श्री सुखदेव जी द्वारा राजा प्रियव्रत की कथा का वर्णन राजा परीक्षित बोले हे महात्मा किस तरह जीवन व मोक्ष गति की प्राप्ति होती है उसका वर्णन आपने किया है प्रवृत्ति मार्ग एवं स्वर्ग आदि लोगों की प्राप्ति का वर्णन किया है जीवो के बार-बार जन्म मरण के विषय में चर्चा किया है मन्वंतर ओं का वर्णन किया तथा प्रियतम एवं राजा उत्पाद एवं शो का वर्णन करते हुए 5 में स्कंध में समुद्र पर्वत एवं स्मारकों का वर्णन किया किंतु आप मनुष्य को उत्तम मार्ग अपनाने का उपदेश कीजिए राजा परीक्षित के वचनों को सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् जो प्राणी मन वचन एवं कर्म से जानबूझकर पाप करता है उससे उसके अनुसार नरक भोगना होता है इसलिए उचित यही है कि मानव धन प्राप्त कर के प्राणियों को अपने कल्याण का सदैव प्रयास करना चाहिए यदि किसी प्रकार का पाप हो जाए तो प्रयास करना चाहिए प्रायश्चित करने से पाप धुल जाते हैं सुखदेव जी के वचनों को सुनकर राजा परीक्षित पुनः बोले हे ज्ञानी महात्मा आप करके प्रेषित करने से पाप पाप मुक्त हो जाता है यदि वह पुनः पाप करे तो उसकी किसी तरह मुक्ति होगी यह सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजन् जिस प्रकार रोगी मनुष्य औषधि का सेवन करने से रोग मुक्त हो जाता है परंतु स्वयं से ना रहा कर खट्टा मीठा पदार्थ खा लेता है और गुनाह रोग ग्रस्त हो जाता है जैसे स्नान करने के उपरांत हाथी अपने शरीर का धूल मिटाने डाल लेता है तो उसके स्नान करने से क्या लाभ उसी तरह पाप का प्रायश्चित करके पुनः पाप करने की स्थिति पूर्ववत हो जाती है अतः बाप को पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिए ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए तथा धाम धर्म तप आदि शुभ कार्य करते हुए सत्य बोलना चाहिए परोपकार करना तथा किसी प्राणी को कष्ट ना पहुंचाना श्रेष्ठ कर्म है भागवत भजन करने से संपूर्ण वासना का नाश होकर अलौकिक ज्ञान का उद्धार होता है ए राजा भक्ति मार्ग से उसी तरह पाप का नाश होता है जिस तरह सुखदेव के उदय होने से घना कोहरा नष्ट हो जाता है जिससे एक बार श्री प्रभु श्री कृष्ण चंद्र जी के चरणों का ध्यान किया उसे स्वप्न में यमदूत दिखलाई नहीं देते हे राजन मैं तुम्हें एक महा पापी ब्राह्मण की कथा सुनाता हूं उस आज जमील ब्राह्मण को अपनी दासी से अत्यधिक प्रदीप थी उसके संग से ब्राह्मण अत्यंत संतोषी प्रवृत्ति का हो गय वह चोरी ठगी बेईमानी और युवा खेलकर धन लाने का उद्गम करने लगा उसके 10 पुत्र थे और उसने अपने छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा छोटे पुत्र से ब्राह्मण को अत्यधिक प्रेम था इसलिए वह आज दोपहर गुस्से याद करता था धीरे-धीरे आज यामीन ब्राह्मण की 80 वर्ष की आयु पूर्ण हो गई और उसकी मृत्यु का समय निकट आ गया तब यमराज की आज्ञा पाकर यमदूत उसे लेने आए उस समय अमरूदों का भयानक रूप देखकर आज मिल अपने पुत्र नारायण का नाम लेकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा नारायण का नाम पुकारने से भगवान विष्णु जी की आज्ञा से चार दूध संघ गधा चक्र और पद धारण किए हुए ऑयल मिल के पास उपस्थित हुए और यमदूत ओं से कहने लगेंगे धर्मराज के दूध तुम को दुख देकर प्रताड़ित करते हुए यमराज के दरबार में नहीं ले जा सकते हैं यह सुनकर यमदूत बोले हे मित्र इस ब्राह्मण ने अपने जीवन काल में बहुत पाप किया है इसके पापों का दंड देने के लिए धर्मराज किया गया हमें इसी ले जाना नर्क में डालेंगे और इसे दुख देंगे उनके वचनों को सुनकर श्री नारायण के दूध आने लगे हे धर्मराज के दो तो तुम लोग या भी नहीं जानते कि मनुष्यों में पाप करने वाला सभी दंड के पात्र हैं अथवा उसमें से पूछ ही मनुष्य दंड देने योग्य हैं हमें धर्म और अधर्म का रूप समझना तब धर्मराज के दूध बोले हे देव वेद एवं शास्त्र में रूप कर्म लखा है उसे धर्म तथा जो अशोक लिखा है उसे आधार मत समझना चाहिए वेदों की रचना स्वयं श्री हरिनारायण ने की है पाप पुण्य कर्म करने वाले प्राणी के साक्षी सूर्य चंद्रमा अग्नि वायु दिन-रात संध्या पृथ्वी काल धर्म तथा आस है उन्हीं से प्राणी के पाप एवं पुण्य कर्म का लेखा लेकर मनुष्य को सुख एवं दुख दिया जाता है संसार में समस्त जीवों से चलते फिरते उठते बैठते पाप एवं पूर्ण होता है किंतु यहां आज मिल ब्राह्मण अत्यंत दुराचारी है इसे ब्राह्मण के घर जन्म लेकर शास्त्रानुसार विद्या अर्जित कि वह माता-पिता आज्ञाकारी था सूर्य देव विष्णु भगवान तथा अग्नि देव की भक्ति करते हुए भक्ति पूर्वक धर्म चरण करता था किंतु एक दिन पिता की आज्ञा से जंगल से लकड़ी और पुष्पा आदि लेने के लिए गया और एक भील को वैसा के साथ हंसते मुस्कुराते हुए आते हैं देख उच्च विचार करने लगा हुए सभी अजमल को देख कामदेव के वंश में होकर इसे आकर लिपट गई ब्राह्मण ने भी काम अंत होकर उसके साथ भोग विलास किया और वैसा को अपने घर ले आया तथा माता पिता गुरु स्त्री और धर्म कर्म करना त्याग नास्तिक हो गया वैसा गमन एवं चोरी ठगी लूटपाट जुआ खेलने आदि दुष्कर्म करने से इस के समस्त पुणे नष्ट हो गए इसलिए हम इसे यमराज के पास ले जा रहे हैं
