श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 27 आरंभ
याद में बाली किए गए जीवो का स्वरूप देखकर राजा के मन में डर उत्पन्न होना मैथिली जी बोले राजा के मन की बात जानकर नारद जी ने विचार किया कि जब तक उन्हें कुछ डर नहीं दिखाई देगा तब तक उनका मन यज्ञ में विचलित ना होगा यह विचार उन्होंने अपने योग बल से राजा द्वारा यज्ञ में बलि किए गए पोस्टों को आकाश मार्ग में प्रकट किया और राजा प्राचीन भारतीय से बोला है राजा के पशु आप को इस तरह से क्यों दूर रहे हैं नारद जी के वचन सुनकर राजा ने आकाश की तरफ देखा और वहां उपस्थित पशुओं को देखकर नारदजी से बोले हे देवर्षि यज्ञ में अपने पशुओं को मारकर हवन किया था कृपा करके आप यह बताएं कि वह मुझे इस प्रकार क्रोधित होकर क्यों दर रहे हैं तब नारद जी बोले हे राजन जिस तरह आपने इन पशुओं को मार कर यज्ञ में हवन किया उसी तरह यह तुम्हें 11 जन्म में मार कर अपना बदला लेंगे नाराज जी के वचन सुनकर राजा अत्यंत चिंतित होकर सोचने लगे कि इन पशुओं से पूछो इन पुणे के लिए मुझे कई जन्म लेने होंगे मुझसे बड़ी भूल हुई जो इन जीवों को मारकर हवन किया फिर नारदजी से बोले हे देवर्षि जितने भी मंत्री पंडित एवं उप रोहित थे सबने यही कहा कि यज्ञ करने से बड़ा धर्म अन्य कुछ नहीं है तब नाराज जी बोले हे राजन हुए इसलिए कहते हैं कि तुम्हारी तरह से भी माया जाल के बंधन से बंधे पड़े हैं उनके पास समर्थ नहीं है कि वे तुम्हें सांसारिक माया मोह के बंधन से निकाल सकें राजा सोचने लगे कि देवर्षि नारद सत्य वचन कह रहे हैं सो अति विनती को कर कहने लगे हे मनुराज आप कोई ऐसा उपाय करें जिससे मेरी मुक्ति हो तब नारदजी बोले हे राजा बहुत समय पहले पुरंजन नामक का राजा था उससे अपने मित्र अभी ज्ञात से बहुत प्रेम था अभी ज्ञात हर तरह से राजा के खाने पहने सोने उठने बैठने का ध्यान रखता था एक बार आजा पुरंजन अपनी इच्छा से अभी ज्ञात को छोड़कर दूसरी स्थान को चला और बहुत दिन तक भटकते रहने के बाद भी ठहरने लायक कोई उचित स्थान ना मिला जब वह दक्षिण दिशा में चला तो किले के समान नव द्वार वाला एक सुंदर मकान उसे दिखलाई दिया उनके चारों तरफ सुंदर फूल खिले हुए थे नाहर बाग बगीचों के बीच हुआ मकान अत्यंत भव्य लग रहा था पक्षियों की बोली से वहां की मधुरता बढ़ रही थी द्वार पर पहुंचकर राजा ने देखा कि एक अत्यंत सुंदर इस्त्री वस्त्र एवं आभूषण से सजी हुई अपनी 10 सहेलियों के साथ टहल रही है उसे देखते ही राजा मोहित हो गए और उसी स्त्री के निकट जाकर प्रेम पूर्वक आगरा करके कहने लगे के रूप सुंदरी तुम देवकन्या हो अथवा साधारण स्त्री तुम किसी इच्छा से यहां टहल रही हो तुम्हारे बाढ़ रुपी नेत्रों से मैं घायल हो गया हूं हे सुंदरी तुम्हारे माता पिता कौन है राजा के वचन सुनकर वहां इस्त्री मुस्कुरा कर बोली है राजा मैं अपने माता-पिता को नहीं जानती अभी तक मैं अविवाहित हूं और विवाह करने के उद्देश्य से यहां टहल रहे हैं राजापुर अंजन की खुशी का ठिकाना ना रहा है प्रसन्ना मुख से बोले तुम मुझे अभी कार करो मैं तुमसे बहुत प्रसन्न रहूंगा उस कन्या ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर उनसे गंधर्व विवाह कर लिया राजा पर इस तरह मोहित हुए कि उसने पूछे बिना कोई कार्य ना करते वृद्धावस्था आने पर इंद्रियों के शिथिल हो जाने के पश्चात भी राजापुर अंजन सांसारिक माया से वीर भक्त ना हो सके और मृत्यु के समय भी उनका ध्यान अपने इस्त्री की तरफ लगा रहा स्त्री के प्रति आसक्ति बनी रहे जिस कारण मृत्यु के पश्चात राजापुर अंजन को अगले जन्म में इस तरीका धन प्राप्त हुआ
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skandha Chapter 27 Beginning
Seeing the nature of the creatures sacrificed in remembrance, fear arose in the mind of the king, Maithili ji said, knowing the matter of the king's mind, Narad ji thought that his mind would not be disturbed in the yagya until he saw some fear. He revealed the posts sacrificed by the king in the yajna in the sky with his yoga force and the king has said to the ancient Indian why the king's animals are keeping you away like this, after hearing the words of Narad ji, the king looked at the sky and Seeing the animals present there, said to Naradji, O Devarshi, you had done a havan by killing your animals in the yagya, please tell me why he is getting angry with me like this, then Naradji said, O Rajan, the way you killed these animals and performed the Yagya. In the same way, he will take his revenge by killing you in 11 births. Hearing the words of angry ji, the king was very worried and started thinking that ask these animals, I will have to take many births for this Pune Then said to Naradji, O Devarshi, all the ministers, Pandits and Deputy Rohit, all said that there is greater importance than performing Yagya. If religion is nothing else, then angry ji said, oh king, it is said that like you are also bound by the shackles of Maya's web, they do not have the power to get you out of the bondage of worldly illusion. Narad is telling the truth, so after requesting a lot, he started saying, O Manuraj, you should do some such remedy, then Naradji said, O king, long ago there was a king named Puranjan, he was very much in love with his friend now known. He used to take care of getting up to sleep wearing the king's food. A beautiful house with a new gate like a fort was visible to him. Beautiful flowers were blooming all around them. The house in the middle of the Nahar Bagh gardens looked very grand, the sweetness of the birds was increasing. On reaching the door, the king saw that a Adorned with very beautiful ironing clothes and jewellery, she is walking with her 10 friends. The king was fascinated and went near the same woman and went to Agra with love and said as a beautiful woman, you are a Devkanya or an ordinary woman, you are walking here with some desire, I have been injured by your flood-like eyes, O beauty, who are your parents? Hearing the words of the king, ironing there smiled and said, king, I do not know my parents, yet I am unmarried and walking here for the purpose of getting married, Rajapur is not the place of Anjan's happiness, Prasanna spoke to me from the mouth. Do it now, I will be very happy with you, that girl accepted the proposal of the king and married him Gandharva was so fascinated by the king that he did not do any work without asking, even after the senses became relaxed after coming of age, Rajapur Anjan worldly illusion He could not become a heroic devotee and even at the time of death, his attention remained on his ironing, attachment to the woman, due to which after death, Rajapur Anjan received wealth in this way in the next life.
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