श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 14

श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 14 आरंभ

नारद जी द्वारा गृहस्थ धर्म का विस्तार वर्णन गृहस्थाश्रम का मर्म समझते हुए धर्मराज युधिष्ठिर से देवर्षि नारद बोले हे राजन् गृहस्थ आश्रम में रहकर मनुष्य को गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए साधु संतों एवं ऋषि मुनियों की सेवा करें तथा श्री हरि नारायण की कथा का श्रवण शुद्ध मन से करें तथा शक्ति यज्ञ आदि करें और द्वार पर आए हुए वृक्षों को यथाशक्ति दान दें अपनी आवश्यकतानुसार धन का संचय करें अधिक संचय करना नहीं चाहिए कर्म के अनुसार जो मिले जितना मिले उसी में संतुष्ट होकर कुटुम का पालन करें गृहस्थ आश्रम में धर्म पूर्वक ऋषि मुनि देवता आदि को संतुष्ट करें यदि अधिक धन है तो बड़े यज्ञ का आयोजन करें अन्यथा श्रद्धा पूर्वक अग्निहोत्र से श्री नारायण की पूजा करें अमावस्या पूर्णिमा सक्रांति तथा द्वारी सी के दिन कुछ ना कुछ दान अवश्य करना चाहिए ब्राह्मण को सदैव नारायण के समान सम्मान प्रदान करें तथा सतीश शुभ कार्य करें और पर्व काल में जप तप व्रत देवताओं की आराधना इसके अतिरिक्त जाती कर्म के समय पुरुषों में सौदा के समय ध्यान अवश्य करें इससे शुभ फल प्राप्त होते हैं कुरुक्षेत्र गया पुष्कर में भीषण प्रवास काशी द्वारिका मथुरा बिंद्र स्वर बद्रिकाश्रम आदि तीर्थों में स्नान एवं दर्शन करें ने से कोई गुना शुभ फल प्राप्त होता है क्षण मात्र का विश्राम लेकर देवर्षि नारद कहां है धर्मराज तुम अति भाग्यशाली हो जो कि भगवान श्री कृष्ण जी स्वयं तुम्हारे साथ भाई बंधु एवं शाखा के साथ विराजते हैं

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Seventh Skandha Chapter 14 Beginning

Detail description of Grihastha Dharma by Narad Ji, understanding the meaning of Grihasthashram, Devarshi Narad said to Dharmaraja Yudhishthira, O king, living in the householder's ashram, a man should follow the householder religion, serve the sages, saints and sages and listen to the story of Shri Hari Narayan. Do it with your mind and do power sacrifices etc. and donate as much power to the trees that have come at the door, save money as per your requirement, should not accumulate more, be satisfied with what you get according to karma, follow the family religiously in the householder's ashram. Satisfy the sage deity etc. If there is more money then organize a big yagya, otherwise worship Shree Narayan with reverence from Agnihotra, some donation must be done on the day of Amavasya Purnima Sankranti and Dwar Si Always give respect to Brahmin like Narayan. And Satish should do auspicious work and during the festival, chanting, fasting, worshiping the deities, besides this, at the time of caste karma, men must meditate at the time of bargaining, it gives auspicious results, Kurukshetra Gaya, Pushkar by Kashi Taking a bath and darshan in pilgrimages like Rika Mathura Bindra Swar Badrikashram etc., one gets many auspicious results, taking a moment's rest, where is Devarshi Narad, Dharmaraja, you are very lucky that Lord Shri Krishna himself is with you, brother, brother and branch. sit down

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