श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 15

श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 15 आरंभ

मोक्ष धर्म का वर्णन महाराज जी कहने लगे हे धर्मराज ब्राम्हण को भोजन कराने से पुणे प्राप्त होता है देव कर्म एवं वित्त कर्म में कम से कम 3 ब्राहणों को भोजन अवश्य कराएं गृहस्थ आश्रम में देव पितर नामक व्यंग्य करने वाले ऋषि मुनि एवं साधु महात्माओं का सदैव सम्मान करें तथा यज्ञ एवं श्रद्धा आदि में जीव हिंसा कदापि ना करें इसलिए कि जीव हत्या से श्री नारायण प्रसन्न नहीं होते मन वचन एवं कर्म से किसी प्राणी को दुखी ना करें किसी वस्तु का लालच ना करें क्योंकि मनुष्य पंडित एवं ज्ञानी होकर भी लालच करता है उसे नरक गति की प्राप्ति होती है जो ब्रह्मचारी आपने ब्रम्हचर्य को छोड़ता है जो उतरा स्थित तब कर्म त्याग देता है उसे पुण्य फल प्राप्त नहीं होता जो मनुष्य अपने धर्म में दिन नहीं उसे आधार भी समझना चाहिए या धर्म की पांच गति है बीती हुई धर्म कार्य करने पर भी बाधा उत्पन्न हो वह भी धर्म कहलाता है दूसरे का धर्म परम धर्म की श्रेणी में आता है पाखंड तथा धर्म को धर्म सुरक्षा से धर्म को मान लेना आभासी और सत्र के वचनों को दूसरे से कहना छल की श्रेणी में आता है इस प्रकार के धर्म से सदैव बचा है धर्मराज प्रवृत्ति और निवृत्ति फार्म ज्ञानी पुरुष ने कहा है पावत कर्म के अनुसार प्राणी को बार-बार जन्म मृत्यु का चक्कर काटना होता है किंतु निवृत्ति पर करम भक्ति एवं ज्ञान का यह उत्तम मार्ग है जिसे परमेश्वर की प्राप्ति होती है निर्मित री परायण पुरुष श्रेष्ठ पुरुष है वह उत्तरायण मार्ग से ब्रह्म लोक हो जाता है वहां आवागमन के चक्कर से छूटकर मोक्ष पद को प्राप्त होता है नारद जी बोले हे राजन् पूर्व काल में अपराहन नामक के स्वरूप में मैंने जाना जाता था देवताओं के श्राप से मैं सूत्र हो गया परंतु संत समागम एवं श्री हरि नारायण की कथा सुनने से दूसरे जन्म में ब्रह्मा जी का पुत्र भारत बंद कर उत्पन्न हुआ देवर्षि नारद के वचन को सुनकर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी को साक्षात् नारायण जानकर उनकी पूजा की इतनी कथा कह कर श्री सुखदेव जी महाराज परीक्षित से बोले हे राजन् क्षत्रियों की ओर से उत्पन्न हुए सृष्टि का वर्णन मैंने तुम्हें सुनाया

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Seventh Skandha Chapter 15 Beginning

The description of Moksha Dharma, Maharaj Ji started saying, O Dharmaraja, by feeding a Brahmin, Pune is attained by feeding at least 3 Brahmins in Dev Karma and Finance Karma, in the householder's ashram, always the sages and sages who satire named Dev Pitra. Respect and never commit violence in sacrifice and reverence etc., because Shri Narayan is not pleased with the killing of a living being, do not hurt any living being by mind, word and deed, do not covet anything because man, being a pundit and knowledgeable, does greed. He who attains the hell speed, the celibate who leaves his celibacy, the one who has landed, then renounces the work, he does not get the virtuous fruit, the man who is not a day in his religion, he should also consider it as the basis or the five speed of religion is the past religious work Even if there is a hindrance, it is also called religion. Dharmaraja has always been saved from religion, tendency and attitude The wise man has said that according to the sacred karma, the creature has to go through the cycle of birth and death again and again, but on retirement, this is the best path of devotion and knowledge, which is attained by God. By the way, Brahma becomes Lok, there is liberation from the cycle of traffic and attains salvation, Narad ji said, O Rajan, in the earlier times I was known in the form of Aparahan, due to the curse of the gods, I became a sutra but Sant Samagam and Shri Hari Hearing the story of Narayan, the son of Brahma ji was born in the second life after closing India. Hearing the words of Lord Narada, Yudhishthira, knowing Shri Krishna ji as the real Narayan and worshiping him, said to Shri Sukhdev Ji Maharaj Parikshit, O king, towards the Kshatriyas. I told you the description of the creation that was born from

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