श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 29

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 29 आरंभ

नारद जी के योग बल द्वारा प्राचीन महर्षि का मोह भंग होना तथा विजेताओं का उपदेश देना मैथिली जी बोले तब नारद ज ने अपने योग बल से आकाश में एक बाग का दृश्य प्रस्तुत किया और राजा को वह भाग देखते हुए बोले हे राजन् जरा असमान की तरफ दृष्टि डालकर देखो कैसा आश्चर्य प्रकट करने वाला दृश्य है महाराज जी के वचन सुनकर राजा ने अपने नेत्रों को पर दिशा में उठाकर देखा तो फल फूलों से लगा हुआ एक सुंदर बगीचा दिखाई दिया उस बगीचे में चार द्वार थे तथा एक हिरण चौकड़ी भरता हुआ उसके स्वक्ष विचरण कर रहा था कुछ देर बाद बगीचे के पास एक बहेलिया आया और किरण को देखकर उसने पकड़ने के उद्देश्य से बाद में एक द्वार पर जाल बिछा दिया दूसरी द्वार पर आग लगा दी तीसरी पर शिकारी कुत्ते को बैठा दिया और चौथे द्वार पर पोयम हाथ में तीर धनुष लेकर जा बैठा किंतु फिर भी वही रन आनंद पूर्वक घास चर रहे थे एवं फूल चाय मार रहा था ऐसा आश्चर्यजनक दृश्य देखकर राजा प्राचीन भारतीय आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि देवर्षि यह कैसा आश्चर्यजनक दृश्य है हिरण को मारने का महिलाओं ने पूरा प्रबंध किया फिर भी हिरण निर्भय होकर कर रहा है उसे अपने प्राणों की चिंता नहीं जो इस तरह का चल रहा है यह सुनते ही नारदजी हंसते हुए बोले हे राजन् तुम्हारी भी तो यही गति है वृद्धावस्था आ चुकी है इंद्रियां शिथिल होने लगी है फिर भी तुझे होश नहीं आ रहा है जबकि दिन प्रतिदिन मृत्यु के दिन निकट आते जा रहे हैं कदापि सुखों की प्राप्ति की इच्छा से तुम्हारा मन वीर रक्त ना हुआ नारद जी के वचन को सुनकर राजा प्राचीन बाहर से का अंतर्मन का उठा और उसके चरणों पर अपना मस्तक भटकते हुए बोले हे भगवान आप ने मुझ पर बहुत बड़ी कृपा की जो मुझे सांसारिक माया में लिप्त हुआ प्राणियों को माया मोह के कष्ट दाई बंधन से मुक्त करके सन्मार्ग दिखाया अन्यथा मैं अपनी संपूर्ण आयु यूं ही व्यर्थ में गवा देता इतना कहकर प्राचीन बाहर सीजी उस समय तक करने के लिए बद्रिका आश्रम की तरफ चले गए और वहां जाकर अपनी मन मस्ती को एकाग्र कर स्वयं को प्रभु के चरण कमलों में अर्पित करते हुए तब करने लगे जिससे अंतिम समय में उन्हें मुक्त पद की प्राप्ति हुई उधर प्रज्ञता ने बहुत समय तक श्री नारायण का ध्यान एवं तब किया तब श्री नारायण अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर उन्हें वरदान देते हुए कहा अपराजिता हो तुम लोग गृहस्थ आश्रम का सुख भोगने के पश्चात मुक्ति प्राप्त होगे यह कह कर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए तब विजेता लोग श्री नारायण के वचन अनुसार घर के राह पर चल पड़े घर आते समय उन लोगों ने देखा कि वन उपवन एवं नगर जो उसके घर से प्रस्थान करते समय बसें हुए थे सब उजड़ गए गांव के गांव खंडहर हो गए यह देखकर विजेताओं ने विचार किया कि 1 देवताओं ने हमारे राज्य को उजाड़ दिया यह कहते हुए उन्होंने अत्यंत क्रोधित होकर वनों की तरफ प्रचंड दृष्टि डाली उसकी दृष्टि पढ़ते ही पल भर में 1 जलकर स्वाहा हो गया तब 1 देवता ने ब्रह्मा जी के पास भाग कर अपनी प्राण की रक्षा की और अपनी सहायता की पुकार करने लगे ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को आज्ञा दी तब चंद्रमा में जाकर प्रचेता से कहा कि अपराजिता लोग आप सभी ने 10000 वर्ष तक कठिन तप किया क्या इतने साल तक राज्य एवं नगर आदि पूर्वक बने रहेंगे यह विचार कर आपको निरपराध पर खुद नहीं करना चाहिए था इस वन में आकर डिसीजन भगवान श्रीहरि करतब करते हैं पशु पक्षी वनों से उत्पन्न होने वाले फलों से आपका पेट भरते हैं इसे जलाकर आपने भारी पाप कर्म किया है आप को बहुत बड़ा पाठक लगेगा तुमने सृष्टि की रचना हेतु श्री हरि नारायण का ताप एवं ध्यान किया है अतः आप को क्रोध करना शोभा नहीं देता इसलिए वृक्ष कन्या नीलू चना से विवाह कर सृष्टि सृजन का कार्य करो उससे तुम्हें अनेक पुत्र पुत्रियों की प्राप्ति होगी जिस समय यह बातें हो रही थी देवता गण निलुचुन्ना को लेकर आ पहुंचे चंद्रमा के समझने से प्रचेता का क्रोध शांत हो चुका था और उन्होंने अपने तपोबल से धधक रही अग्नि को भी शांत कर दिया तथा उस कन्या से गंधर्व रीति से विवाह संपन्न करा पिता की राजधानी महिपति पूरी में जा राज करने लगे कालांतर में उस कन्या से दक्ष नामक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसने श्री नारायण का बर्ताव किया और उसकी आज्ञा प्राप्त कर आने प्राणियों को उत्पन्न किया यह विदुर जी उस समय तक बजे तक लोगों ने माहिष्मती पूरी में सुख पूर्वक राज किया उसके पश्चात वे पश्चिम दिशा में प्रस्थान कर गए और वनों में जाकर श्री नारायण के चरण कमलों का ध्यान करते हुए अपना तन त्याग परम पद को प्राप्त हुए उपयुक्त कथा मैथिली जी के मुखारविंद उसे सुनकर विदुर जी हस्तिनापुर के लिए उसने आज्ञा लेकर चल पड़े

