grieve for death, only worry that the worldly beings will say that even after reaching the shelter of Shri Narayan, Gajendra's misery did not go away. Picked up the Sudarshan Chakra and you rode on the beloved vehicle Til Gami Garuda and started to protect Gajendra, seeing him coming, Gajendra broke a lotus flower from his side and lifted it up and started doing it in a row voice, O Deen Dayal, O Bhaktvatsal of these three. Lord of sorrows, I bow down to my obeisances, protect me, the devotee Beneficent Gajendra, after hearing such words, Tribhuvan husband jumped down with Sudarshan Chakra and ran on foot to protect him and after reaching there the customer was treated with Sudarshan Chakra. Sawmill protected the creatures of Gajendra

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