श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय 9 आरंभ
हिरण रूप में राजा का जन्म एवं मृत्यु के पश्चात ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की कथा श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित मत्यु के समय हिरण के बच्चे के प्रति अत्यधिक प्रतीत होने के कारण उन्हें हिरण योनि की प्राप्ति हुई फिर भी पिछले जन्मों की बातें उन्हें याद रही जो कि हरि कृपा से संभव हुआ था वह अपने मन में विचार करने लगे कि जितना अधिक प्रेम मैंने अज्ञानी होकर उस हिरण के बच्चे से किया उतना मैंने अपने इस्त्री एवं पुत्र से नहीं किया मुंह के कारण ही मुझे हिरण योनि की प्राप्ति हुई यही सोचकर वे किसी हिरनी से प्रेम नहीं करते थे सो हिरण तन में रहते हुए भी पेड़ के गिरे हुए सूखे पत्ते खाकर प्रभु के चरणों का ध्यान करते श्री सुखदेव जी कहने लगे हे राजा परीक्षित मृत्यु के समय हिरण के बच्चे से अत्यधिक प्रतीत राजा के मन में थी जिस कारण उन्हें किरण योनि की प्राप्ति हुई जब ऐसा महात्माओं की ऐसी गलती हो गई जो साधारण मनुष्यों की क्या बात हरि भजन छोड़कर जो प्राणी मायामो को अपनाएं उनकी यह गति होगी राजा भरत उन हिरण शरीर में रहकर भी हर समय अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढते रहते और यह विचार करते रहते कि यह तन छूटे और मनुष्य का तन पाकर भागवत भजन करूं सूखे पत्ते खाने से उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था 1 दिन नदी पार करते समय हुए गिर गए और मृत्यु को प्राप्त हुए और अगले जन्म में एक ज्ञानी ब्राह्मण के घर में पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ उनका नाम भरत रखा गया उन्हें अपने पूर्व जन्म की बातें याद थी इसी कारण हुए संसारी मोह माया में ना फंसे और दिन-रात प्रभु के चरणों का ध्यान करते पिता की डांट पर भी पढ़ाई में मन नहीं लगा अतः लोग उसे जड़ मूर्ख भरत कहने लगे कोई उसे हिला देता तो खा लेते पिला देता तो पी लेते अन्यथा कुछ सोच विचार ना करते दिन-रात प्रभु का ध्यान करने में मग्न रहते थे भारत के भाइयों ने उनका हाल देख कर उन्हें अलग कर दिया किंतु फिर भी वह भोजन दे दिया करते थे जब उन्हें देखा कि यह कोई काम नहीं करता तो उसे खेत की रखवाली का काम सौंप कर बोले हैं भाई तुम कोई काम तो करते नहीं हो इसलिए तुम खेत की देखभाल करो जिससे चिड़ियों ना खाएं और पशु ना चल पाए परंतु जड़ भरत ने रखवाली ना कि वहां बैठकर प्रभु का ध्यान एवं स्मरण करने लगे उस देश में एक भी लो का राजा रहता था जो भद्रकाली का परम भक्त था और उन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना से प्रतिज्ञा की थी कि मेरे पुत्र उत्पन्न होगा तो मैं तुम्हें मनुष्य की बलि दूंगा जब उसके घर पुत्र उत्पन्न हुआ तो भीलो के राजा ने अपने नौकरों को एक फर्स्टपोस्ट मनुष्य पकड़ कर लाने की आज्ञा दी वह लोग खोजते खोजते उस स्थान पर पहुंचे जहां जड़ भरत बैठे थे वे जड़ भरत को बनकर भील राज के पास ले गए उस हष्ट पुष्ट नौजवान को देखकर दिलराज अति प्रसन्न हुए और बोले तुम लोग ऐसे मनुष्य पकड़ कर लाए हो जिससे मृत्यु का कोई भय ही नहीं है यह तो आनंद मूर्ति दिखाई देता है इसका बलिदान लेकर भद्रकाली अत्यंत प्रसन्न होगी भील राज के पुत्र एवं ब्राम्हण रोहित भी मूर्ख थे वेद शास्त्र का उन्हें ज्ञान ना था वह नहीं जानते थे कि मनुष्य का बलि देना उचित है या अनुचित उन्हें जड़ भरत का मुंडन कराकर कान लगाकर फिर स्नान कराया शरीर पर चित्र चंदन आदि मालकर नए वस्त्र पहनाएं और उत्तम भोजन कराएं तत्पश्चात पुष्प माला पहनाकर जड़ भरत को भद्रकाली की मूर्ति के सामने वाली करने के लिए ले गए जड़ भरत ने विचार किया की जितना उत्तम भोजन आज इसने मुझे कराया उतना उत्तम भोजन मेरे भाइयों ने कभी ना कर आया यह विचार कर उसे तलवार के नीचे अपना सिर झुका दिया जिस समय ब्राह्मणों ने राजा को तलवार चलाने का आदेश दिया उसी समय देवी भद्रकाली कुप्ति होकर प्रगट हुई और आंखें लाल-लाल करके बोली अरे दोस्तों तुम लोग एक नील अपराध हरि भक्त ब्राह्मण को मार रहे हो यदि मैं इसकी रक्षा नहीं करती तो नारायण जी मुझे रूट हो जाएंगे यह कह कर चीत्कार करती हुई भद्रकाली ने अपनी खड़ा से भीलों के राजा आरोप रोहित का सिर काट लिया और जड़ भरत की स्तुति करते हुए होली है ब्रह्म देव आप मेरा अपराध क्षमा करें यह दुष्ट जिलों का राजा मेरा भक्त था किंतु आप हरि भक्त हैं और हरि भक्तों को कष्ट पहुंचाने वाला प्राणी मेरा शत्रु होता है जो मनुष्य प्रभु श्री हरि नारायण के चरणों की प्रतीत करता है उससे कोई भी प्राणी कष्ट नहीं पहुंचा सकता ऐसे वचनों को कह कर जड़ भरत की रक्षा करने के उपरांत भद्रकाली अंतर्ध्यान हो गई
