श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 21

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंद अध्याय 21 आरंभ

भागवत भक्ति का प्रसार करने हेतु राजा प्रीत का निवेदन करना मैथिली जी कहने लगे हैं महात्मा विदुर समस्त राजगढ़ आए तब राजा प्रीत ने देश देश से आए हुए राजाओं को सम्मान सहित शिष्टाचार पूर्वक सभा गृह में बैठाने के पश्चात विनय पूर्वक बोले यह समस्त राजगढ़ मैं आप सभी से एक वस्तु की मांग करता हूं आप यह ना विचार करें कि यह वस्तु लाकर दे पाना दुर्लभ है और दबाव भी नहीं डाल रहा हूं बल्कि यहां मैं आप सभी से निवेदन कर रहा हूं पर आज प्रीत के विनती वचनों को सुनकर सभी राजा बोले हे पृथ्वीनाथ हमारा सर्वत्र आप पर न्योछावर है अतः आप निसंकोच हमें आज्ञा दें कि क्या करना है तब राजा प्रीत कहने लगे मेरी इच्छा है कि सातो दिनों में छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष चारों वन के जितने भी मानव हैं सब प्रभु श्री नारायण के भक्तों को हेरा जाऊं शास्त्र में कहा गया है कि प्रजा पूर्ण कार्य करें अथवा पाप कर्म करे उसका छठवां भाग राजा को प्राप्त होता है यदि आप सभी के राज्य में पूर्ण कार्य होगा तो उसका शुभ फल बिना मांगे आपको प्राप्त होगा इसलिए प्रभु के अवतारों का उनकी लीलाओं का वर्णन अवश्य श्रवण सुनने करें भक्ति के लिए जाति या वर्ण अलग नहीं है प्रभु श्री हरि का भजन कीर्तन जो प्राणी पूर्ण श्रद्धा से करता है उसे सद्गति की प्राप्ति होती है प्रभु स्वयं आकर उसे दर्शन देते हैं और उसकी हर इच्छा पूर्ण करते हैं अन्य राजाओं के समय में मनुष्य को चार भागों में बांटा गया था किंतु हम चाहते हैं कि परमेश्वर का भजन करना ही मानव धर्म होना चाहिए इसलिए आप लोग अपने-अपने राज्य में जाकर प्रभु के स्थान भजन करने का उद्देश्य से पृथ्वी से बाप का भार कम होगा और धर्म पड़ेगा राजा के खेतों में जाकर अनूप जाते हैं उसका छठवां भाग के रूप में राजा के पास आता है हमें उस में भाग लेना छोड़ दिया इससे सभी लोग या के योगदान का कार्य करें इसके अलावा भी यदि किसी को द्रव्य की आवश्यकता हो तो आकर राजकोट से ले जाएं और शुभ कार्य में खर्च करें यह मेरी लिए प्रसंता की बात होगी जो भारती धर्म कार्य में खर्च हो उसे सफल जाना चाहिए श्री हरि नारायण के चरणों से प्रीति करने वाले मनुष्य को मृत्यु के पश्चात बैंकों का सुख प्राप्त होता है और अधर्मी उपोहर या तना बना होता है जो अग्नि के द्वारा 40 से भी अधिक पीड़ादायक होता है प्रभु स्वयं अपने मुखारविंद उसे कह चुके हैं कि ब्राह्मण को भोजन कराने वाले मनुष्य में जितना प्रश होता है उतनी प्रसंता मुझे यज्ञ हवन करने वालों से नहीं होती है अतः उन ब्राह्मणों के चरण धूलि में आपके मस्तक पर चढ़ाता हूं जिस उनकी कृपा से प्रभु प्रसन्न होते हैं जिस पर ब्राह्मण क्रोधित हो उस मनुष्य को प्रभु का शत्रु समझना चाहिए राजा प्रीत के वचनों को सुनकर ऋषि ब्राह्मणों ने आशीर्वाद देते हुए कहे हे राजन आप जैसे धर्मात्मा राजा कभी-कभी ही उत्पन्न होते हैं आपका धर्म एवं ज्ञान सदैव अखंड ज्योति की तरह सारे संसार में जगमगाता रहेगा उसके बाद देश देश से आए हुए राजाओं ने महाराज प्रीत को आज्ञा दी लेकर अपने देश को गए और उसकी आज्ञा अनुसार धर्म प्रचार किया राजा प्रीत के धर्म और हरि भक्त करने का समाचार सन का आदि ऋषि को मालूम हुआ तो उन्होंने ब्रह्मा जी से जाकर कहा हे पितामह मृत्यु लोक में राजा प्रीत के उद्देश्य से समूचे जगत में हरी ब्रिज जन एवं धर्म कर्म होने लगे हैं ऐसे धर्मात्मा राजा को देखने के लिए हम जाते हैं ऐसे कह कर राजा प्रीत से मिलने के लिए चारों भाई चले पड उन्हें उन्हें आकाश मार्ग से आते देख अपनी प्रजा समेत राजा फिर उठ खड़े हुए और उन्होंने साष्टांग प्रणाम करके सम्मान सहित राज सिंहासन पर बैठा है तब उनके चरणों को जल से होने के पश्चात हाथ जोड़ कर विनम्र