श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां स्कंध अध्याय 10 आरंभ
देवासुर संग्राम की कथा राजा परीक्षित को संबोधित करते हुए सुखदेव जी बोले हे राजन् श्री नारायण की चाल से देखते गाना अमृत पीने से वंचित रह गए और देवता सहारा अमृत विदेशियों ने उन पर बड़ा क्रोध आया और आपने आज तू को लेकर देवताओं के ऊपर आक्रमण कर दिया अमृत पहन कर देता गणप संपन्न हो चुके थे फिर भगवान श्री हरि नारायण की कृपा भी प्राप्त थी देवताओं ने भी अस्त्र उठा लिया देवराज इंद्र समुद्र मंथन से प्राप्त एरावत हाथी पर सवार होकर वहां आ गए और दैत्य राज वाली मैदान व द्वारा निर्मित बाय इयर्स नामक विमान पर आरूढ़ होकर आ गए सभी देवताओं एवं देव सागर शिव सागर के तट पर वस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध करने लगे पैदल-पैदल से और सवार से सवार का युद्ध होने लगा रथो की गड़गड़ाहट हाथियों की चिड़चिड़ा हट और तलवारों की खनक से आकाश गूंज उठा कोई पैदल था तो किसी की सवारी गीत था कोई सी ह पर तो कोई बकरे पर सवार था विधि विकसित विमान पर सवार होकर विविध कर रहे थे इसी युद्ध को देवासुर संग्राम कहते हैं हे राजन देवराज इंद्र ने अपनी तीक्ष्ण बाणों से देते राजबली को घायल कर दिया उसके शरीर से रक्त धारा बहने लगी तब उसने माया युद्ध करने का विचार किया और आपने बेहस विमान को आकाश में ले जाकर दृष्टि से गायब होकर ईट पत्थर अग्नि एवं पहाड़ वर्ष आने लगा नग्न होकर राक्षसों हाथ में खप्पा और नंगी तलवार लिए हुए देवताओं पर टूट पड़ी या देखकर देवताओं में घबराहट उत्पन्न हो गई दरकार वे श्री हरि नारायण की शरण में जा पहुंचे तब भगवान दीन हितकारी हाथों में शंख गदा चक्र एवं पद में धारण किए हुए गरुड पर सवार होकर देव दल में उपस्थित हुए उन्होंने देखते ही कहल ने भी देश के ने उस पर त्रिशूल से आक्रमण किया किंतु श्री नारायण जी ने उसे पकड़कर वाहन सहित महा डाला और माली सुमाली माला एवं आदि देशों को सुदर्शन चक्र से सिर काट लिया और देवताओं को धीरज बांधते हुए बोले थे देवताओं तुम्हें देवताओं से भाई खाना उचित है निश्चित होकर देशों से युद्ध करो तुमने अमृत पान कर लिया इसलिए तुम्हें मृत्यु का भय नहीं करना चाहिए त्रिलोकी नाथ के इस प्रकार के वचन को सुनकर देवताओं के क्रम में नई शक्ति समा गई और उत्सर्जित होकर देशों से युद्ध करने लगे
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Skandha Chapter 10 Beginning
The story of Devasura Sangram while addressing King Parikshit, Sukhdev ji said, O king, seeing the moves of Shri Narayan, the song was deprived of drinking nectar and the deity Sahara nectar foreigners got very angry on him and today you have attacked the gods with you. Ganapa was finished wearing the nectar of the lamp, then the blessings of Lord Shri Hari Narayan were also received, the gods also took up the weapon, Devraj Indra came there riding on the Airavat elephant obtained from the churning of the ocean and bye years built by the demon kingdom. All the Gods and Gods came on a plane named Sagar, equipped with clothes on the shore of Shiva Sagar, started fighting on foot and rider to rider, the roar of chariots, the irritable hut of elephants and the chirping of swords echoed the sky. Somebody was on foot, some had a ride, some were riding on a goat, some were riding on a developed plane, they were doing various things, this war is called Devasura Sangram, O king, Devraj Indra injured Rajbali with his sharp arrows. When the blood stream started flowing from his body, then he fought Maya. And you took the Behas Vimana in the sky and disappeared from sight, the brick stone, fire and mountain year started coming naked. When Shri Hari went to the shelter of Narayan, Lord Deen appeared in the Dev Dal riding on Garuda, holding conch, mace, chakra and post in benevolent hands. ji caught him and put him along with the vehicle and cut off the head of the gardener Sumali rosary and other countries with Sudarshan Chakra and while patiently said to the gods, it is appropriate for the gods to eat brothers from the gods, be sure to fight with the countries, you have drank the nectar. You should not be afraid of death, listening to this kind of word of Triloki Nath, a new power was absorbed in the order of the gods and emitted and started fighting with the countries.
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