राजा राहु गण का प्रश्न जड़ भरत के ज्ञान पूर्ण वचनों को सुनकर राजा राहु गण बोले हैं ज्ञान के भंडार आपको मैं शास्त्रों बार नमन करता हूं आपने लोक कल्याण हेतु तन धारण किया है हे महाराज आपने गूढ़ ज्ञान का उपदेश मुझे प्रदान किया है यह आपकी मूछ अज्ञानी पर असीम कृपा है किंतु दुख की बात यह है कि आपके द्वारा दिए गए ज्ञान को मैं पूर्ण रुप से समझ ना पाया अतः कृपा करके सरल विधि से समझाएं राजा रहो गण के वचनों को सुनकर जड़ भरत बोले हे राजन् यज्ञ तक जब तक पूजा-पाठ एवं दान करना सन्यासी होकर व वन में चले जाना पर ज्ञान प्राप्त नहीं होता शुभ कर्मों के करने से मनुष्य अहंकारी हो जाता है उनके मन में ऐसी भावना उत्पन्न हो जाती है कि मेरे समान अन्य कोई धर्मात्मा नहीं है अहंकार वास उसका समस्त ज्ञान नष्ट हो जाता है साधु संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त होता है किंतु भगवत कृपा के बिना महात्माओं का दर्शन होना दुष्कर्म होता है तुम्हारी तरह मैं अपने पूर्व जन्म में सात दीपों का राजा था किंतु मैं रात सिहासन का त्याग करके 1:00 चला गया और प्रभु श्री नारायण के चरणों का ध्यान करने लगा किंतु तुम अभी तक राज मत में डूबे हो इसी कारण अन्य जीवो पर दया नहीं करते अपने ज्ञान दृष्टि से देखो तो तुम्हें मालूम होगा कि सृष्टि कर्ता के हाथों सेव बनाने गए सभी प्राणी सामान हैं आपने सुख के लिए किसी प्राणी को कष्ट देना पूर्ण रूप से अनुचित है जड़ भरत के मुख से ज्ञान का उपदेश सुनकर राजा राहु गढ़ के मन मस्तिष्क में ज्ञान की ज्योति जल उठे क्षमा याचना करते हुए बोले यह महात्मा कृपा कर आप मुझ पर क्रोध ना करें यह सुनकर जड़ भरत बोले हे राजन् हम सन्यासी लोग खुद नहीं किया करते हमारा स्वभाव क्षमाशील होता है
King Rahu Gana's question After listening to the knowledge-full words of the root Bharat, King Rahu Gana has said, I bow to you in the scriptures many times, you are the storehouse of knowledge, you have worn your body for public welfare, O Maharaj, you have given me the teachings of esoteric knowledge, this is your mustache. There is infinite grace on the ignorant, but the sad thing is that I could not fully understand the knowledge given by you, so please explain it in a simple way, be a king, listening to the words of Gana, Jaad Bharat said, O king, till the worship till the sacrifice- Reading and donating by becoming a sannyasi and going to the forest, knowledge is not attained, by doing good deeds, a person becomes arrogant, such a feeling arises in his mind that there is no other god like me, the ego, all his knowledge is destroyed. It is known that knowledge is attained by the company of sages, but without the grace of God, having a vision of Mahatmas is a misdemeanor, like you, I was the king of seven lamps in my previous birth, but I left the throne and went to 1:00 pm and Lord Shri Started meditating on the feet of Narayan, but you are still immersed in the rule of law. Because do not take pity on other living beings, look from your knowledge point of view, then you will know that all beings who have gone to make sev at the hands of the creator are equal, it is completely inappropriate to give pain to any living being for the sake of happiness. Hearing this, the light of knowledge lit up in the mind of King Rahu Garh, while apologizing, said this Mahatma, please do not get angry on me, after hearing this, Jaad Bharat said, O king, we ascetics do not do it ourselves, our nature is forgiving.
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