पूर्वक कहने लगे मेरे अहोभाग्य जो आपके दर्शन प्राप्त हुए यह मेरे पिछले जन्म के शुभ कर्मों का फल है जो बिना बुलाए आपने आकर मुझे भाग्यहीन को भाग्यवान बनाया राजा की दीन हीन वाणी सुनकर शंका भी रिसीवर बोले हे राजन् परमेश्वर में तेरी अन्य भक्ति जाकर हम तुझे देखने आए हैं यह सुनकर राजा ने पूछा है ऋषि राज आप ज्ञानी महात्मा है मुझ पर कृपा करके बताएं कि किस प्रकार संसारी मनुष्य जन्म मरण के चक्कर से फुटकर मोक्ष गति को पाते हैं राजा की वाणी सुनकर संत कुमार जी बोले तुमने संसार की भलाई हेतु पूछा है अतः हम तुम्हें वह उपाय बतलाते हैं जो मनुष्य तन पाकर भी श्री वासुदेव प्रभु का ध्यान अपने अंतःकरण में करता है हरि कथा का श्रवण करता है उसकी प्रीति सदा प्रभु के चरणों में रहे वह मनुष्य भाव बंधन से छूट कर मुक्त पद प्राप्त करता है हर परिवार धन संपत्ति एवं अन्य माया मुंह में जो प्राणी प्रीत करता है और परमेश्वर का ध्यान नहीं करता वही दुख पाता है इसलिए उस संगति से दूर रहकर सदा महात्माओं की संगति करनी चाहिए जिससे ज्ञान बुद्धि बढ़ती है और श्री नारायण की कृपा प्राप्त होती है यह सुनकर राजा प्रीत कहने लगे कि हे रिसीवड आपने कृपा करके मुझे ज्ञान का उपदेश दीजिए जिससे मैं आपको सृष्टि हो गया अतः आप कोई ऐसी वस्तु मुझे मांग ले जिससे मैं आपके ऋण पूर्ण हो जाऊं मेरा समस्त राज एवं धन वैभव सभी कुछ ऋषि-मुनियों तथा ब्राह्मणों को अर्पित है राजा कि इस प्रकार के वचन सुनकर संत कुमार जी बोले हे राजन् यदि आप हमारे द्वारा दिए गए ज्ञान के उपदेश का रेंट समझते हैं तो मैंने तुम्हें इस ऋण से मुक्त किया ऋषि यों के वचन सुनकर राजा प्रीति को अपार हर्ष हुआ तत्पश्चात ऋषि गर्ग ने आशीर्वाद देकर अपने धाम को चले गए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skanda Chapter 21 Beginning

Maithili ji has started requesting King Preet to spread Bhagwat Bhakti, when Mahatma Vidur came to all the Rajgarh, then King Preet said humbly to all the kings who came from the country and the country, after sitting in the meeting hall with respect. I demand one thing from everyone, do not think that it is rare to bring this item and am not even pressurizing, but here I am requesting all of you, but today all the kings said after listening to the pleading words of love Prithvinath is our invitation to you everywhere, so you should feel free to order us what to do, then King Preet started saying that I wish that all the human beings of the four forests, small and big, in seven days, all the devotees of Lord Shree Narayan were defeated. It has been said in the scriptures that the king receives one-sixth part of the work done by the subjects or the sinful deeds. Must listen and listen, caste or varna is not separate for devotion It is that the creature who chants the hymns of Lord Shri Hari with full devotion, attains salvation, the Lord Himself comes and appears to him and fulfills his every wish. Want that worship of God should be the human religion, so you people go to your respective kingdom and for the purpose of worshiping the place of Lord, the burden of the father will be reduced from the earth and religion will have to go to the king's fields and go to Anoop sixth part of it. As it comes to the king, we stopped participating in it, so that all the people should do the work of contribution. Apart from this, if anyone needs money, then come and take it from Rajkot and spend it in auspicious work. It is my pleasure. It will be said that whatever is spent in the work of