श्रीमद् भागवत कथा पुराण पंचम स्कंध अध्याय एक आरंभ
श्री सुखदेव जी द्वारा राजा परीक्षित की कथा का वर्णन आत्मज्ञानी श्री सुखदेव जी द्वारा भागवत कथा का रसपान कर रहे राजा परीक्षित अत्यंत मधुर स्वर से बिना पूर्वक बोले हे महात्मा जब स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत ने बाल्यकाल में ही देवर्षि नारद से उपदेश को सुनकर उसका पालन करते हुए सांसारिक माया से विरक्त होकर तब हेतु वन को चले गए फिर गृहस्थ हो कर आजा भोगने की अभिलाषा उनके मन में कैसे उत्पन्न हुए हुए जानकर पुष्कर संसारी माया में क्यों फंसे राजा परीक्षित के वचन सुनकर श्री सुखदेव जी बोले हे राजा परीक्षित आप स्वयं ज्ञानी है आपने अति उत्तम प्रश्न मुझसे किया है अतः जो मैं आपको बताता हूं उसे ध्यान से सुने प्रभु श्री नारायण की ऐसी माया है कि पूर्व जन्म के संस्कार का वंश प्राणियों के अगले जन्म अवश्य होता है उसके वंश के कारण राजा प्रियव्रत ने राज किया किंतु वास्तव में वह इन माया वाले चीजों से भी वक्त के राज्य एवं पुत्र हो उन्होंने बांध सका कुछ दिन तक राज करने के उपरांत प्रभु का ध्यान भजन एवं तब करने में लीन हो गए तब करने हेतु जब घर बाहर छोड़कर मत राजा चलन पर्वत पर चल पड़े तब राजा स्वभाव मनु ने वहां जाकर फ्री व्रत से कहा यह पुत्र तू विवाह करके आज का शुभ हो और पुत्रों की उत्पत्ति कर क्या सनकर राजा प्रियव्रत कहने लगे हे पिता श्री विवाह और संतान माया के दो ऐसे रूप है जिसके मुंह में फंस कर जीव नरगा में होता है मुझे प्रभु के चरणों की चाहे सांसारिक सुखों को प्राप्त करने की इच्छा नहीं है जिस समय राजा प्रियव्रत और इस नोहा यू मनु के बीच वार्ता हो रही थी उसी समय हंस पर सवार होकर संक आदि ऋषि सहित पितामह ब्रह्मा जी पधारे उनके आगमन को देख करिश्मा यू मनु अति प्रसन्न हुए और दंडवत प्रणाम कर सत्कार किया तब ब्रह्माजी बोले यह प्रियव्रत राज करना क्षत्रिय धर्म है और इस धर्म का पालन करने के लिए स्वयं नारायण जी ने आदेश दिया है तथा उनके आज्ञा अनुसार विवाह करके जीवो की वृद्धि करो श्री हरिनारायण ने हर प्रकार के प्राणियों के लिए अलग-अलग कार्य निर्धारित किए हैं उस प्राणी को वही कार्य करना होता है जो प्रभु चाहते हैं हे प्रियव्रत गृहस्थाश्रम बुरा नहीं है यदि मनुष्य घर में रहकर काम क्रोध लोभ मोह एवं अहंकार को अपने वश में कर ले तो उसे 1 में जाकर तब करने की आवश्यकता नहीं है और जो अपनी इंद्रियों को अपने वश में ना कर सके उसे सन्यासी बन कर जंगल में भटकने से कोई लाभ नहीं क्योंकि हर समय उसका मन चंचल होकर अपने परिवार जनों की तरफ भागे गाता प्रभु का ध्यान भजन कर पाना असंभव है तथा सब ध्यान भजन नहीं हो सकेगा तो प्रभु का दर्शन पाना दुर्लभ है जब मां के गर्व से जीव मनुष्य से तात्पर्य है उसकी उत्पत्ति होती है उसी समय उसके तन पर तीन प्रकार के चरणों कर्ज का भार लग जाता है देव ऋण वितरण और ऋषि ऋण इन दिनों से ऋण होने के पश्चात ही मनुष्य को वैराग्य धारण करना चाहिए ब्रह्मा जी द्वारा इस प्रकार का उपदेश पाकर राजा प्रियव्रत ने राज करना स्वीकार किया तब ब्रह्मा जी एवं श्री शुभम मनु ने ले जाकर महिष्मति पूरी के राज सिंहासन पर बैठाया और प्रियव्रत को आशीर्वाद प्रदान कर अपने स्थान को चले गए उसके पश्चात राजा प्रियव्रत ने प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री श्रीमती से विवाह कर 10 पुत्र उत्पन्न किए जिसके नाम अभिनीत हर इस रूद्र यग न्यू महावीर हिरण क्षेत्र में सावन में अतिथि गृह नीति हो तथा कभी हुए राजा भरत की स्त्री बहुत सुमति के गर्व से एक कन्या की उत्पन्न हुई आरपी नामक कि उस कन्या का विवाह शुक्राचार्य के साथ हुआ राजा के 3 पुत्र ब्रह्मचारी थे उन्होंने बहुत काल तक सुख पूर्वक राज किया उसके बाद राजभर आपने सातों पुत्रों को सौंप दिया एक बार राजा प्रियव्रत के राज में सुमेरु पर्वत की परिक्रमा करने के कारण भगवान सूर्य आधे समय तक प्रकाश तथा आधे समय तक अंधकार रखते थे कदाचित यह बात राजा प्रियव्रत को पसंद ना आए अतः इस्त्री काल को दिन कर उद्देश्य गुरुदेव के अस्तित्व होने के बाद पोयम रथ पर सवार होकर