श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंद अध्याय 4 आरंभ
ऋषि भाऊ देव का राज अभिषेक एवं राजा नाभि का तक हेतु वन गमन श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित श्री हरि नारायण का अवतार जानकर राजा नाभि ने ब्राह्मणों एवं यात्रियों को बहुत सावधान दिया उसके राज्य में दरिद्रता ना रहे तब ऋषि देव जी अपने बाल चरित्र से राजा एवं रानी को सुख पहुंचाते हुए तरुण जवान हुए तब राजा ने ऋषि-मुनियों एवं विद्यमान से विचार-विमर्श किया और बोले हे विद्यमान ब्राह्मणों एवं प्रजनन मैं इस स्वामी देव को राज भार सौंप कर रानी सहित वन में जाकर श्री हरि के चरणों का ध्यान एवं भजन करता चाहता हूं यह सुनकर सभी जन अत्यंत प्रसन्न हुए तत्पश्चात राजा ने शुभ मुहूर्त में ऋषि भाऊ देव जी का राज्य अभिषेक धूमधाम से किया और स्वयं रानी के साथ तक हेतु 1 में प्रस्थान कर गए और कालांतर में प्रभु की भक्ति में लीन राजा एवं रानी में योग्य अभ्यास द्वारा अपने नश्वर शरीर का त्याग पद को प्राप्त हुआ धर्मात्मा ऋषि भाऊ देव जी धर्म पूर्वा राज करने लगे उनके राज्य में सभी पूर्ण रूप से सुखी थे चरित्रहीन का नाम ना था उनके राज्य में शेर एवं बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे जाती पाती का कोई भेदभाव ना था देवता उनकी प्रशंसा किया करते थे यह देखकर इंद्र देव के मन में श्री ऋषि भाव देव के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हुई जिसके कारण उन्होंने उनके राज्य में जल नहीं पर साया तब रिसीव भाव देव को यह ज्ञात हुआ तो इंद्र की अज्ञानता पर मुस्कुरा कर अपने योग बल से ऐसा कर दिया कि प्रजा को जब आवश्यकता होती तो इच्छा अनुसार जल बरसाता यह देखकर देवराज इंद्र के मन में एशिया भाव निकल गया और वह विचार करने लगे कि राजा इस राव देव कोई असाधारण मनुष्य नहीं है निश्चय ही श्री हरि ने अवतार लिया है तब वह अपने अपराध को क्षमा करने के लिए जयंत नामांक की कन्या को लेकर उसके पास आए और क्षमा याचना करते हुए बोले हे प्रभु मुझसे महान भूल हुई है आपने इस दास को क्षमा प्रदान कर इस कन्या को स्वीकार करें अंतर्यामी प्रभु ने वैसा ही किया क्योंकि उसकी इच्छा में वही थी विवाह के पश्चात जयंती के गर्व से 100 पुत्र उत्पन्न हुए उसमें से 9 पुत्र सांसारिक माया मोह में विरक्त होकर वन में जाकर प्रभु के श्री चरणों का ध्यान करने लगे उन्हीं को नाम योगेश्वर कहते हैं तब मैं बाद में योगेश्वर ने राजा जनक को ज्ञान का उपदेश दिया वही नव पुत्र नव खडों के राजा हुए ऋषि भाऊ देव जी के जेष्ठ पुत्र भरत ने राजधानी में रहकर राज किया बाकी के 21 पुत्र तब करने लगे यज्ञ करते समय एक बार ऋषभदेव जी अपने समस्त राजाओं को ज्ञान का उपदेश देते हुए कहने लगे हे प्रजा जान यह माया रुपी संसार नश्वर है इस पृथ्वी में रहने वाले जितने भी जड़ एवं चेतना प्राणी है एक दिन सब का नाप हो जाना है एक नारायण ही शेष रहेंगे और आदि पुरुष अविनाशी हैं तुम सभी उन्हें परब्रह्मा परमेश्वर के नहान का ध्यान स्मरण करो एवं संसारी माया का त्याग कर ज्ञानी एवं महात्माओं को संगत करो उसी में तुम सब का कल्याण है बुरे लोगों की संगति करने से यह मानव रुपी जीवन नष्ट होगा कि साथ में पर लोग भी बिगड़ेगा संसार में धान और विस्तृत रूप दो ऐसी माया है जिसमें बंद कर संसार के प्राणी नष्ट हो जाते हैं जो इन से विरक्त होकर श्री हरि नारायण का ध्यान भजन करता है या भव से पार होकर परम गति को प्राप्त होता है अतः साधु-संतों की संगति करो उसी के कल्याण होगा सत्संग के बिना ज्ञान प्राप्त करना स्वप्न के समान झूठा है और प्रभु के चरणों की प्रति प्राप्त करना अत्यंत कठिन है महात्माओं की संगति से धीरे-धीरे ज्ञान बढ़ता है और चंचल मन सांसारिक माया से हटकर प्रभु के चरणों की प्रतीत करने लगा है ऋषभदेव जी बोले हे राजा जानू एक बात और भी कहता हूं उसे ध्यान से सुनो संसार में नर्क और बैकुंठ धाम के दो द्वार हैं साधु संत की सेवा करना एवं सत्संगति करना मोक्ष द्वार खोल देता है तथा पर स्त्री गमन करना चोरी मदिरापान तथा प्रभु के चरणों से दूर रहने वाले प्राणी को नर्क की प्राप्ति होती है
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Shrimad Bhagwat Katha Puran Pancham Skanda Chapter 4 Start