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Pancham Skandha Chapter 9 Starts
The story of the birth of the king in deer and after death in the Brahmin clan, Shri Sukhdev ji said, "During the time of King Parikshit, he received a deer vagina due to his deer vagina, yet he got the talk of previous lives. Remember that what was possible with Hari Kripa, he started thinking in his mind that the more I loved that deer, I did not do it with my iron and son, because of my mouth, I got deer vagina. Thinking that he did not love any deer, so the deer, while living in the body, eating dried leaves of the tree and meditating on the feet of the Lord started saying. Due to which they received Kiran vagina, when such a mistake of Mahatmas has made such a mistake of ordinary humans, who should adopt the Hari Bhajan, who will adopt the creatures of the Mayams, King Bharat will stay in those deer body and find the path of his liberation all the time even in those deer body. Stay and consider that this body was left and Manu After getting Bhagwat Bhajan after getting the body of the soul, his body became very weak by eating dry leaves, 1 day he fell while crossing the river and died and died in the next life as a son born in the house of a learned Brahmin. Bharat was kept, he remembered the things of his previous birth, that is why the world did not get caught in the world and meditating on the feet of the Lord, even after the scolding of the father, he did not mind studying, so people started calling him the root fool Bharat If he would have shaken, he would have eaten, he would have drunk, otherwise he would not think of some thoughts, he used to be engrossed in meditating on the Lord day and night. I saw that if it does not do any work, then he has given him the work of guarding the field and said that you do not do any work, so you take care of the field so that the birds do not eat and the animals could not run, but the root is not guarded by the root, not sitting there and sitting there. In that country, there used to be a king of a single person who was an ardent devotee of Bhadrakali and to get a son in that country. It was a promise to refuse that my son would be born, then I will sacrifice you to the human being, when the son of Bhilo was born, then the king of Bhilo ordered to bring a firstpost man to catch a firstpost man, he reached the place where the root was searching for the people searching for Bharata was sitting, he took the root to Bhil Raj and took it to Bhil Raj and Dilraj was very pleased to see the strong young man and said that you have brought such a person who has no fear of death, this bliss is visible. Bhadrakali will be very happy to take sacrifice, Bhil Raj's son and Brahmin Rohit was also foolish, he did not know the Veda scripture, he did not know that it was appropriate to sacrifice man or unfair him, he shaved his root Bharat and took a bath and took a bath on his body Wear new clothes by making sandalwood etc. and provide good food, then wearing a flower garland and took the root to make Bharata in front of the idol of Bhadrakali. Considering this, he bowed his head under the sword At the time when the Brahmins ordered the king to run a sword, at the same time, Goddess Bhadrakali was revealed and the eyes were red and said, "Oh friends, you guys are killing a indigo crime Hari devotee Brahmin, if I do not protect it then Narayan Yes, I will root me, saying that Bhadrakali, while saying that the king of the Bhils, cut the head of Rohit and praising the root Bharata, Holi is Brahma Dev, forgive me, forgive me, this was my devotee of wicked districts, but was my devotee of wicked districts but was my devotee but You are a devotee of Hari and the creature who hurts Hari devotees is my enemy who seems to be the feet of Lord Shri Hari Narayan, no creature can hurt by saying such words and after protecting the root Bharata happened
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