प्रीत पर प्रकाश करते इस तरह उनके राज्य में कभी अंधेरा नहीं होता था रात में परियों के घूमने से पृथ्वी पर सात समुंदर एवं सात दीप बन गए पहला जम्मू दीप दीप दीप में भरतखंड आती है इसके चारों ओर हरे पानी का समुद्र है जो लाख युवाओं में घिरे हैं दूसरा पाकर दिव्य है जो दो लाख योजना के घेरे में है उनके चारों और मीठे पानी का समुद्र है तीसरा सम्मिलित देती है और यहां चार चार लाख योजना के घरों में है उसके चारों और मदिरा का समुद्र है जो था उस दिन 8:00 योजना से गिरे नेगी के समुद्र में गिरा है पांचवें दीप कोकरोच दीप कहते हैं उसका विस्तार 1600000 योजना और दूध के समुद्र से उनके चारों ओर से घिरा है छठवां दीप है सात दीप जो 32 लाख योजन के घरे में है उसके चारों तरफ हाथ मठका समुद्र है और साथ में दीप का नाम पूछ कर दी पर जो 64 लाख योजन के घेरे में है और मीठे जल के समुद्र से घिरा है राजा प्रियव्रत ने अपने साथ पुत्रों को एक एक दिव्य बांट दिया और आपने तेजस्वी नामक की कन्या का विवाह शुक्राचार्य जिसे कर दिया उसके गर्व से देवयानी की उत्पन्न हुई तब सुखदेव जी राजा परीक्षित से कहने लगे हे राजन आप धर्मात्मा एवं ज्ञानवान हैं श्री नारायण की इच्छा के विपरीत कोई कार्य नहीं करना चाहिए उनके वचन सुनकर राजा ने रथ रोक लिया और अपने रानी महिष्मति से कहने लगे हे रानी देवर्षि नारद के बताएं विज्ञान को बुलाकर हम संसारी मोह माया में आकर फस गए हैं यह सुनकर रानी कहने लगी यह स्वामी आपका कथन सत्य है हमें संसार इक माया त्याग देनी चाहिए तब राजा प्रियव्रत ने अपना संपूर्ण राजपूतों को देखकर श्री हरि नारायण का ध्यान एवं तब करने के लिए स समेत वन में चले गए और तब करते हुए प्रभु की कृपा प्राप्त कर मुक्ति पाई
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fifth Skandha Chapter One Beginning
Description of the story of King Parikshit by Shri Sukhdev ji King Parikshit, who is drinking the Bhagwat story by the enlightened Shri Sukhdev ji, spoke very sweetly without saying, O Mahatma, when Priyavrata, son of self-styled godman Manu, listened to the teachings from the god Narad in his childhood and followed him. While doing detachment from worldly illusions and then went to the forest for the purpose of becoming a householder, knowing how the desire to enjoy life by becoming a householder had arisen in his mind, why Pushkar was trapped in the worldly illusion, after hearing the words of King Parikshit, Shri Sukhdev ji said, O King Parikshit, you yourself are wise. Yes, you have asked me a very good question, so listen carefully to what I tell you, Lord Shree Narayan has such an illusion that the descent of the rites of the previous birth is definitely the next birth of the creatures, because of his lineage, King Priyavrat ruled but in reality I was able to bind him to these illusory things as well as the kingdom and son of time. After ruling for a few days, he became absorbed in worshiping the Lord and then to do it when the king left the house and walked on the mountain. King Prabhava Manu went there Said from the tax free fast that this son is auspicious by marrying you today and after giving birth to sons, the king started saying Priyavrata, O father, marriage and children are two such forms of Maya, in whose mouth the soul is trapped in Narga. Whether the feet have no desire to get worldly pleasures, at the time when the talks were going on between King Priyavrata and this Noha U Manu, at the same time, riding a swan, along with Sank Adi Rishi, Pitamah Brahma ji came to see their arrival, Karishma U Manu was very pleased. Lord Brahma said that it is Kshatriya religion to rule Priyavrat and to follow this religion, Narayan Ji himself has given orders and