श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 28 आरंभ
स्त्री रूप में राजा पुरंजन की उत्पत्ति एवं पूर्व जन्म के मित्र अभी ज्ञाता से भेंट राजा प्राचीन महर्षि को ज्ञान का उपदेश देते हुए देवर्षि नारद बोले हे राजन् दूसरे जन्म में पुरंजन जी को इस्त्री तन की प्राप्ति हुई और राजा मोरध्वज से विवाह हुआ बहुत दिनों तक राज सुख भोगने के पश्चात ऋषि अवस्थी द्वारा ज्ञान प्राप्त कर राजा मोरध्वज ने अपने पुत्र को राज चौक कर स्वयं अपनी पत्नी के साथ तपस्या करने के लिए वन में चले गए वहां पहुंचकर राजा मोरध्वज प्रभु के चरणों का ध्यान करने में लीन हो गए और बहुत दिनों तक करते रहे उनके श्री हरि की कृपा प्राप्त कर योग बल से आपने ना स्वर जिस का नाश हो शरीर का त्याग कर पर लोग चले गए तब उनकी पत्नी ने 1 से लकड़ियां इकट्ठा कर चिंता तैयार की किंतु माया के बंधन में पढकर राजा के मृतक शरीर को जलने के लिए चीता में अग्नि देने का सहारा ना कर पा रही थी और अत्यंत विलाप करने लगी उसी समय उसके पूर्वजन्म उसका मित्र अभी ज्ञाता उस स्थान पर आ पहुंचा और राजा मोरध्वज की स्त्री के रूप में पुरंजन को देखकर पहचान गया और उसकी स्त्री रोग पुरंजन से पूछा यह नारी तू इस तरह फूट फूट कर क्यों रो रही है यह अमृतसर वाला तेरा क्या लगता था और तू मुझे पहचानती है या नहीं अभी ज्ञाता के वचन सुनकर वही स्त्री बोली है महा अनुभवी आप कौन हैं और कहां से आए हैं मैं आपको नहीं पहचानती मैं इसलिए रो रही हूं कि मेरे पति देव का देहांत हो गया और उनका मृतक शरीर मेरे सम्मुख पड़ा है जिससे आप देख रहे हैं इन्हीं के मरने का शौक करके मैं रो रही हूं उस इस तरीके करूंगा पूर्ण वचन सुनकर आवरी ज्ञाता ने कहा है इस ऋतु पूर्व जन्म में पुरंजन नामक राजा की फरमाए अविज्ञता नामक 13 मित्र एक दिन मुझे छोड़ कर तू घर से अकेला चला आया और एक स्त्री के भोग विलास में पढ़कर मुझे भूल गया अतः तुझे इस जन्म में स्त्री धन की प्राप्ति हुई है हे पूरा नियम अब तुझे राजा मोरध्वज के मरने का शौक त्याग कर अपने पूर्व जन्म तन को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए तू अन्य जिलों के समान सांसारिक माया में फस कर सब कुछ भूल गया है माया मोह के कारण ही प्राणी की 8400000 योनियों में भटकता होता है अभी ज्ञाता के वचनों को सुनकर विस्तृत अंक प्राप्त पुरंजन के मस्तिष्क में ज्ञान का संचार हुआ और राजा मोरध्वज के मृतक शरीर को त्याग कर उसे अग्नि में प्रवेश कर दिया और श्री हरि नारायण का भजन पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से करते हुए कुछ काल के बाद अपने तन का त्याग करके अगले जन्म में पूर्व रूप में उत्पन्न होकर मित्रा विद्या का सेपरेट की इतनी कथा सुनकर नारदजी बोले ए राजा प्राचीन बाहर से तुमने बहुत दिनों तक राज्य किया यज्ञ तथा दान करने से तुम्हारा यह संपूर्ण जगत में व्याप्त हो गया किंतु यह सभी कार्य सांसारिक और अब सांसारिक माया में मन को समेटकर त्रिलोकी पति श्री नारायण के चरणों की भक्ति करो जिससे तुम्हारा परलोक सुधर जाएगा अन्यथा इस आवागमन वाले चक्कर से मुक्त हो पाना अत्यंत दुष्कर्म कठिन है दान एवं यज्ञ करने से देव लोगों का सुख प्राप्त होता है किंतु अवधि पूर्ण होने के उपरांत पुनः जन्म लेना होता है और जो वैराग्य लेकर केवल भक्ति करते हैं उन्हें श्री हरि नारायण अपने पास बैकुंठ धाम में बुला लेते हैं इस प्रकार महाराज जी के वचनों को सुनकर राजा प्राचीन महर्षि हाथ जोड़कर विनती वर्क बोले है देवर्षि आपने मुझे ज्ञान का उपदेश देकर जो कृपा कि वह महान है मेरे पुत्र तब से तू वन में गए उनके लौट आने पर इन्हें राजभर सोकर वन में जाकर प्रभु का ध्यान एवं भजन करूंगा उनके मुख्य बिंदु से इस प्रकार युवानी निकलती देख नारद जी ने विचार किया कि यह मनुष्य भी कितना बड़ा अज्ञानी एवं मूर्ख है आप भी यह माया रुपी जाल से मुक्त नहीं हो सका है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skandha Chapter 28 Beginning
