श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय 1 आरंभ
श्री सुखदेव जी द्वारा मनु वंत्र्ण का हाल वर्णन राजा परीक्षित ने श्री सुखदेव जी से पूछा हे महामुनि आपने राजा सुभायु मनु की वंशावली का वर्णन करके मुझे कृतार्थ किया मैं धन्य हो गया महात्मा अब मुझ पर कृपा करके श्री हरि नारायण की लीलाओं का वर्णन करें तथा जिस मनो अंतरण में जो अवतार धारण किया उसका हाल वर्णन करें राजा परीक्षित के बिना पूर्व वचनों को सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् इस वायु मनु की उत्पत्ति से लेकर आज तक छह मानव अंतरण विदित हो चुके हैं पहले मनु अंतरण मिस वायु मनु राजा हुए उनके दो पुत्र एवं 3 कन्याओं की प्राप्ति हुई उनकी तीसरी कन्या आकृति का विवाह रुचि प्रजापति से संपन्न हुई उसी मनो वंत्र्ण में यज्ञ भगवान ने अवतार धारण कर किया समस्त लोगों को त्याग कर विश्वा यू मनु अपनी स्त्री शतरूपा के साथ सुनंदा नदी के तट पर जाकर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या करने लगे उसी समय राक्षसों ने आकर उसकी तपस्या भंग करना चाहा तब यज्ञ भगवान ने असुरों का संहार कर इस वायु मनु की रक्षा की दूसरे मनु इस वायु विचित हुए मनु के पुत्र रोशन नामक के इंद्र और सूर्य रोजी मान एवं घुमान आदि देवता हुए तथा अर्जुन इस्तम आदि शब्द भी हुए वेद सीधा ऋषि की पत्नी तू सीता के गर्भ से भगवान भी भूत के रूप में श्री नारायण ने अवतार लिया और स्वयं ब्रह्मचारी रहकर 888 हजार ऋषि यों को ज्ञान देकर धन्य किया तीसरे मनोहरण में राजा प्रियव्रत के पुत्र उत्तम मनु हुए उत्तम के पुत्र पवन श्री जैन एवं अग्निहोत्र आदि हुए सत्यजीत नामक इंद्र तथा सत्य आदि देवता सप्त ऋषि हुए भगवान श्री नारायण ने उस समय धर्म की स्त्री सुनीता के गर्व से सत्यसेन के रूप में अवतार लेकर पापियों का नाश किया और धर्म एवं सत्य की स्थापना कि उत्तम के भाई ब्राह्मण चौथे मनु थे उनके 10 पुत्र हुए उनके पुत्र श्री श्री इंद्र हुए तथा ज्योति धर्म आदि सप्त ऋषि हुए उस मनोहरण में हरी मेधा ऋषि के यह भगवान श्री नारायण ने हरि नाम से अवतार लिया और ग्रह से गजेंद्र की रक्षा की तब राजा परीक्षित बोले हैं महात्मा जन भगवान हरि ने किस प्रकार ग्रह से गजेंद्र की रक्षा की कृपा करके वह कथा सुनाएं
TRANSLATE IN ENGLISH
Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Skandha Chapter 1 Beginning
The recent description of Manu Vantrana by Shri Sukhdev ji, King Parikshit asked Shri Sukhdev ji, O great sage, you thanked me by describing the genealogy of King Subhayu Manu, I became blessed Mahatma, now please describe the pastimes of Shri Hari Narayan and Describe the condition of the person in which the incarnation took place without King Parikshit, listening to the previous words, Shri Sukhdev ji said, O king, since the origin of this Vayu Manu, six human transfers have been known till today. His two sons and 3 daughters were obtained, his third daughter Aakriti was married to Ruchi Prajapati, in the same mood, God performed the Yagya incarnated by sacrificing all the people. Standing on one leg and doing penance, at the same time the demons came and wanted to disturb his penance, then Yajna God saved this Vayu Manu by killing the Asuras. Ghuman etc became deities and Arjuna Istham etc. The words also happened, Vedas were directly the wife of the sage, from the womb of Sita, Lord Narayan also incarnated in the form of a ghost and being celibate himself, blessed 888 thousand sages by giving them knowledge. Pawan Shree Jain and Agnihotra etc. Indra named Satyajit and Satya Adi Devata became the Sapta Rishi, Lord Shree Narayan took pride in the form of Satyasen, the woman of religion Sunita at that time and destroyed the sinners and established Dharma and Truth as the brother of Uttam. Brahmin was the fourth Manu, he had 10 sons, his son became Sri Sri Indra and Jyoti Dharma etc. became the seven sages. How did Mahatma Jan Lord Hari please protect Gajendra from the planet and narrate that story
0 टिप्पणियाँ