श्रीमद् भागवत कथा पुराण छठवां स्कंध अध्याय 5 आरंभ
दक्ष के 10000 पुत्रों की उत्पत्ति तथा नारद जी को दक्ष का श्राप देना श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् परमेश्वर की कृपा से दक्ष की स्त्री के गर्भ से 10000 पुत्र उत्पन्न हुए दक्ष प्रजापति ने अपनी 10000 पुत्रों का नाम है लक्ष्य रखा है यह सभी इस ओमान तथा आचरण में एक समान थे अपने पुत्रों से 10 प्रजापति ने कहा यह पुत्रों तुम्हें संतान उत्पन्न करना है इसलिए सर्वप्रथम तुम लोग जाकर भगवान श्री नारायण की तब करो दक्ष महाराज के वचन सुनकर वे नारायण नामक तीर्थ में जाकर भगवान की तपस्या करने लगे एक समय देवर्षि नारद का वहां पर आगमन हुआ नाराज जी उन पर कृपा करके बोले थे यशो समस्त जगत को उत्पन्न करने वाले आदि पुरुष एक ही है उन्हें के तेज प्रताप से समस्त एवं नजर प्राणियों में जीवन विद्यमान रहता है महाप्रलय काल के पश्चात आदि पुरुष ही शेष रहते हैं तुम लोग महामूर्ख हो बालको क्योंकि तुम लोग ने पृथ्वी का आदि एवं अंत नहीं देखा तो शृष्टि की उत्पत्ति किस तरह करोगे एक देश ऐसा है जहां एक ही पुरुष निवास करता है एक बिल ऐसा है जिसमें बाहर निकालने का कोई मार्ग ही नहीं है एक ही स्त्री ऐसी है जो नित्य नए पुरुषों की कामना करती है और एक अनेक रूप धारण करते हुए एक नदी ऐसी है जो आगे पीछे दोनों दिशाओं में प्रभावित होती है 25 मंत्रों से युक्त एक गरीब घर बना है उसे भी तुमने नहीं देखा और ब्रज के सम्मान चक्र को भी नहीं देखा तथा एक विचित्र कहानी वाला हंस है तुम लोग उसे भी नहीं जानते अथवा जब तक तुम लोग उसे देखते नहीं तब तक सृष्टि की रचना नहीं कर सकते इस प्रकार ज्ञान का उपदेश देकर देवर्षि नारद चले गए तब हरसू अपने आपस में बैठकर विचार विमर्श किया कि पृथ्वी जीव है और उसका अंत मोक्ष है अर्थात लिंक शरीर जीव कहलाता है और आत्मा बंधन है जब तक हम उनको जानते नहीं तब तक संसार की रचना कैसे कर सकेंगे दक्ष के बुद्धिमान पुत्रों ने विचार किया कि मनुष्य पताल रूपी विल से वापस नहीं आता बुद्धि ईटीवी चार्ली स्त्री हाय जीव इस सी उल्टा स्त्री के पीछे दिन-रात भटकता है संसार ही मया रुपी नदी है और 25 तत्वों से बना मानव तन है और कालचक्र के धार चूड़े के समान पहने एवं व्रत के समान कठोर है दक्ष प्रजापति के पुत्रों ने नारद जी के वचनों का स्मरण कर मोक्ष प्राप्त करने का निश्चय किया और सृष्टि निर्माण करने का विचार मंच से त्याग दिया उधर नारद जी की यह करतूत दक्ष प्रजापति को ज्ञात हो तो वह अंततः व्याकुल एवं चिंतित हुए तब ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति को बहुत समझाया तब दक्ष ने पुनः अपनी स्त्री से एक हजार पुत्रों को उत्पन्न किया और उनका सफल रखकर बोले यह पुत्रों तुम लोग वन में जाकर परमेश्वर के नाम का ध्यान स्मरण एवं तब करो वह भी उसी स्थान पर पहुंचे जहां उनके भाई पहुंचे थे नारायण सरोवर पहुंचकर जल पीकर ओम नमो नारायण पुरुष आए महानते विश्व शुद्ध सत्य विष्णु सहाय महा हनसा धीमी नामक महामंत्र का जाप करने लगे नारद जी वहां भी आ पहुंचे और ज्ञान का उपदेश देकर सफल नामक के दक्ष प्रजापति के पुत्र को संसार से विरक्त कर दिया यह समाचार ज्ञात होते ही दक्ष जी अत्यंत उपित हुए उसी समय वीणा बजाते हुए देवर्षि नारद उस स्थान पर आगमन हुआ उन्हें देखकर विरोध में बैठे दक्ष जी बोले हैं नारद तूने मेरा 11 हजार पुत्रों को बहला-फुसलाकर प्रीति युक्त कर दिया हुए अभी देवपुत्र एवं ऋषि गढ़ से मुक्त नहीं हुए तुम स्वयं को महा ज्ञानी एवं सत्यवादी समझते हो फिर तुमने किस लिए मेरे पुत्रों को ज्ञान का उपदेश देकर गृहस्थाश्रम में व्यक्त किया तुम मेरी वंश परंपरा का नाश करने वाले तुले हुए हो इस कारण मैं तुम्हें साथ देता हूं कि तुम एक ही स्थान पर दो घड़ी से ज्यादा देर तक नहीं कर सकते यदि ठहर भी गए तो तुम्हारे सिर में भयानक पीड़ा उत्पन्न हो जाएगी यद्यपि नारद जी की दक्ष प्रजापति को श्राप दे सकते थे किंतु उन्हें श्री हरि नारायण का दास समझ कर रखना दिया और उनके दिए हुए सर आप को बहुत अच्छा कह कर शिरोधार्य कर लिया और मुस्कुराते हुए वहां से चले गए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Sixth Skandha Chapter 5 Beginning
