श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय पांच आरंभ
पुत्रों को ऋषि भाग देव जी का उपदेश एवं महात्माओं के गुणों का वर्णन महात्मा ऋषि देव जी बोले हे पुत्र समान प्रजा जैन साधु महात्माओं की सेवा एवं उसकी कृपा प्राप्त करने से मोक्ष द्वार खुल जाता है उसकी संगति से मन को शुद्ध प्राप्त होती है संत महात्माओं का स्वभाव क्षमाशील होता है वह किसी के दूर वचन कहने से विरोध नहीं करते मन में किसी प्रकार का कपट भाव नहीं रखते उन्हें हरि भक्तों से अत्यंत प्रेम होता है किंतु जो मनुष्य धन-संपत्ति स्त्री पुत्र आदि से अत्यंत प्रेम करता है यही बंधन दुख का कारण बन जाता है और अज्ञान के अंधकार में डूब जाता है और श्री हरिनारायण की पहचान नहीं कर पाता जो मनुष्य लोग और अहंकार का त्याग कर प्रभु के चरणों के प्रतीत करता है उसे परम गति की प्राप्ति होती है उपयुक्त कथा सुनाने के पश्चात श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित ऋषि भाऊ देव जी के सभी पुत्र ज्ञानी थे फिर भी उन्होंने उन सभी को ज्ञान की शिक्षा दी और आपने बड़े पुत्र भरत को राष्ट्रीय श्रम पर बैठाकर स्वयं घर का त्याग कर सन्यासी की वेशभूषा धारण कर ब्रह्म पर्वत देश प्रस्थान कर गए मौन व्रत धारण करके गूंगे बहरे के समान रहने लगे इस पर सांसारिक मनुष्य उसके योग साधना में विघ्न डालते यह देखकर उन्हें अजगर ब्रिज धारण कर ली सबवे एक ही स्थान पर लेटे-लेटे खाने पीने लगे तब मल मूत्र उन्हीं स्थान पर त्यागने लगे किंतु उनके मल मूत्र से दुर्गंध की वजह सुगंध उठती थी उस उगम से 40 कोस तक के देश सुगंधित होने लगे उनके इस रूप में देव अप्सराएं मोहित होने लगे और ऋषि मुनि अपने आंतरिक ज्ञान से उनके अवतार को जान विधित रूप से उनकी स्तुति करने लग सब प्रकार की सिद्धियां ऋषि भाग देव जी की सेवा करती किंतु उन्हें उनसे किसी प्रकार का मुंह नहीं हुआ
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Pancham Skandha Chapter Five Start
The sons have the teaching of the sage Bhag Dev Ji and the description of the qualities of the Mahatmas, Mahatma Rishi Dev Ji said, "Save the Sadhu, like a son, opens the salvation gate by serving and receiving his grace, his association gives the mind pure to the mind, saints get pure. The nature of it is forgiveness, he does not oppose someone away from saying that he does not have any kind of fraud in his mind, he loves Hari devotees, but a person who loves wealth and wealth, a woman son etc. It becomes the reason and sinks into the darkness of ignorance and is unable to identify Shri Harinarayan who wants to renounce the people and ego and seem to be of the feet of God, he gets the ultimate speed, after narrating the appropriate story, Shri Sukhdev ji He said, all the sons of King Parikshit Rishi Bhau Dev Ji were knowledgeable, yet he taught knowledge to all of them and you sat on the national labor and abandoned the house on the national labor and wearing the costume of a monk and left the Brahma mountain country and went to silence Stay like deaf deaf by wearing a fast On this, a worldly man hurts his yoga practice, seeing that he was wearing a dragon bridge and started eating lying down in one place, then the stool started abandoning in the same place, but the reason for the bad smell from their stool urine was aroused. The countries up to 40 curses from Ugam started getting fragrant in this form Dev Apsaras started getting fascinated and sage Muni started praising his incarnation with his inner knowledge and praising him as a legitimately, all kinds of siddhis would serve the sage Bhag Dev Ji, but They did not face any kind of mouth
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