श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 22 आरंभ
पत्नी की अरुचि के साथ तक हेतु राजा प्रीत का वन गमन शंका दृश्यों के चले जाने तक की कथा सुनाने के बाद मैथिली जी बोले हे विदुर जी राजापुरी कितने धर्म अनुसार बहुत दिनों तक पृथ्वी पर राज किया हुए सदा की भांति हरि भजन एवं कीर्तन करते थे और घर आए ब्राह्मण एवं ऋषि मुनियों का आदर सत्कार करते थे उनकी पत्नी अभिरुचि के गर्भ से 5 पुत्र उत्पन्न हुए दादा आम तरबूज दिन तक राजकाज करने के बाद राजा प्रीत से विचार किया कि राज्य एवं धन संपत्ति इस की रहने वाली वस्तु नहीं है मृत्यु लोक पर सभी पूछ यही पर रह जाता है और प्राणी खाली हाथ ही चला जाता है इसलिए माया मोह की वस्तुओं को त्याग कर वन में चला जाए और हरी चरणों में ध्यान लगाएं जिससे परलोक सुधरे यहां विचार कर उन्होंने अपने बड़े पुत्र अभिजीत दास व को राजगद्दी प्रदान कर उसे बहुत विधि से धर्म एवं न्याय पूर्वक राज करने की शिक्षा देते हुए बोले हे पुत्र प्रजा के साथ कभी भी अन्याय मत करना ब्राह्मणों एवं ऋषि-मुनियों को परमेश्वर समझ कर उसकी पूजा करना क्योंकि उन्हीं की कृपा से श्री हरि नारायण का दर्शन हो पाना संभव है कभी किसी ब्राह्मण पर क्रोध मत करना क्योंकि ब्राह्मण पर वोट करने वाला मनुष्य स्वयं परमेश्वर के शत्रु की श्रेणी में आता है इस तरह समझने के बाद राजा प्रीत अपनी पत्नी सहित तक हेतु वन में चले गए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skandha Chapter 22 Beginning
After narrating the story of King Preet's departure to the forest with the wife's disinterest, till the doubtful scenes were gone, Maithili ji said, O Vidur ji Rajapuri, according to how many religions, he used to do Hari Bhajan and Kirtan as usual. And the Brahmins and sages who came home respected the sages, 5 sons were born from the womb of his wife Abhiruchi. Dada Mango Watermelon After ruling for the day, he thought to King Preet that the state and wealth are not the things of his life. But all the questions remain on this and the creature goes empty handed, so leaving the objects of illusion, go to the forest and meditate on the green feet, so that the afterlife will improve, considering here, he gave the throne to his eldest son Abhijit Das and By teaching him to rule in many ways with righteousness and justice, he said, O son, never do injustice to the subjects, consider Brahmins and sages and worship them as God, because by their grace Shri Hari Narayan can be seen. It is possible never to be angry with a brahmin because brahmin But the man who votes himself comes under the category of the enemy of God, after understanding in this way, King Preet went to the forest with his wife.
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