श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंद अध्याय 2 आरंभ
अग्निध्रु का राज्याभिषेक श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित तब हेतु और आज प्रिय व्रत के 1 चले जाने के पश्चात रात सिहासन पर उसके पुत्र अग्नि ध्रुव ने बैठकर विचार किया कि सर्वप्रथम तीनों लोग को सुख देने वाले सुख धाम श्री हरिनारायण की आराधना करो जिससे विवाह के पश्चात जो संतान उत्पन्न हुआ धर्म का पालन करने वाला हो यह विचार कर उन्होंने पर्वत पर जाकर कठिन तप करना प्रारंभ किया उधर इंद्रदेव उनके कठिन तप को देखकर मन ही मन घबराने लगे उन्होंने अपना इंद्रासन सिंह जाने का भय सताने लगा इसलिए अग्नि ध्रुव का तप भंग करने के लिए पूर्वा जीत नामक की एक अत्यंत सुंदर अप्सरा को भेजा पर्वत पर पहुंचकर पूर्व चीफ ने नाचना गाना आरंभ किया जहां पर अग्नि ध्रुव तब कर रहे थे उनके घुंघरू की आवाज सुनकर उन्होंने अपने आप को खोल दी प्रभु के चरणों में ध्यान हट गया और उनकी सुंदरता पर मोहित होकर कहने लगे फिर रूप सुंदरी की कार्य की सिद्धि के लिए तुम जंगल में भ्रमण कर रही हो तुम्हारे बिना डोरी की सामान सी प्रतीत हो रही है नाचते समय फूलों की आवाज सुनकर भोले तुम्हारे नाखूनों के मन को मोह लेने वाला संगीत का स्वर उभर रहा है तुम्हारे तिरछी चितवन मन को लुभा रही है और तुम्हारे अंगों की क्रांति निराली है तुम्हारा मुख मंडल कितना कोमल और सुंदर है उस दिन मेरे साथ रहकर तब करो राजा के मुख से निकले स्वर को सुनकर पूर्व चिंतित समझ गई कि अब यह मेरे ऊपर मोहित हो चुके हैं तब यह मुस्कुराकर प्रेम रस युक्त वचन बोली है राजन यह तपोवन में रहकर मैं आपके साथ सुखी नहीं रह सकूंगा आप हमारे साथ चलिए मेरे तपोवन कंद मूल फल होते हैं जिसकी खाने से मनुष्य सदैव नौजवान बना रहता है किंतु उससे पहले मैं आपका राज महल देखना चाहती हूं पूर्व रचित के ऊपर राजा पूर्ण रूप से मोहित हो चुके थे अतः उसकी बात मान कर राजा अग्नि धूमल को लौट आए और विवाह कर 10000 वर्ष तक राज किया पूर्व चीफ के गर्व से नाभि किस्मत हरिवर्ष हलाव्रत रमिया हिरणपुर भद्रवाह एवं केतु माल नामा के 9 पुत्रों की उत्पत्ति हुई जो पैदा होते ही माता के आशीर्वाद से तुरंत तरुण अवस्था जवानी को प्राप्त हो जाते हैं तत्पश्चात अपने नमो पुत्रों का विवाह करके पूर्व रचित इंद्रलोक को चली गई और आजा अग्नि ध्रुवन में जयपुर दीप नौ खंड में बैठकर अपने पुत्रों को एक-एक अंक का स्वामी बना दिया और स्वयं सबके तू वन में चले गए
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Pancham Skanda Chapter 2 Start
The coronation of Agninhi Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit and today, after the dear fast, his son Agni Dhruva sat on the throne at night and thought that first worship Sukh Dham Shri Harinarayan, who gives happiness to the three people, so that marriage After considering that the child who was born to religion, he started to go to the mountain and started doing hard penance, on the other hand, seeing his hard penance, he started to panic in his heart, he started fear of going to Indrasana Singh, hence the tenacity of the fire pole To dissolve, a very beautiful Apsara of Purva Jeet sent a very beautiful Apsara and the former chief started dancing, where Agni Dhruv was doing then he heard the sound of his ghungroo and opened himself. And fascinated by her beauty, she started saying, then you are traveling in the forest for the accomplishment of Roop Sundari's work. Without you, it seems like a string of stroke. The voice of you is emerging The oblique Chitwan is attracting the mind and the revolution of your organs is unique, how soft and beautiful is your face, stay with me and then, listen to the tone of the king's mouth, he was worried that he is now fascinated by me. If it is, then it has spoken with a smile with love juice, Rajan, I will not be able to be happy with you by staying in Tapovan, you go with us, my Tapovan tuber is the original fruit, which makes man always young, but before that I can see your Raj Mahal. I want the king to be fully fascinated by the former compassion, so after obeying him, King Agni returned to Dhumal and ruled for 10,000 years and the pride of the former Chief, Harivarsh Halavrat Ramia Hiranpur Bhadarwah and Ketu Mal Nama 9 sons originated as soon as they were born, with the blessings of the mother, the youth get immediately attained to the youth, after marrying their namo sons, they went to the former Indralok and Aaja Agni Dhruvan sat in the Jaipur Deep nine block and one to her sons. -made the lord of a number and you yourself in the forest Gone
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