Bharati Dharma should be successful, a person who loves the feet of Shri Hari Narayan gets the happiness of banks after death and becomes the unrighteous upohar or stem which is more than 40 by fire. It is painful that the Lord himself has already told him that the Brahmins should be given food. As much as I am not pleased with the person who does not do the Yagya, I do not offer the feet of those brahmins in the dust on your forehead, by whose grace the Lord is pleased, on whom the brahmin is angry. One should understand the enemy, listening to the words of King Preet, the sage brahmins blessed him and said, O king, a virtuous king like you is born only occasionally, your religion and knowledge will always be shining like an unbroken light in the whole world, after that the countrymen have come from the country. The kings gave orders to Maharaj Preet and went to their country and preached religion according to his orders, when the Adi Rishi came to know about the religion of King Preet and the devotee of Hari, then he went to Brahma ji and said, O father, King Preet in the death world. For the purpose of doing green bridge, people and religious deeds have started in the whole world, we go to see such a godly king, saying like this, the four brothers went to meet King Preet, seeing them coming from the sky, the king along with his subjects again stood up and he prostrated With respect, the king is sitting on the throne, then after reaching his feet with water, folded his hands and said humbly, "I am fortunate to have received your darshan, it is the fruit of the good deeds of my previous birth that you came without calling me and made me fortunate. Hearing the humble voice of the king made, the receiver said, O king, we have come to see you after going to your other devotion in God, the king has asked, sage Raj, you are a knowledgeable Mahatma, please tell me how the worldly man is in the cycle of birth and death. After listening to the voice of the king, Sant Kumar ji said that you have asked for the betterment of the world, so we tell you the remedy which, even after attaining a human body, meditates on Shri Vasudev Prabhu in his conscience, listens to Hari Katha. May his love always be at the feet of the Lord, that man, freed from the bondage of feelings, attains a free position, every family, wealth and other illusions, the creature who loves in the mouth and does not meditate on God, he gets sorrow, so by staying away from that company. One should always have the company of Mahatmas so that knowledge can be imparted. The wisdom increases and the blessings of Shri Narayan are received, hearing this, King Preet started saying that O recipient, please give me the teachings of knowledge by which I became the creation, so you should ask me for something so that I can fulfill your debts to me. All the kingdoms and wealth are dedicated to all the sages and Brahmins, after hearing such words of the king, Sant Kumar Ji said, O king, if you understand the rent of the preaching of knowledge given by us, then I have freed you from this debt Rishi Hearing these words, King Preeti was delighted, after which Sage Garg blessed her and went to her abode.


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