श्रीमद् भागवत कथा पुराण छठवा स्कंध अध्याय 16 आरंभ
राजा चित्रकेतु को ज्ञान प्राप्त हुआ तथा संसार से विरक्त श्री सुखदेव जी भागवत कथा सुनते हुए राजा परीक्षित से बोले हे राजा राजा चित्रकेतु एवं उनकी पुत्रियों को बुलाकर देवर्षि नारद विद राजकुमार को संबोधित करके अपने योग बल से जीवात्मा को बुलाकर आकाश में खड़ा करके बोले हे जो आत्मा देखो तुम्हारे माता-पिता एवं संबंधित तुम्हारे लिए अत्यंत व्याकुल हो रहे हैं इसलिए तुम वापस आकर अपने शरीर में निवास करो और अपने माता-पिता को सुख देते हुए सातों दीपों पर राज करो यह सुनकर वह बोला है देवर्षि यह मेरी किस जन्म के पिता है तथा माइक इस जन्म में इनका बेटा हूं माय आपने कर्मानुसार देवता मनुष्य पशु पक्षी सर आदि योनि में भटकता रहा हूं जिस तरह धान की हुई वस्तु को प्राणी अपना नहीं समझता उसी तरह लाख 84 योनियों में भटकते हुए जीवात्मा किसी के अधीन नहीं होता पूर्व जन्म में मैं और राजा चित्रकेतु दोनों मनुष्य राजा थे और आपस में लड़ते थे जब मैं अपनी सेना से अलग होकर वन में जा छिपा तब इन्होंने आकर मेरे सिर काट लिया इस कारण मे इनका पुत्र होकर इस जनम में हूं इन्हें दुखी किया यह सत्य जान लो कि यह जीव जन्म मरण से रहीद ईश्वर स्वरूप होने से जगत में प्रगट होता है इनका ना कोई मित्र है और ना कोई पुत्र है ना कोई किसी का पिता है और ना ही कोई पुत्र है पूर्व जन्म के कर्म अनुसार जीव को संसार में आना होता है मैं अपने पूर्व जन्म में दातों में करते समय चीटियों की एकमात्र में पानी डाल दिया था हुए सभी चीटियां मर गए जो की संख्या में एक करोड़ थी वह चीटियां राजा चित्रकेतु की एक करोड़ रानियां हुई और मुझे 20 देकर मार डाला इस प्रकार उन सभी ने बदला लिया यह कह कर जीवात्मा लुप्त हो गई तब नारद जी बोले हे राजन् युवा तुमने जो कुछ भी कहा हुए बातें अक्सर सत्य है इस प्रकार राजा चित्रकेतु का मोहभंग हुआ
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Sixth Wing Chapter 16 Beginning
King Chitraketu got knowledge and while listening to the Bhagwat story, Shri Sukhdev ji, detached from the world, said to King Parikshit, O King, by calling King Chitraketu and his daughters, addressed to the prince with the power of yoga, Lord Narada, called the soul and stood in the sky and said. The soul who sees that your parents and relatives are getting very worried for you, so you come back and reside in your body and, giving happiness to your parents and rule the seven lamps, hearing this, he has said, Lord, for what birth is this my birth? He is the father and Mike is his son in this birth, according to your deeds, I have been wandering in the deity, man, animal, bird, head, etc. In birth both I and King Chitraketu were human kings and used to fight amongst themselves, when I separated from my army and hid in the forest, then they came and beheaded me, that is why I am in this birth as their son, made them sad, know this truth. that this soul remained from birth and death from God. Being a form manifests itself in the world, he has no friend, no son, no one's father, and no son, according to the deeds of the previous birth, the soul has to come into the world, I do it in my teeth in my previous birth. When water was put in the sole of the ants, all the ants died, which was one crore in number, that ant king Chitraketu had one crore queens and killed me by giving 20, thus all of them took revenge by saying that the soul disappeared. Then Narad ji said, O young king, whatever you have said is often true, thus King Chitraketu was disillusioned.
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