श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां स्कंध अध्याय 13 आरंभ
दत्तात्रेय एवं भक्त पहलाद का संवाद नारद जी बोले हे धर्मराज एक बार श्री हरि नारायण के परम भक्त पहलाद प्रजा के हित के लिए पर्वत की तराई में विचार कर रहे थे वही उनकी भेंट दादा जी से हुई हुए परमहंस ब्रिज धारण किए पृथ्वी पर पड़े हुए थे उन्हें देखकर भक्त पहलाद जी कहने लगे कि महात्मा आप हष्ट पुष्ट उपयोग करने वाले पुरुषों के समान है फिर फीस उत्तरा पृथ्वी पर क्यों पड़े हुए हैं पहलाद जी के वचन को सुनकर दाता तृप्ति जी बोले हे हरि भक्त आप ज्ञानी एवं भगवान श्री नारायण के परम भक्त हैं संसार में माया मोह एवं भोग विलास रूपी तरुणा कभी तृप्त नहीं होती यही कारण है कि मनुष्य को संसार का चक्र भोगना होता है और बार-बार जन्म लेकर इस मृत्यु लक में करना होता है कर्म मनुष्य को कर्म अनुसार पाप कर्म से नर्क और पूर्ण कार्य शेष स्वर्ण प्राप्त होता है किंतु फार्म इन रहे अर्थात किसी प्रकार के कर्म ना करने से मोक्ष प्राप्त होता है यही कारण है कि मैंने समस्त कर्म का त्याग परमहंस वृत्त को अपनाया ना मै कर्म करूंगा ना मुझे योनियों में भटकना होगा जो कुछ मिलता है खा लेता उत्तम भोजन मिलता तो भी खा लिया नहीं मिला तो भी नहीं खाया फिर भी कोई चिंता नहीं सोने के लिए पृथ्वी मिली तो भी अच्छा गुदगुदा बिस्तर मिला तो भी अच्छा हाल पत्रों पर भी सो लिया किसी वस्तु विशेष में कोई रुचि नहीं कोई आ सकती नहीं लोगों को एकत्रित करने का तात्पर्य है कि मधुमक्खी की भांति लुटाना है अतः विषय भोग से विरक्त रहकर परमात्मा के चरणों का ध्यान करना ही उत्तम है यह पहलाद जी आप श्री नारायण के चरणों से प्रतीत करने वाले परम भक्त हैं इसलिए यह गुण तत्व तुम्हें बतला आया इतना कथा बतला कर देवर्षि नारद बोले यधिष्ठिर दैत्य प्रिय जी से ज्ञान प्राप्त कर पहलाद जी ने उनकी प्रदक्षिणा की और अपने नगर को चले गए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Seventh Skandha Chapter 13 Beginning
Dialogue of Dattatreya and devotee Pahlada Narad ji said, O Dharmaraja, once the supreme devotee of Shri Hari Narayan, Pahlada was thinking in the foothills of the mountain for the benefit of the people, while he met Grandfather and was lying on the earth holding the Paramhansa Bridge. Seeing him, the devotee Pahlad ji started saying that Mahatma, you are like a man of strong use, then why are the fees lying on the earth, after listening to the words of Pahlada, the donor, Trupti ji said, O Hari devotee, you are wise and the ultimate devotee of Lord Shri Narayan. In the world, youth in the form of delusion and enjoyment is never satisfied, that is why man has to suffer the cycle of the world and he has to take birth again and again in this fate of death. The rest of the work is obtained gold, but the form remains in it, that is, salvation is attained by not doing any kind of work, this is the reason why I renounced all work and adopted Paramhansa Vritta, neither I will do work nor I will have to wander in the vaginas, eat whatever I get. Take good food even if you have not eaten, do not eat even if you do not get it Or still no worries, even if I got earth to sleep, even if I got a good padded bed, even if I slept on letters, I have no interest in any particular thing. Therefore, it is best to meditate on the feet of the Supreme God by staying detached from the enjoyment of the subject, this Prahlada ji, you are the supreme devotee who appears from the feet of Shri Narayan, that is why this quality element has come to you after telling so much story, Devarshi Narad said knowledge from Yadhishthira Daitya dear ji. After receiving it, Pahlada ji circumambulated him and went to his city.
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