श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 26

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 26 आरंभ

देवर्षि नारद जी की प्राचीन बहर्षि से भेंट इस रोज पढ़कर महाराज जी का भजन एवं ध्यान करते हुए उन्हें 10000 वर्ष बीत गए तब त्रिलोकीनाथ ने अपने चतुर्भुज रूप से 75 लोग को दर्शन दिए फिर भी वह सांसारिक माया मुंह स स्वयं को दूर रख प्रभु का ताप एवं ध्यान करते रहे उधर प्रचेता लोग के पिता श्री प्राचीन महर्षि ने बहुत दिनों तक सांसारिक सुख भोगने के पश्चात विचार किया कि यह धन संपत्ति तब तक मैं सांसारिक भोग विलास हेतु खर्चा करता रहा किंतु आप दान यज्ञ करके अपना परलोक सुधारना चाहिए यह सोच कर उन्हें शास्त्र वाणी स्थानों पर यज्ञ किए एवं रिसीव ब्राह्मणों तथा गरीबों को दान किए फिर भी राजा गमन सांसारिक माया सेना हटा उसके मन में स्वर्ग लोक का सुख पाने की अभिलाषा बनी रहे उनका हाल देख कर नाराज जी ने विचार किया कि यज्ञ करते करते आयु समाप्त हो जाती है किंतु परलोक नहीं मानता इसलिए चल कर इन्हें ज्ञान का उपदेश दूं जिससे यह भवसागर से पार हो जाए और आपने योग बल से उसे समय राजा प्राचीन मासी के पास आ पहुंचे उन्हें देखकर राजा ने दंडवत प्रणाम किया और साक्षात्कार के साथ आसन प्रदान किया और कहने लगे हे देवर्षि आपने महान कृपा करके मुझे दर्शन दिया आपका दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया नारायण नारायण महाराज जी हंसकर बोले हे राजन तुमने मनुष्य तन पाकर बहुत सही आगे एवं धान कर्म किया किंतु आपने सुना होगा कि बहुत परिश्रम करके चलता हूं राही यही गत वक्त व तक ना पहुंच पाए तो उसके चलने का क्या फायदा ठगने के सिवा उसे किसी लाभ की प्राप्ति होगी नारा जी के वचन सुनकर प्राचीन बाहर सीजी मन में विचार करें ने लगे कि मैदान यज्ञ बहुत किया और फिर भी कहते हैं कि तुम्हें किसी फल की प्राप्ति नहीं हुई वह अत्यंत चिंतित होने लगे

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skandha Chapter 26 Beginning

Devarshi Narad ji's meeting with the ancient sage, reading this daily devotion to Maharaj ji and meditating on him, 10000 years passed, then Trilokinath appeared to 75 people in his quadrilateral form, yet he kept himself away from the worldly Maya's mouth and kept the heat of the Lord. And kept meditating, on the other hand, the ancient Maharishi, the father of Pracheta people, after enjoying worldly pleasures for a long time, thought that till then I kept on spending this wealth for worldly enjoyment, but you should improve your afterlife by doing charity sacrifice. Performed sacrifices at scriptural places and donated to the receiving Brahmins and the poor, yet the king moved away from the worldly Maya army. Seeing his condition, the desire to get the happiness of heaven remained in his mind, angry ji thought that the age should end while performing the yagya. But I do not believe in the afterlife, so I should go and preach knowledge to them so that it crosses the ocean of the universe and you have come to the king with the power of yoga at the time, seeing him, the king bowed down and provided the seat with the interview. You started saying, O God, you have great grace. Having given me darshan, I was blessed to have your darshan. Narayan Narayan Maharaj ji laughed and said, oh Rajan, after getting a human body, you did very right and paddy work, but you must have heard that I walk very hard and do not reach this past time. What is the use of his walking, he will get any benefit except for cheating, listening to the words of Nara ji, the ancient outside CG think in his mind that he did a lot of ground sacrifice and still says that you did not get any fruit, he should be very worried. engaged


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