Shri Sukhdev ji narrated the story of King Priyavrat, King Parikshit said, oh Mahatma, you have described how one attains the speed of life and salvation, you have described the path of tendency and attainment of heaven etc. The subject has been discussed, described the Manvantaras and while describing the beloved and king product and show, in 5, described the sea mountain and monuments in the wing, but you should exhort man to adopt the best path, listening to the words of King Parikshit, Shri Sukhdev Ji said, O king, a creature who intentionally commits a sin through mind, word and deed has to suffer hell accordingly, so it is appropriate that by getting human wealth, living beings should always try for their welfare, if there is any kind of sin, then the effort. Sins are washed away by atonement, after listening to the words of Sukhdev ji, King Parikshit again said, O wise Mahatma, by sending it by yourself, sin becomes free, if he commits sin again, then he will be liberated in some way, after hearing this, Shri Sukhdev ji said oh king how A sick person becomes free from the disease by taking medicine, but by not staying with himself, he eats sour-sweet substances and suffers from a sinful disease, as after taking a bath, an elephant puts his body to remove the dust, then by taking his bath. In the same way, after atonement of sin, the situation of committing sin again becomes undone, so to destroy the father completely, one should follow celibacy and speak the truth while doing auspicious work like religion, austerity etc. It is the best action not to cause trouble, by worshiping the Bhagwat, by destroying all lust, supernatural knowledge is delivered. Lord Shri Krishna meditated on the feet of Chandra ji, he does not see eunuchs in his dream, O king, I tell you the story of a great sinner Brahmin, that today Jameel Brahmin was very bright with his maidservant, with her company the Brahmin became very contented. He used to steal, cheat, cheat and bring money by playing youth. He started having 10 sons and he named his younger son Narayan, the Brahmin was very much in love with the younger son, so he used to remember anger this afternoon, gradually today Yameen Brahmin's age is completed 80 years old and his death. When the time came near, after getting the permission of Yamraj, the eunuchs came to take him, seeing the terrible form of guava, today he started shouting loudly by taking the name of his son Narayan. And holding the position, appeared near the oil mill and the eunuchs would start saying to them that the milk of Dharmaraja cannot be taken to the court of Yamraj while torturing you with pain and hearing this, the eunuch said, oh friend, this brahmin has done a lot in his life time. Dharmaraja has been done to punish his sins, he will take us to hell and will hurt him, listening to his words, the milk of Shri Narayan started coming, O Lord of Dharma, you do not even know whether to commit sins among human beings. Everyone deserves punishment or only human beings are liable to be punished. Understanding the form of religion, then the milk of Dharmaraja said, O God, the form has been written in the Vedas and scriptures, it should not be considered as the basis of religion and what Ashoka has written, the Vedas have been composed by Shri Harinarayan himself. Fire, air, day and night, evening, earth, time, religion and hope are given to man, by taking account of the sins and virtuous deeds of the creature, happiness and sorrow are given to man, while walking and walking with all the living beings in the world, sin and complete are fulfilled, but today Brahmins are found here. He was born in the house of a Brahmin and acquired the knowledge according to the scriptures that he was obedient to his parents, while worshiping the Sun God Vishnu and the Fire God, he used to perform his religious steps with devotion, but one day with the permission of his father, he used to take wood and flowers from the forest. Gone for and came to see a Bhil laughing and smiling with Vaisa, all thinking high, seeing Ajmal in the lineage of Kamadeva, came and wrapped it, the Brahmin also ended the work and enjoyed pleasure with him and took Vais to his house. Brought it and did not give up doing the work of the parents, the guru, the woman and the religion. Became a believer, because of such movement and theft, cheating, looting, gambling, etc., all of its Pune was destroyed, so we are taking it to Yamraj.
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