according to his orders, increase the lives by marrying Shri Harinarayan. Different tasks have been set for that creature, that creature has to do the same work which the Lord wants, O Priyavrata Grihasthashram, it is not bad if a person stays at home and controls his work, anger, greed, attachment and ego, then he should go to 1 and then do it. is not needed and who does not control his senses There is no use in wandering in the forest as a sanyasi, because all the time, his mind becomes restless and runs towards his family members, it is impossible to worship the Lord and all meditation will not be able to worship, then it is rare to get the vision of God when the mother From the pride of the soul, it means that he is born, at the same time the burden of debt is imposed on his body in three types of stages, debt distribution and sage debt from these days, only after getting debt, man should adopt dispassion by Brahma ji. After receiving this kind of instruction, King Priyavrata accepted to rule, then Brahma ji and Shri Shubham Manu took Mahishmati and made him sit on the throne of Puri and after blessing Priyavrata went to his place, after that King Priyavrata married Prajapati Vishwakarma's daughter Smt. Married and produced 10 sons, whose name is starring in this Rudra Yuga New Mahavir deer area, there should be a guest house policy in Sawan and the woman of King Bharata, who was born with a lot of pride, was born to a girl named RP, that girl was married to Shukracharya. The king's 3 sons happened with Brahm. They were Macharis, they ruled happily for a long time, after that you handed over the kingdom to all the seven sons. Once in the reign of King Priyavrata, Lord Sun used to keep light for half the time and darkness for half the time due to the circumambulation of Mount Sumeru. Priyavrata did not like it, so after the existence of Gurudev, Poyam rode on the chariot and lighted on love, in this way there was never darkness in his kingdom due to the wandering of fairies in the night, seven seas and seven lamps on the earth. Became the first Jammu Deep Deep, Bharatkhand comes in the Deep Deep, around it there is a sea of green water surrounded by lakhs of youth. There are four lakh yojana houses here, around it there is a sea of wine, which had fallen from 8:00 yojana on that day. The sixth lamp is surrounded by seven lamps which are in the house of 32 lakh yojanas. There is a sea of maths on all sides, and asked the name of the lamp, but which is in the circle of 64 lakh yojanas and is surrounded by the sea of sweet water, King Priyavrata distributed one divine to the sons with him and you have a daughter named Tejashwi. Devyani was born out of the pride of the one whom Shukracharya married, then Sukhdev ji started saying to King Parikshit, O king, you are pious and knowledgeable, you should not do any work against the wishes of Shri Narayan, listening to his words, the king stopped the chariot and took his queen. He started saying to Mahishmati, O Queen Devarshi, after calling Narad's science, we have got caught in the worldly fascination, hearing this, the queen started saying that this lord, your statement is true, we should give up the world, then King Priyavrat, seeing his entire Rajputs, Shri. To meditate on Hari Narayan and then went to the forest along with him and while doing so, got salvation by receiving the grace of the Lord.
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