श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय 3 आरंभ
ऋषभदेव के रूप में रह जाना भी की रानी के गर्भ से श्री नारायण का जन्म लेना श्री सुखदेव जी कहने लगे हे राजा परीक्षित राजा अग्नि ध्रुव के 1 चले जाने के पश्चात उनके पुत्र नाभि राजा हुए किंतु बहुत काल तक हुए निसंतान रहे अतः पुत्र की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी पत्नी मेरू देवी के साथ वन में जाकर बहुत दिनों तक यज्ञ पुरुष का तप किया उसके पश्चात घर आकर रिसीवर को बुलाकर यज्ञ किया यज्ञ संपन्न हुआ और तब शंख गदा चक्र और पद्मश्री युक्त होकर भगवान श्री नारायण आपने चतुर्भुज आयत रूप में प्रकट हुए उन्हें देखकर आ जाना भी सहित उपस्थित सभी ऋषि गण वहां प्रणाम करके विधि प्रकार से स्तुति करने लगे देव गणों ने पुष्प वर्षा की तब राजा नाभि हाथ जोड़कर कहने लगे हे प्रभु आप समस्त चराचर में वास करने वाले सर्वशक्तिमान हैं आप की लीला अपरंपार है किसी की इतनी सामर्थ्य है जो आपके गुणों का बखान कर सकें हे दयानिधि आप कृपा करके मुझे ऐसा वर दे जिससे आपके सामान पुत्र की प्राप्ति हो राजा के मृदुल वचन सुनकर श्रीहरि प्रसन्न होकर बोले हे राजन तुमने मेरे सन पुत्र पाने की इच्छा से तब एवं यज्ञ किया है क्योंकि मेरे समाज समस्त सृष्टि में अन्य कोई नहीं है इसलिए स्वयं में ही अवतरित पुरुष के रूप में तुम्हारे घर जन्म लूंगा यह कह कर यज्ञ भगवान अंतर्ध्यान हो गए उसके पश्चात राजा ने ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को दान देकर विदा किया और प्रभु का प्रसाद ले जाकर अपनी रानी मेरी बीवी को खिलाया प्रसाद खाने के तुरंत प्रभु की कृपा प्राप्त हुई और मेरी देवी गर्भवती हो गई तब ब्रह्माजी सहित अन्य देवता गण आकर प्रभु की स्तुति करते हुए राजा नाभि से कहने लगे हे राजा अपना भी तुम्हारा भाग्य सराहनीय है जो स्वयं त्रिलोकीनाथ तेरे पुत्र के रूप में अवतार लेंगे गर्भ स्तुति करके देवगुण चले गए धीरे-धीरे 9 महीने पूर्व हुए दसवें महीने के आरंभ में श्री हरिनारायण ने रानी मेरु देवी के गर्भ से जन्म लिया और आपने चतुर्भुज रूप का प्रदर्शन कर आया प्रभु का दर्शन करके राजा नाभि और रानी मेरु देवी अत्यंत प्रसन्न हुए और दंडवत प्रणाम करके प्रेम पूर्वक उसकी स्तुति करने लगे देवताओं ने अपने विमान पर बैठा कर उसको वर्षा अपरा रासो के नृत्य किया तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने स्वयं आकर प्रभु का नामकरण किया और उनका नाम ऋषि देव जी रखा तब श्री हरि अपनी लीला प्रगट करके साधारण बालक के समान होने लग
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Pancham Skandha Chapter 3 Starts
It is also to live as Rishabhdev that the birth of Shri Narayana from the womb of the queen, Shri Sukhdev started saying. After the King Parikshit King Agni Dhruva left 1, his son became a navel king, but he was childless for a long time, so he was childless, so attain the son For for him, he went to the forest with his wife Meru Devi and meditated on the Yajna Purush for a long time, after that the receiver came home and performed a yajna and then Lord Sri Narayana appeared in a quadrilateral verse by making Shankha Gada Chakra and Padma Shri with Shankha Gada Chakra and Padma Shri. Seeing them, all the sages present, including all the sages, started praising there and praising the method of law, then the king of flowers, then the king folded the navel and said, "Lord, you are the almighty of all the people who live in all the charachar. That there is so much strength that can tell your qualities. Because my society all the creation There is no one else, so I will take birth in your house as a man incarnated in myself, after saying that the sacrifice, the king became introspective of the sages and the Brahmins and offered away by donating it to the sages and the Brahmins and by taking the offerings of the Lord, my queen is my wife The grace of the Lord immediately got the grace of eating prasad fed and my goddess became pregnant, then the other gods including Brahma came and praised the Lord and said to the king navel, the king is also commendable your fate, who himself is a son of Trilokinath as Trilokinath is your son Devegun went to Devagun by praising the womb, gradually, in the beginning of the tenth month, Shri Harinarayan took birth from the womb of Rani Meru Devi and you came out of the quadrilateral form and saw the Lord King Nabhi and Rani Meru Devi. The gods, who were pleased and praised him with love, sat on their plane and danced to the rain Apara Raso, after that Brahma ji came and named him the Lord himself and named him Rishi Dev Ji, then Shri Hari appeared to him, then Mr. Hari appeared to his leela Of ordinary child Starting equal
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