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Chaturthi Skandha Chapter 29 Beginning

When the ancient Maharishi was disillusioned by the power of Narada and preached the victors, Maithili ji said, then Narada with his yoga force presented a view of a garden in the sky and, seeing the part of the king, said, O king, just towards the uneven. Take a look and see what a wonderful sight it is, after hearing the words of Maharaj ji, the king raised his eyes in the direction and saw a beautiful garden full of fruits and flowers. After sometime a fowler came near the garden and after seeing the ray, he later set a trap on one door for the purpose of catching the ray, set fire to the second door, made the hunting dog sit on the third and Poyam in the hand at the fourth door. The arrow sat down with the bow, but still the same runes were happily grazing the grass and the flowers were teasing, seeing such a wonderful sight, the king expressed his astonishment and said that Devarshi, what a wonderful sight it is, the women made complete arrangements to kill the deer. Still the deer is fearless, he is worried about his life. No, listening to this kind of thing, Naradji laughed and said, O king, you too have the same speed, old age has come, your senses have started getting slack, yet you are not getting your senses, while day by day the day of death is getting closer. Never did your mind become brave due to the desire to attain happiness. Hearing the words of Narad ji, the king got up from outside and, wandering his head at his feet, said, oh Lord, you have done me a great favor which has given me a worldly blessing. Showed the path by freeing the living beings involved in Maya from the painful bondage of Maya, otherwise I would have wasted my entire life in vain, saying so much so that the ancients went towards Badrika ashram to do CG till that time and went there and left my mind. Concentrating on the fun, he started offering himself at the lotus feet of the Lord, due to which he attained a liberated position at the last moment, whereas Pragyata meditated on Shree Narayan for a long time and then Shree Narayan appeared in his four-armed form. Giving a boon, said that you are aparajita of the householder's ashram. After saying that you will get salvation after enjoying happiness, the Lord became contemplative, then the victorious people started walking on the way to the house according to the words of Shri Narayan. Seeing that all the ruined villages were ruined, the victors thought that 1 Gods had ruined our kingdom, saying this, they got very angry and cast a fierce gaze towards the forests. 1 The deity saved his life by running to Brahma ji and started calling for his help, Brahma ji ordered the moon, then went to the moon and told Pracheta that Aparajita people, all of you did hard penance for 10000 years, have you done so many years? Thinking that the state and city will remain intact, you should not have done it innocently by coming to this forest, Lord Shri Hari performs the feat. Animals and birds fill your stomach with the fruits arising from the forests. You have committed a great sin by burning it. You will feel a great reader, you have mentioned Shri Hari Narayan for the creation of the universe. You have done sin and meditation, so it does not suit you to get angry, so do the work of creation of the world by marrying a tree girl Neelu Channa, you will get many sons and daughters, when these things were happening, the deities of the moon came with Niluchunna. By understanding Pracheta's anger was pacified and he also pacified the fire burning with his tenacity and after marrying that girl in the Gandharva manner, he started ruling in the father's capital Mahipati Puri. The person who behaved like Shri Narayan and after getting his permission produced the living beings. While meditating on the lotus feet of Narayan, he gave up his body and attained the supreme position, after hearing the appropriate story, the mouthpiece of Maithili ji, Vidur ji left for Hastinapur with the permission.

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