श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय 10

श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय 10 आरंभ

राजा और राहु गण द्वारा जड़ भारत का पकड़ा जाना श्रीमद् भागवत कथा सुनते हुए राजा परीक्षित से श्री सुखदेव जी कहने लगे हे राजा राजा साहू गाना पालकी में सवार होकर प्रतिदिन कपिल देव मुनि के पास ज्ञान सीखने के लिए जाता था 1 दिन राह में पालकी इटावा में वाला एक कहार बीमार हो गया राजा का आदेश पाकर उसके सैनिक एक मनुष्य की खोज में निकल पड़े थोड़े दूर जाने पर उसे जड़ भरत दिखाई दिए जो श्री हरि नारायण का स्मरण करने में मांगे थे सैनिकों ने हष्ट पुष्ट शरीर वाले मनुष्य को देख पालकी ढोने हेतु उन्हें पकड़ ले गए जड़ भरत व समता पूर्वक राजा रावण की पालकी उठाए हुए चलने लगे किंतु पृथ्वी पर बिचारने वाले छोटे जीव चीटियों आदि को दबाने से बचाकर चलते ऐसा करने से कई बार राजा की पालकी हिल गई तब राजा बोले अरे कहारों यह पालकी क्यों मिलती है तब एक कहार बोला है अन्नदाता हमारा कोई दोस्त नहीं है यह नया कहार पालकी को हिलाता है कहार के वचनों को सुनकर राजा क्रोधित होकर बोले अरे दुष्ट तू कभी मोटा ताजा है बलशाली है फिर भी इतनी जल्दी थक गया क्या तुझे अपने प्राणों का भय नहीं है राजा के वचनों को सुनकर श्री जड़ भरत चुप रहे जिससे राजा रावण का क्रोध और ज्यादा बढ़ गया हुए कहने लगे तू मेरी बात का उत्तर क्यों नहीं देता यह सुनकर जड़ भरत बोले हे राजन् आपने कुछ पहल पहले मुझे यह कहने कि मैं ज्यादा दूर तक नहीं चला फिरा भी थका गया इस कारण है कि जो व्यक्ति बिना प्रयोजन के विचारण घूमता फिरता है करता है वह शीघ्र ही बीमार हो जाता है आपने यह भी कहा है कि मैं काफी मोटा ताजा हूं किंतु हे राजन जिससे जियो कहते हैं वह ना मोटा होता है और न दुबला होता हुआ सदैव एक समान रहता है यह ना स्वर शरीर जिसका रूप घटता बढ़ता है आपने मुझे प्राणों का भय दिखलाया जिसके तीन बराबर भी चिंता मुझे नहीं है क्योंकि मेरे लिए मरना एवं जीना दोनों एक समान है इसलिए की मृत्यु देना मनुष्य के बस की बात नहीं बिना मृत्यु आए कोई नहीं मारता तुम आपने इस नश्वर शरीर के घमंड में हो कि मैं राजा हूं परंतु है राजन मृत्यु के पश्चात मैं और तुम बराबर हो जायेंगे तुम चाहो तो मेरे इस झूठे नाशवान शरीर को दंड दो जड़ भारत के वचनों को सुनकर राजा रावण के मन में ज्ञान के प्रकाश का अंकुर फूट गया पड़ा तक्षण वहां पालकी से उतरकर जड़ भरत के चरणों में लेट गए और विनय पूर्वक कहने लगे हैं महात्मा अज्ञानी के कारण मैं आपको नहीं पहचान पाया मुझे इस भूल को क्षमा करें और शत-शत बताएं कि आप संत महात्मा है अथवा ज्ञानी ब्राह्मण माय देवताओं से नहीं डरता किंतु ब्राह्मणों के श्राप से खाता हूं यह सुनकर जड़ भरत प्रेम पूर्वक कहने लगे हे राजा कर्म से ही देवता राजा मनुष्य अथवा भिखारी होते हैं अतः परमेश्वर को जो सर्व शक्तिमान समझकर उसके नाम का भजन कीर्तन करना चाहिए जड़ भरत के वचन को सुनकर आ जा रहा होगा उनके चरणों में लोटपोट हो कर क्षमा करने लगा और बोले महात्मा कृपा करके मुझे ज्ञान प्रदान करें

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Pancham Skandha Chapter 10 Beginning

Arrest of Root India by King and Rahu Gana Listening to Shrimad Bhagwat story, Shri Sukhdev ji started saying to King Parikshit, O King Raja Sahu, riding in a palanquin, used to go to Kapil Dev Muni every day to learn knowledge. One of the people in the city became ill, after getting the orders of the king, his soldiers went out in search of a man, after going a little far, he saw the root Bharata, who had asked for the memory of Shri Hari Narayan, the soldiers, seeing the man with a strong body, carried the palanquin. Took them away, took root Bharata and started walking with equanimity carrying the palanquin of King Ravana, but by doing this, the small creatures roaming on the earth, while saving them from suppressing the ants etc., the king's palanquin was shaken many times, then the king said hey, why this palanquin When we meet, a Kahar is said, the food provider is not our friend, this new Kahar shakes the palanquin. Hearing the words of Kahar, the king got angry and said, oh wicked, you are ever fat, fresh, strong, yet tired so soon, do you fear for your life? No, listening to the words of the king, Shri Jad Bharat remained silent so that Ra Jaa Ravana's anger increased even more and started saying why you do not answer my words, Jaad Bharat said, O Rajan, you got tired of telling me a few initiatives earlier that I did not walk very far, this is the reason that the person who He roams around without any reason, he gets sick soon, you have also said that I am very fat fresh, but O king, the one who lives, says that he is neither fat nor lean, it always remains the same. No body, whose form keeps on increasing, you have shown me the fear of life, for which I am not even worried about three times, because for me both dying and living are the same, because giving death is not a matter of human being, no one kills you without death. Be proud of this mortal body that I am the king, but after the death of the king, I and you will be equal, if you want, then punish this false perishable body of mine, listening to the words of India, the light of knowledge sprouted in the mind of King Ravana. Immediately after getting down from the palanquin, he lay down at the feet of the root Bharata and has started saying humbly. Due to ignorant I could not recognize you, forgive me for this mistake and tell me hundred percent whether you are a saint Mahatma or a knowledgeable brahmin is not afraid of my deities, but after hearing this I eat from the curse of brahmins, Jad Bharat started lovingly saying, oh king, karma. Since the gods are kings, human beings or beggars, therefore, considering God as omnipotent, one should chant hymn to his name, Jaad must have come after listening to Bharata's words and started forgiving by rolling at his feet and said that the Mahatma please grant me knowledge. do

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