Rishi Bhau Dev's rule for Abhishek and King Nabhi said, Lord Sukhdev ji said, knowing the incarnation of King Parikshit Shri Hari Narayan, King Navel gave a very careful to Brahmins and travelers, there is no poverty in his kingdom, then sage Dev ji is his child character Tarun became young while bringing happiness to the king and queen, then the king discussed with the sages and sages and said, "Out of the existing Brahmins and breeding, this Swami Dev was handed a secret to this Swami Dev and went to the forest along with the queen. I want to pay attention and hymns that all the people were very happy to hear this, after that the king did the kingdom of Rishi Bhau Dev Ji in auspicious time with pomp and left in 1 with the queen himself and later on time, the king engaged in devotion to the Lord And by worthy practice in the queen, the sacrifice of his mortal body was renounced, the Dharmatma Rishi Bhau Dev Ji started to reign Dharma, all were fully happy in his kingdom. Used to drink, there was no discrimination of Jati Pati, the god Seeing this, I used to do this, seeing that there was jealousy in the mind of Indra Dev in the mind of Shri Rishi Bhava Dev, due to which he did not shared water in his kingdom, then it was known to the deaion Dev, then it was known to the ignorance of Indra and smiling on the ignorance of Indra with his yoga force It was done that when the subjects were needed, seeing this, Devraj Indra got into the mind of Indra and he started thinking that this Rao Dev is not an extraordinary human being, surely Shri Hari has incarnated To forgive the crime, Jayant came to him with the girl of Namank and apologized and said, "Lord, I have made a great mistake, you have forgiven this slave and accept this girl. He was the same after marriage, after the marriage, 100 sons were born with the pride of Jayanti, out of which 9 sons were involved in the forest and started meditating on the Lord's feet, they are called the name Yogeshwar, then I later Yogeshwar gave knowledge to King Janaka The same new son of the new son was preached to the sage Bhau Dev Ji The eldest son of Bharata ruled in the capital and the remaining 21 sons started doing the yajna, once Rishabhdev ji preaching knowledge to all his kings and said, "Praja jaan, this Maya is a world mortal, the world is mortal." There is also a root and consciousness being a creature. One day everyone has to be measured, one Narayana will remain and Adi Men are indestructible, all of you, remember the meditation of God God and renounce the worldly illusion and compile the knowledgeable and mahatmas in it. The welfare of all is that it will be destroyed by the association of bad people, that along with the people, people will also deteriorate, there are two such Maya in the world, in which the creatures of the world are destroyed by shutting down, which is disgusted with them and Shri Hari Narayana's attention hymns or crosses the ultimate speed by crossing the bhav, so the saints and saints will be able to get the welfare of that, without satsang, it is false like a dream and it is very difficult to get a copy of the feet of God. With the association of Mahatmas, knowledge gradually increases and the fickle mind from worldly illusion Moving out of the feet of the Lord, Rishabhdev ji said, "Raja Janu says one thing more, listen to him carefully, in the world, there are two gates of hell and Baikuntha Dham. Women's movement theft, the creature who stays away from the feet of the Lord gets hell
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