श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 25

श्रीमद् भागवत कथा पुराण की चतुर्थी स्कंध अध्याय 25 आरंभ

महादेव जी सीता गीता का ज्ञान चर्चा विदुर जी ने महादेव जी और सीता के मध्य हुए ज्ञान चर्चा करती दांत मैथिली जी से पूछा तब हुए कहने लगे पिता की आज्ञा पाकर बजे तालुको वन में जाकर एक सुंदर तालाब के निकट बैठकर आपस में विचार करने लगे कि नारायण को किस प्रकार उसके नाम का ध्यान स्मरण करें वह इसी चिंता में बैठे थे कि उन्हें मनुष्य की वाणी सुनाई दी किंतु बोलने वाला दिखाई ना दिया वे आपस में कहने लगे कि यह कौन बोलता है दिखलाइए क्यों नहीं देता तब शिवजी तालाब से प्रगट होकर प्रियता लोग के पास आए उनके साथ देवता और गंधर्व ही थे फिर भी प्रयता लोगों ने पहचान ना सके और कुर्बान अपने स्थान पर बैठे रहे तब भक्त हितकारी शिवजी भोले अपराजिता लो हम महादेव शंकर है तुम्हें ज्ञान प्रदान करने हेतु पधारे तुम लोगों श्री हरि नारायण का ही स्मरण करो माय जिस तरह नारायण जी को प्रेम करता हूं उसी तरह भक्त भी मुझे प्यारे हैं अतः तुम्हें हरि भक्त जानकर ज्ञान सिखलाने आया हूं यह सुनकर प्रचेता लोग अत्यंत हर्षित प्रसन्न हुए और शिव जी को दंडवत प्रणाम करते हुए सम्मान सहित बैठाया आसन ग्रहण करने के पश्चात शिवजी ने नारायण की स्तुति करने का हसरत स्त्रोत विजेता को दिखाया और कहने लगे तुम लोग प्रातः काल एवं संध्या के समय स्नान करने के पश्चात स्त्रोत पढ़कर प्रभु के चतुर्भुज रूप का ध्यान करना वह अपने भक्तों के रक्षक हैं दया धाम शीघ्र तुम्हें दर्शन देकर धन्य करेंगे जो लोग अभियान वर्ष प्रभु का ध्यान स्मरण नहीं करते उन्हें मैं स्वयं जाकर ज्ञान का उपदेश देता हूं और नारायण का दर्शन करने के उपाय बतलाता हूं जो मनुष्य पाप एवं अधर्म से दूर रहकर उनकी चतुर्भुज आ स्वरूप का मनन करते हैं उन्हें सद्गति प्राप्त होती है प्रचेता लोग को ज्ञान का उपदेश देकर कैलाशपति अपने स्थान को चले गए तब कर देता लोग उनके बताए हुए ज्ञान मार्ग के अनुसार स्रोत पढ़कर श्री नारायण का भजन करने में लीन हो गए

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The Chaturthi Skandha Chapter 25 Beginning of Shrimad Bhagwat Katha Purana


Mahadev ji Sita discussed the knowledge of Gita Vidur ji asked the teeth of Maithili ji discussing the knowledge between Mahadev ji and Sita, then he started saying that after getting the father's permission, he went to the Taluko forest and sat near a beautiful pond and started thinking amongst themselves. How to make Narayan remember the name of his name. Devas and Gandharvas were with them, yet people could not recognize them and sacrifices kept sitting in their place, then devotee beneficiary Shivaji, take Bhole Aparajita, we are Mahadev Shankar, you people came to impart knowledge to you only of Shri Hari Narayan. Remember, just as I love Narayan ji, in the same way devotees are dear to me, so knowing you as a devotee of Hari, I have come to teach you knowledge. After this Shivaji started praising Narayan. He showed the source to the winner and started saying that after taking a bath in the morning and evening, after reading the source, meditate on the four-armed form of the Lord, he is the protector of his devotees, Daya Dham will soon bless you by having darshan, those who are of the campaign year of the Lord. Those who do not remember meditation, I go and preach knowledge to them and tell them the ways to see Narayan, those who stay away from sin and unrighteousness and meditate on their four-armed form, they get salvation by preaching knowledge to the conscious people. When Kailashpati went to his place, people became absorbed in worshiping Shri Narayan after reading the source according to the path of knowledge given by him.

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