The origin of King Puranjan in the form of a woman and a friend of his previous birth, just meeting the knower, while preaching knowledge to the ancient Maharishi, Devarshi Narad said, O Rajan, in the second birth, Puranjan ji got ironing body and married King Mordhwaj for a long time. After enjoying the pleasures of the king, after receiving knowledge from the sage Awasthi, King Mordhwaj took his son to Raj Chowk and himself went to the forest to do penance with his wife. By getting the blessings of Shri Hari, by the power of yoga, you left the body, but people left, then his wife prepared a worry by collecting wood from 1 but after studying in the bondage of Maya, the dead body of the king She was not able to resort to giving fire to the cheetah to burn her and started moaning very much at the same time her friend of her previous birth, just the knower, came to that place and on seeing Puranjan as the woman of King Mordhwaj, she recognized her and her gynecological disease. Puranjan asked this woman why are you crying bitterly like this What did you think of this Amritsar man and whether you recognize me or not Gaya and his dead body is lying in front of me, due to which you are seeing that I am crying due to the fondness of their death, I will do that in this way, hearing the complete word, the avaricious knower has said that in this previous birth of a king named Puranjan, 13 friends named ignorance One day you left me and left the house alone and forgot me after studying in the luxury of a woman, so you have got female wealth in this life, oh the whole rule, now you have to give up the hobby of dying of King Mordhwaj in your previous birth body. Like other districts, you have forgotten everything by getting entangled in worldly maya, because of illusion of Maya, the creature wanders in 8400000 species. The communication took place and King Mordhwaj left the dead body and entered it in the fire. Listening to so many stories of Mitra Vidya's separate, after some time sacrificing his body after some time while worshiping Sri Hari Narayan with full devotion and devotion, Naradji said, O king from outside, you ruled for many days. By doing sacrifices and donating yours, it pervaded the whole world, but by merging the mind in all this worldly and now worldly Maya, worship the feet of Triloki husband Shri Narayan, which will improve your afterlife, otherwise you will be free from this circus. It is extremely difficult to misbehave by performing charity and sacrifice, but after the completion of the period, one has to take birth again and those who do devotion only by taking renunciation, Shri Hari Narayan invites them to Baikunth Dham, thus Maharaj After listening to the words of the king, the ancient Maharishi said with folded hands, God, the grace that you have given me by preaching knowledge is great. will do their main thing Seeing the youth coming out of this way, Narad ji thought that how ignorant and foolish this man is, you too have not been able to get rid of this trap of illusion.
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