श्रीमद् भागवत कथा पुराण छठवां स्कंध अध्याय 13 आरंभ
देवराज पर ब्रह्म हत्या का आक्रमण श्री सुखदेव जी बोले वीरता सूर्य को मारने से समस्त देवता गांड प्रसन्न हुए किंतु देवराज इंद्र को प्रसन्न ताना हुई या सुनकर राजा परीक्षित ने पूछा कि महात्मा असुर राज को मारकर भी देवराज को प्रसंता क्यों नहीं हुई तब कथा का रसपान कर रहे सुखदेव जी बोले हे राजन् वृत्रासुर के मारते ही ब्रह्म हत्या के जान डालने का स्वरूप धारण कर उसकी योनि से रक्त बहता था तब से दुर्गंध उठती थी बाल बिखरे हुए खून से लथपथ इंद्र को निकलने के लिए दौड़ी उसके भय से भयभीत होकर देवराज भाग चले और तीनो लोक में शरण लेने के लिए दौड़ते रहे किंतु कहीं भी शरण ना मिली तब हुए उत्तर दिशा की छोर पर माना सरोवर में जाकर कमल पुष्प के नाल में जा सके और चांडाल में स्वरूप ब्रह्म हत्या से भरा का स्वरूप धारण कर कमल पुष्प पर मंडराने लगे उसके डर से 1000 वर्ष तक भूखे प्यासे इंद्र जी कमल हाल में छिपे रहे वहां पर लक्ष्मी जी ने उनका पालन किया उधर इंद्रासन सुना रहने से ऋषि-मुनियों ने राजा नामों को इंद्रासन का राज देने का विचार करके राजा नल के सम्मुख प्रस्ताव रखा है ऋषि यों के वचन सुनकर वे बोले मैं देवलोक में राज करने योग्य नहीं हूं तब ऋषि यों ने कहा कि हम लोग तुम्हें अपने शुभ कार्यों द्वारा सामर्थ प्रदान करेंगे राजा ने भूख ने तब जाकर इंद्रासन स्वीकार किया किंतु भूतकाल के पश्चात वे इंद्राणी सखी का वक्त हो गए और कहने लगे हे इंद्र वाणी इस समय इंद्रासन पर मैं विराजमान है अतः तुम मेरी सेवा में क्यों नहीं रहती इंद्राणी पर मित्रता थी वह जयपुर के प्रथम से डरकर गुरु बृहस्पति के पास जा पहुंचे और बता स्वर में बोली है गुरुदेव राजा निर्गुण मुझ पर दृष्टि रखता है और मुझे वह करना चाहता है पतिव्रत धर्म की रक्षा हेतु से बचाने का कोई उपाय बताएं इंद्राणी के वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले तुम उसे 1 माह की अवधि मांग लो इंद्राणी ने वैसा ही किया तब गुरु बृहस्पति ने इंद्र को ढूंढने का कार्य अग्निदेव को सौंपा उन्होंने वापस आकर ब्रह्म हत्या के डर से मानसरोवर तालाब में छिपे इंद्रदेव का वृतांत बृहस्पति जी को बतलाया तब इंद्र का समाचार मिलने पर अवधि के दिन समाप्त हो चुके थे इंद्राणी के पास निर्गुण ने अपना दूध भेजा तब वह बृहस्पति जी की समझाने के अनुसार दूध से बोली है दूध तुम राजा में रूप से जाकर कहो कि सब राजगुरु एवं अश्वमेघ यज्ञ करने के पश्चात मनुष्य इंद्रासन का अधिकार होता है किंतु उसने एक भी योग्य नहीं किया इसलिए सुखपाल अर्थात पालकी में बैठकर मुझे लेने आए और वह पालकी उठने वाले ऋषि मुनि एवं ब्राह्मण हो राजा निर्गुण इंद्राणी पर काम मिला था सो धर्म अधर्म उसने विचार ना किया और जबरजस्ती ऋषि मुनि तथा ब्राह्मणों के कंधे पर पालकी रख पाकर इंद्राणी के भवन की ओर चल दिया तथा रिसीव को पर को ठोकर मार कर सर्प कहा अर्थात जल्दी जल्दी चलो उसका अधर्म पूर्ण कार्य देखकर ऋषि वरुण एवं ब्राह्मणों ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया अरे मूर्ख तू ऋषि यों से सेवा लेता है और सर कहता है इसलिए तू शांत हो जा ऋषि यों के श्राप से वह सब होकर पृथ्वी पर गिरा और इंद्राणी का धर्म बज गया तब बृहस्पति जी मानसरोवर पर जाकर इंद्र से कहने लगे यह देवराज अब तुम बाहर निकाला हो तब इंद्रदेव बोले हैं गुरुदेव महिंद्रा महा हत्या के डर से बाहर नहीं निकल सकता इंद्रदेव के वचन सुनकर जब पति जी कहने लगे कि तुम जिस की चिंता मत करो यज्ञ करने से भगवान बड़े-बड़े पापों से मुक्त कर देते हैं तब तुम भी अश्वमेध यज्ञ करो ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Sixth Skandha Chapter 13 Beginning