The birth of 10000 sons of Daksha and curse of Daksha on Narad ji Shri Sukhdev ji said, O King, by the grace of God, 10000 sons were born from the womb of Daksha's woman, Daksha Prajapati has named his 10000 sons and has set a target for all this in this Oman. And were similar in conduct, 10 Prajapati said to his sons that these sons, you have to produce children, so first of all you go and worship Lord Shri Narayan, then after listening to the words of Daksha Maharaj, he went to a pilgrimage named Narayan and started doing penance to God. Narad came there, angry ji had said with kindness to him that Yasho, the original man who created the whole world, is the only one, because of his glory, life exists in all and visible beings, after the Mahapralaya period, only the original people remain. You guys are great idiots, children, because you have not seen the beginning and end of the earth, then how will you create the universe. A country is such that where only one man resides, a bill is such that there is no way to get out, only one woman is one who always wishes for new men And taking many forms, there is a river that is affected in both directions back and forth, a poor house with 25 mantras has been built, you have not even seen it and have not even seen the honor wheel of Braj and a swan with a strange story Yes, you people do not even know him or you cannot create the universe until you see him, thus by preaching knowledge, Devarshi went to Narada, then Harsu sat among himself and discussed that the earth is a living entity and his end is salvation. That is, the link body is called Jiva and the soul is bondage, until we know them, how will we be able to create the world, the wise sons of Daksha thought that human beings do not come back from the will of Patala Wisdom ETV Charlie Woman Hi Jeev like this inverted Wandering day and night after a woman, the world is a river of Maya and a human body made up of 25 elements, and wearing the edge of Kalachakra like a bangle and hard as a fast, the sons of Daksha Prajapati attained salvation by remembering the words of Narad ji. Decided to do it and abandoned the idea of creating the world from the stage, on the other hand Narad ji's act When Daksha Prajapati came to know, then he was finally distraught and worried, then Brahma ji explained a lot to Daksha Prajapati, then Daksha again produced a thousand sons from his woman and keeping them successful said these sons, you go to the forest in the name of God. Remember the meditation and then he also reached the same place where his brothers had reached Narayan Sarovar and after drinking water Om Namo Narayan Purush came Mahante Vishwa Shuddh Satya Vishnu Sahay Maha Hansa Dheem and started chanting the maha-mantra, Narad ji also came there and got knowledge. Daksha ji became very upset as soon as he came to know about this news, playing the veena, Devarshi Narad came to that place after seeing him, sitting in protest, Daksha ji said, Narad, you are mine. Having seduced 11 thousand sons and made them endowed with love, Devputra and Rishi have not yet been freed from the stronghold, you consider yourself to be great knowledgeable and truthful, then why did you express knowledge to my sons in the householder's home, you are of my lineage. destroyers are bent For this reason I support you that you cannot stay at the same place for more than two hours. Considered Narayan's slave and given him sir, he beheaded you by saying very good and left from there smiling.
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