श्रीमद् भागवत कथा पुराण छठवां स्कंध अध्याय 7 आरंभ
गुरु बृहस्पति के रूप होने पर देवताओं का विश्वरूप को पुरोहित बनाना श्री सुखदेव जी से राजा परीक्षित कहने लगे हैं महामुनी जिस कारण से देवताओं ने बृहस्पति को त्याग कर विश्वरूप को अपना पुरोहित स्वीकार किया यह सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् देवराज इंद्र को अपने समृद्ध साली राज्य एवं सिहासन का अभिमान हो गया था 1 दिन इंद्रदेव अपने इंद्रियानी साक्षी के साथ राज सिंहासन पर विराजमान थे उसी समय देव गुरु बृहस्पति का आगमन हुआ किंतु इंद्र से अभिमान वासना हो उठ कर उनका सम्मान किया और ना ही सिहासन से उठकर आसान ही प्राप्त किया जबकि गुरु बृहस्पति के जाने पर वे उठकर गुरुदेव को अपने सिंहासन पर बैठ आते थे बृहस्पति जी कुछ और समझ गए कि देवराज कोई सिया का मत छा गया है और तुरंत ही वहां से रूट होकर वापस अपने निवास स्थान पर लूट गए तब जब देवराज इंद्र को होश आया तो बहुत पचाने लगे और विचार किया कि जिस गुरु की कृपा से मुझे धन एवं राज प्राप्त हुआ है मैंने राज मद में चूर होकर उसी गुरु का अपमान किया उसके उपरोक्त मात्र से मेरा संपूर्ण वैभव नष्ट हो जाएगा अतः गुरुदेव के वापस चलकर विनती करके अपराध क्षमा करना चाहिए और उसी समय बृहस्पति जी के घर की तरफ चल दिए बृहस्पति जी ने अपने योग बल से जान गए इंद्रदेव आ रहे हैं सो हुए तक्षण अंतर्ध्यान हो गए उनके घर को खाली पाकर अत्यंत निराशा पूर्ण अवस्था में इंद्रलोक वापस लौट आए जब यह समाचार देशों के रूप में शुक्राचार्य को ज्ञात हुआ तो दैत्य से बोले हे दानों देवताओं परम पंगत करके इंद्रपुरी पर अधिकार करने का सुनहरा अवसर है शुक्राचार्य की आज्ञा पाकर विश्वास ने सेना सहित इंद्रपुरी को घेर लिया देवता गण प्रांगण हुए और अति व्याकुल होकर पितामह ब्रह्मा के पास जाकर सब वृतांत कहा ब्रह्माजी बोले हैं इंद्रदेव तुम से बड़ा भारी अपराध हुआ है तुम अहंकार के वशीभूत होकर देव गुरु बृहस्पति जी का अपमान करके अनुचित कार्य किया है जिसके कारण तुम्हें दैत्य से हार खानी पड़ी अब कल्याण इसी में है कि ट्रस्ट के पुत्र विश्वरूप को अपना पुरोहित बनाओ क्योंकि विश्वरूप बड़ा तपस्वी एवं ज्ञानी है ब्रह्मा जी के वचन सुनकर इंद्र और देवता गण विश्वरूप के पास विनायक करते हुए कहने लगे हे महात्माओं हम आपके पास भीख मांगने आए हैं कृपा करके आप हमारे पुरोहित बन जाए जिससे हमारा राज स्थिर बना रहे यह सुनकर विश्वरूप बोले यह देव पुरोहित करना अत्यंत नीच कर्म है इसे तपोबल घटता है किंतु आप लोग की बात डाली भी नहीं जा सकती अतः तुम्हारी बात हमें स्वीकार है इस तरह विश्वरूप ने देवताओं को पुरोहित बना इस स्वीकार किया और उसके प्रयत्न से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की और इंद्र जी इंद्रासन पर विराजमान हुए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Sixth Skandha Chapter 7 Beginning
When Guru is in the form of Brihaspati, making Vishwaroop a priest of the deities, King Parikshit has started asking Shri Sukhdev ji, because of which the gods abandoned Jupiter and accepted Vishwaroop as their priest, Shri Sukhdev ji said, O King Devraj, bless Indra with his prosperity. The sister-in-law had become proud of the kingdom and the throne, 1 day Indradev was sitting on the throne with his sense witness, at the same time Dev Guru Brihaspati arrived, but Indra became proud of him and respected him and neither got up easily from the throne. Whereas when Guru Brihaspati left, he used to get up and sit on Gurudev on his throne. When I came to my senses, I started digesting a lot and thought that by whose grace I have got wealth and kingdom, I insulted the same Guru by being crushed in the head, by the above mere my entire splendor would be destroyed, so I went back to Gurudev and requested him. the offense should be forgiven and the same Time moved towards Brihaspati ji's house, Brihaspati ji came to know from his yoga power that Indra Dev is coming, while sleeping, he immediately went back to Indraloka in a very despairing state after finding his house empty, when this news was in the form of countries Shukracharya. When he came to know about this, he said to the demon, that it is a golden opportunity to take control of Indrapuri by following the orders of Shukracharya. It is said that Indradev, a bigger crime has been committed than you, you have done an inappropriate act by insulting Dev Guru Brihaspati ji due to ego, due to which you had to lose to the demon, now the welfare is in this that make Vishwaroop, son of the trust as your priest because Vishwaroop He is a great ascetic and knowledgeable. Hearing the words of Brahma ji, Indra and the deities started praying to Vishwaroop, saying, "Mahatmas, we have come to you to beg, please become our priests so that our kingdom remains stable," said Vishwaroop. It is a very despicable act to priest this deity, it reduces to austerity, but you cannot even speak, so we accept your point, in this way Vishwaroop accepted the gods by making them priests and with his efforts the gods conquered the asuras. And Indra ji sat on Indrasan
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