जड़ भरत द्वारा राजा को उपदेश राजा रावण को ज्ञान का उपदेश देते हुए जड़ भरत कहने लगे हैं राजन जो मनुष्य कर्म को ही प्रधान मानता है उसे कभी ज्ञान प्राप्त नहीं होता सर्वश्रेष्ठ मन है जो अत्यंत चंचल होता है और स्वक्ष शांत विचरण करना चाहता है जिओ को नचाने वाला मन है जो सुख एवं दुख का प्रदान कराने वाला कारण बनता है अक्रमों जीवो को बंधन में बांधने वाला भी मन ही है नर्क एवं मोक्ष पद प्रदान कराने वाला भी मन है अतः सबसे प्रमुख कार्य मन का वश में करना है जब तक प्राणी अपने मन को वश में नहीं करेगा तब तक वह प्रभु श्री हरिनारायण के चरणों का ध्यान आनंद नहीं पा सकेगा हे राजन इस चंचल मन को उकसाने पर भी मनुष्य चोरी करता है ठगी बेमानी और बेचारी भी मन की चंचलता के कारण ही करता है मन की 11 वृत्तीय है पांच कर्म इंद्रियां पांच ज्ञानेंद्रियां तथा एक अहंकार इसी तरह पांच प्रकार के कर्म एवं तंत्र भी पांच होते हैं मन में उभरने वाले हम की भावना को अहंकार कहते हैं मन कर्म स्वभाव तथा काल के अनुसार मन की वृत्तियों की क्षेत्र सीमा बढ़ जाती है और इन सभी वृत्तियों का संबंध परमात्मा से होता है इसी परमात्मा से जो सर्वव्यापी है उसी के प्रकाश से समस्त सृष्टि का संचालन होता है वही आज जन्म शेष सभी कर्म के अनुसार फल खाते हैं अतः हे राजन शक्ति रूप ज्ञान ज्योति अंतर्यामी प्रभु श्री हरिनारायण के चरणों का ध्यान स्मरण करना चाहिए उन्हीं की कृपा से आवागमन रूपी भाव बंधन काटता है और मनुष्य को मोक्ष गति की प्राप्ति होती है
Teachings to the king through Jaad Bharat It is the mind that gives birth to happiness and sorrow, it is the mind that binds the souls in bondage. Until he will not control his mind, he will not be able to enjoy the meditation of the feet of Lord Shri Harinarayan, O Rajan, even after provoking this fickle mind, man steals, cheats meaninglessly and the poor man does it only because of the restlessness of the mind. There are five karmic senses, five senses and one ego. Similarly, there are five types of karma and tantra. The feeling of us that emerges in the mind is called ego, according to the mind, action, nature and time. All these instincts are related to God, with this God who is omnipresent. It is because of his light that the entire creation is governed, and today the rest of the births eat the fruits according to all the karma, therefore, O king of power, the light of knowledge, one should remember the feet of Lord Shri Harinarayan, by his grace, the spirit of movement cuts the bondage. And man attains salvation speed
0 टिप्पणियाँ