श्रीमद् भागवत कथा पुराण छठवां स्कंध अध्याय दो आरंभ
परमेश्वर के नाम की महिमा एवं आज मिल के परम धाम जाने का वृतांत श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित यमदूत ओं के वचनों को सुनकर श्री हरि नारायण के पार्षद बोले धर्मराज के दरबार में अन्याय होता है क्योंकि उनके दूध निरपरा हाथ साधु-संतों को कष्ट पहुंचाते हैं अजमल और धर्मात्मा के साथ दुर्व्यवहार करते हुए घसीट रहे थे जब पाप एवं पुण्य कब्रिस्तान जानकर श्री धर्मराज अन्य अन्याय करेंगे तो मृत्यु लोक के प्राणी किस का सहारा लेंगे यमदूत तो तुम लोग नहीं जानते कि जिस मनुष्य ने जानकर अथवा अनजाने में भूल कर कर या हंसी में भी भगवान का नाम ले लिया उसे स्वान चोरी गांव एवं ब्राम्हण हत्या पर स्त्री संभोग तथा शराब पीने जैसे पाप से मुक्ति मिल जाती है और आज मिलने तुम मृत्यु के समय बारंबार नारायण नारायण का कर पुकारा था इसके कई जन्मों के पाप छूट गए और यह बैकुंठ धाम जाने का पात्र हुआ प्रभु के नाम के स्मरण करने के बाद इससे कोई पाप कर्म नहीं किया पता या दंड का भागी नहीं है जैसे सिद्धि भगवान के नाम का स्मरण करने से होती है वैसी सिद्धि और किसी तरह नहीं प्राप्त होती है इसने अत्यंत समय में भगवान श्री नारायण के नामों का उच्चारण कर अपने समस्त पापों का प्रायश्चित कर लिया अतः आप लोग इसे यमलोक नहीं ले जा सकते इस प्रकार के वचन कह कर श्री नारायण के पार्षदों ने यमदूत से आज मिल को बचा लिया एवं जूतों के वापस चले जाने के बाद पार्षद गण भी चले गए तब अजमेर मन ही मन स्वयं को धिक्कार कर कहने लगा कि ब्राह्मण कुल में जन्म लेने मैंने पाप कर्म किया वह अभागा संपूर्ण जगत में कोई ना होगा नारायण नाम का उच्चारण करने मात्र से मुझे भगवान के भेजे हुए दिव्य पुरुष के दर्शन हुए और भयानक यमदूत खींचकर मुझे नर्क में ले जाना चाह रहे थे वह भाग गए अब मैं जीवन भर उत्तम कर्म करूंगा और भगवान श्री हरि नारायण के चरणों बिंदुओं का ध्यान करके अपना परलोक सुधार लूंगा आज मिल का मन मोह माया से विरक्त हो गया और वह हरिद्वार चला गया और पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान का ध्यान करने लगा योग साधना द्वारा उसने मन को जीत लिया 1 वर्ष तक कठिन साधना करने के पश्चात धूमधाम से चारों पर सहित एक रत्न जड़ित विमान में आज मिल को लेने के लिए आया उसने दिव्य विमान में अरुण को कारवां परमधाम को चला गया अतः हे राजा नारायण नाम तो आज मिल के बेटे का था अंत समय में अपने बेटों को पुकारा था किंतु श्रीहरि की महिमा देखो कि ऐसे महा पापी का भी उद्धार प्रभु ने किया तो प्रभु के भक्तों का दुख कैसा होगा जो आठों पहर उनके नाम की वंदना करते हैं
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Sixth Skandha Chapter Two Beginning
Shri Sukhdev ji said, Glory of the name of God and the story of going to the supreme abode today, O King Parikshit, listening to the words of the eunuchs, the councilor of Shri Hari Narayan said that there is injustice in the court of Dharmaraja because his milkless hands cause suffering to the sages and saints. Ajmal and the virtuous were being dragged by misbehavior when Shri Dharmaraja would do other injustice knowing the graveyard of sins and virtues, then by whom will the creatures of the death world take the help of the eunuchs, so you do not know that the person who knowingly or unknowingly did it by mistake Or took the name of God even in laughter, he gets freedom from sins like swan theft village and Brahmin killing, female sex and drinking alcohol and meeting today you repeatedly called the tax of Narayan Narayan at the time of death, his sins of many births were waived. And he became eligible to go to Baikunth Dham, after remembering the name of the Lord, he did not commit any sinful act or is liable to punishment, just as the accomplishment is achieved by remembering the name of God, the same accomplishment is not achieved in any other way. In the utmost time the names of Lord Shree Narayan were used. After chanting, you atone for all your sins, so you cannot take it to Yamlok, saying such words, the councilors of Shree Narayan saved the mill from the eunuch today and after the shoes went back, the councilors also left. Ajmer, in his mind, cursed himself and started saying that I had committed a sinful act by being born in a Brahmin family, that unfortunate there will be no one in the whole world, just by uttering the name Narayan, I had a vision of the divine man sent by God and dragged me by the terrible eunuch. He wanted to be taken to hell, he fled, now I will do good deeds throughout my life and after meditating on the feet of Lord Shri Hari Narayan, I will improve my world today And started meditating on God with devotion, he conquered the mind by doing yoga sadhna, after doing hard sadhna for 1 year, came to take the mill today in a gem-studded plane with pomp, he took Arun in the divine plane to the supreme abode. Gone, therefore, O King Narayan, today the name of Mill's son belonged to his sons in the end time. But look at the glory of Shri Hari that even such a great sinner was saved by the Lord, then how will the suffering of the devotees of the Lord who worship his name at eight o'clock
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