श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 24 आरंभ
राजा प्रीत के पुत्र विजेता शोर का धर्म आचरण करते हुए राज करना विदुर जी को प्रभु की कथा सुनते हुए मैथिली जी बोले हैं महात्मा प्रभु की कृपा से राजा प्रीत और उसकी पत्नी और उसी को ले लेने के लिए दिव्य दिमाग आया उस पर सवार होकर इस प्रकार वे बैकुंठ जा रहे थे देवता लोगों में देखकर करने लगी आज तक ऐसी तभी शूरवीर एवं धर्मात्मा राजा ने पृथ्वी पर जन्म नहीं लिया था राजा प्रीत के पृथ्वी पर इस तरह धर्म का प्रचार किया की सातों सीटों पर हरि भक्त हो गए राजा प्रीत धर्म अवतार नारायण जी का अंश प्राप्त कर संसारी जीवन को धर्म उपदेश देने के लिए पृथ्वी पर आए थे इतना कह कर मैथिली जी चुप हो गए तो विदुर जी ने पूछा है महात्मा कृपा करके राजा प्रीत के पुत्रों की कथा सुनाएं तब मैथिली जी बोले हैं विधु जब राजा प्रीत का बड़ा पुत्र विजेता राजगद्दी पर बैठा था उसने अपने चारों भाइयों में चारों दिशाओं में राहत बांटकर धर्म एवं न्याय के साथ प्रजा का पालन करते हुए राज्य करने लगा राजा परीक्षित को गंगा तट पर बैठकर हरि कथा सुन रहे श्री सुखदेव जी ने कहा हे राजा एक बार ऋषि वशिष्ठ ने 3 आदमियों को श्राप दिया था कि तुम जाकर मृत्यु लोक में जन्म अल्लो आदमियों ने आकर विजेता शुरू के यहां जन्म लिया और राजा विजेता सूर ने उसका नाम पावक ओमान और सच्ची रखा उन तीनों ने उस दिन तक संसार में रहकर तन का त्याग किया और पुत्र अग्नि देव के रूप में विलीन हो गए उसके बाद राजा विजेता स्व की दूसरी स्त्री से हावी धान नामक का पुत्र उत्पन्न हुआ और बाद में उसका विवाह संस्कार अग्नि की पुत्री हरि वर्धनी के साथ हुआ तथा उस स्त्री के गर्भ से 6 पुत्र उत्पन्न हुए जिसके नाम प्राचीन बहर्षि आदि हुए प्राचीन बरसी का विवाह सत्यवती नामक की स्त्री से हुआ जो अत्यंत सुंदर थी और बाद में उसके गर्व से 10 पुत्रों ने जन्म लिया हुए अलग-अलग उत्पन्न होकर भी रूप ज्ञान एवं इच्छाओं में एक समान थे इसलिए उन्हें प्रचेता कहा गया 1 को बुलाओ तो दसों बोले जो काम एक करे वही काम दसों करते थे एक की बीमारी होने पर दो सौ बीमार हो जाते थे उनके कर्म प्रबंध बुद्धि एवं मृत्यु एक समान थी उन्होंने पिता की आज्ञा अनुसार 10 वर्ष तक कठिन तपस्या की तब महादेव जी का दर्शन उन्हें प्राप्त हुआ और उनसे ज्ञान चर्चा हुई
Raja Preet's son Vijeta Shor, reigning while listening to the story of Lord Vidur ji, Maithili ji has said that by the grace of Mahatma Prabhu, King Preet and his wife and divine mind came to take the same by riding on it. In this way, they were going to Baikunth, the gods started doing it after seeing the people, till today, the brave and virtuous king had not taken birth on earth, King Preet propagated religion on earth in such a way that Hari became a devotee on the seven seats. After receiving the share of Narayan ji, Maithili ji had come to earth to preach religion to the worldly life. Preet's eldest son was sitting on the victorious throne, distributing relief among his four brothers in all four directions and following the subjects with righteousness and justice, Shri Sukhdev ji, listening to Hari Katha, sitting on the banks of the Ganges said to King Parikshit. Once sage Vashistha cursed 3 men that you should go to the world of death. Allo men came and took birth at the beginning of the victorious beginning and King Vijeta Sur named him as Pawak Oman and Sachi, all three of them renounced their body by living in the world till that day and merged as son Agni Dev, after that the king From another woman of the winner self, a son named Habi Dhan was born and later his marriage ceremony was with Hari Vardhani, daughter of Agni and 6 sons were born from the womb of that woman, whose name was ancient Baharshi etc. The marriage of ancient Barsi named Satyavati. Happened to a woman who was very beautiful and later 10 sons were born out of her pride, being born separately, they were similar in form, knowledge and desires, so they were called Pracheta, call 1 and the ten said that whatever work one does, the same work Ten used to do two hundred sick due to illness of one, their karma management, intelligence and death were the same, they did hard penance for 10 years according to the orders of their father, then they got the darshan of Mahadev ji and knowledge was discussed with them.
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