Lord Sukhdev ji said that all the gods were pleased by killing the heroic Sun, but Devraj Indra was pleased or taunted or heard, King Parikshit asked why Devraj was not pleased even after killing Mahatma Asura Raj. Sukhdev ji said, O king, as soon as Vritrasura was killed, blood used to flow from his vagina, taking the form of killing Brahma, since then the foul smell emanated from the hair and ran to get Indra soaked in blood, being frightened by his fear, Devraj fled. Walked and kept running to take shelter in all the three worlds, but could not find shelter anywhere, then he could go to the lake of lotus flower at the end of the north direction and take the form of a lotus flower in the form of Chandala, full of Brahma murder. Indra ji, who was hungry and thirsty for 1000 years, was hiding in the lotus hall due to the fear of it hovering there, Lakshmi ji followed him, while listening to Indrasan, the sages and sages, considering the king's names to be the king of Indrasan, proposed in front of King Nal. Hearing the words of this sage, he said that I will rule in Devlok. I am not worthy, then the sage said that we will give you strength through our auspicious works, the king accepted Indrasan after hunger, but after the past, he became the time of Indrani Sakhi and started saying, O Indra Vani, this time on Indrasan I am seated, so why don't you stay in my service, there was friendship on Indrani, fearing the first of Jaipur, she went to Guru Brihaspati and said in a telling voice, Gurudev King Nirgun keeps an eye on me and I want to do that of Pativrat Dharma Tell me some way to save Indrani's words, Brihaspati said after listening to Indrani's words, ask her for a period of 1 month. I told Brihaspati ji's account of hidden Indra, then on receiving the news of Indra, the days of the period were over, Nirgun sent his milk to Indrani, then she spoke with milk as per Brihaspati ji's explanation, you go to the form of the king and say That all Rajguru and Ashwamedha Yagya After doing this, a person has the right to Indrasan, but he did not do a single thing, so Sukhpal came to take me by sitting in a palanquin and he got work on King Nirgun Indrani, who was a sage and a brahmin, so he did not think about religion and wrongdoing. Forcibly, after placing a palanquin on the shoulders of the sage Muni and the Brahmins, he walked towards Indrani's house and stumbling upon the receiver and said to the snake, that is, let's hurry, seeing his unrighteous deeds, the sage Varun and the Brahmins got angry and cursed you, you fool. The sage takes service like this and the head says that's why you calm down, because of the curse of the sage like this, all that fell on the earth and the religion of Indrani was played, then Brihaspati ji went to Mansarovar and started saying to Indra, now you have taken out this god. Indradev has said that Gurudev Mahindra cannot come out of the fear of mass murder, when the husband starts saying that after hearing the words of Indradev, do not worry about whom God frees you from great sins by performing Yagya, then you also perform Ashwamedha Yagya. you will be freed from the sin of murder
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