श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 9

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 9 आरंभ

बालक हरि भक्त ध्रुव की कथा मैथिली जी कहने लगे हैं विदुर जी आप तक मैं महाराजा मनु एवं शतरूपा की कन्याओं के वंशज की कथा आपको सुना रहा था स्वयं अभिमन्य के 2 पुत्र भी उत्पन्न हुए थे आप उनकी कथा आप ध्यान लगाकर सुनिए उन्हें प्रभु कृपा से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई उत्तर भारत एवं प्रयोग औरत स्वयंभू मनु के मरणोपरांत सिहासन के उत्तराधिकारी उत्पाद हुए यदि किसी के मन में यह विचार उठेगी महाराज मनु की गति पर युवक ने राज किया था तो उतना पाद जैसे राजा हुए तो वे मनुष्य यह जानने की राजा उतना पान उस राज्य के दूसरे नगर के राजा हुए उन की दो पत्नियां थी सुनीति एवं सुरुचि बड़ी रानी सुनीति के घरों से ध्रुव एवं सुरुचि के गर्व से उत्तम नामा के कुमार की उत्पत्ति हुई किंतु अपनी छोटी रानी सुरुचि के रूप में सौंदर्य पर ज्यादा मोहित रहने के कारण राजा उत्पाद उसकी हर एक बातें मानते थे और याद आ गधा सुनिश्चित की अपेक्षा भी कर लेते थे सुनीति से उनका प्रेम कम था 1 दिन राजा अपने सिंहासन पर बैठे उत्तम को गोद में लेकर दुलार रहे थे उसी समय खेलता हुआ बालक ध्रुव वहां आ पहुंचा पुत्र वह भी था उसे देखकर राजा के मन में प्यार हुंडा और उन्होंने उत्तम को खुद से उतारकर बालक ध्रुव को उठा लिया राजा के इस कार्य को देख वहां खड़े छोटी रानी सुरुचि को अत्यधिक ईसिया हुआ और उसने ध्रुव को राजा की गोश्त से घसीट कर नीचे उतार दिया राजा कुछ ना बोल सके उनके सम्मुख श्री हिंदू को भला बुरा कहते हुए सुरुचि कड़वे शब्दों में बोली अरे आभा क बालक तू राजा की गोद में बैठने का अधिकार नहीं है यदि तुमने पूर्व जन्म में नारायण का नाम स्मरण किया होता तो उसकी स्थिति होती तो इस जन्म में तो मेरी कोख से जन्म लिया होता तब तुझे राजा की गोद की प्राप्ति होती तो इस जन्म में राजा सिहासन पर नहीं बैठ सकती छोटी माता सुरुचि के फोटो वाणी सुनकर 5 वर्षीय बालक ध्रुव का मन घायल हो गया वह रोता हुआ अपनी माता सुनिश्चित किए पास जा पहुंचा उसे रोता देख समिति ने उसके रोने का कारण पूछा था वह वाला गेम आते मैं खेलता हुआ पिताश्री के पास पहुंचा मुझे देखकर उन्होंने मुझे पसंद पूर्वक उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया किंतु किंतु काकरवा शुभ काम में लगा तब सो सुनीति बोली किंतु क्या बेटा तब वह सुखाते हुए बोला छोटी मां ने मुझे पिताश्री के वह से नीचे उतार दिया और फटकार कर कहने लगी कि तू राजा की गोद में और राज सिंहासन पर बैठने का अधिकार नहीं है तथा मुझे डांट कर भगा दिया जाए हे माता उस समय पिताश्री भी कुछ ना बोले मुझे अत्यंत दुख की प्राप्ति हुई है छोटी माता कह रही थी कि तू ने पूर्व जन्म में नारायण का स्मरण नहीं किया इसलिए तू अभागा है पता है माता सर्वप्रथम आप मुझे यह बताओ कि नारायण कौन है पुत्र के इस प्रकार के वचनों को सुनकर सुनती के नेत्रों से अश्रु धारा बहने लगी वह अत्यंत बिहार होकर बोली है पुत्र तू नारायण नहीं जानता नारायण की कृपा जिस प्राणी को प्राप्त हो जाती है वह जन्म मरण के बंधन से छूट जाता है वह परम सामर्थ्य वांट सृष्टि के सर्वोच्च सिहासन पर विराज ने वाले परम दयालु हैं तब रोते हुए बालक ध्रुव अत्यंत बिहार होने लगा यह देखकर सुनीति उसे अपनी गोद में बैठ आते हुए बोली हे पुत्र तेरी छोटी मां के कथन सत्य है तूने पूर्व जन्म में प्रभु श्री नारायण का भजन ना किया जिस कारण पिता की गोद प्राप्त करने से वंचित रहा यह सुन कर दो इबोला क्या ऐसा कोई स्थान नहीं है माथे जो राजा की गोद वोहरा सिहासन से भी ऊंचा हो बालक ध्रुव की बात सुनकर समिति बोली है क्योंकि नहीं मेरे लाल ऐसा है कि इस तरह है किंतु उचित स्थान के पास अपना अत्यंत दुष्कर है तब दुख हुआ नीचे भरे स्वर में भोला माता श्री आप उसी स्थान की प्राप्ति का उपाय बदलाव जो राजा की गोद और राज सिहासन से भी ऊंचा है पुत्र की बातें सुनकर सुनीति कहने लगी है पुत्र समस्त संसार में नारायण की गोद में बैठना सर्वोत्तम स्थान है उसी स्थान को ऋषि मुनि ज्ञानी और देवता भी नहीं प्राप्त कर पाते हैं पुत्र तेरे पर से जब सृष्टि उत्पत्ति का कार्य ना हो सका तो उसे परम तत्व परमेश्वर का ध्यान एवं तब किया जिससे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और उसके बाद दादा स्वयंभू मनु ने भी परमेश्वर की कृपा प्राप्त कर सृष्टि विस्तार का कार्य किया परमेश्वर का तप करने से प्राणी हर कामना पूर्ण होती है माता के वचनों को सुनकर छोटी रहने के ऊपर वार से शिक्षा बंद 5 वर्ष का बालक ध्रुव घर से निकलकर ओवन के लिए प्रस्थान कर गया रास्ते में उसे मन में विचार उभरा कि मैं अज्ञानी बालक नारायण को कभी देखा नहीं हूं इस तरह उसका पता लगाओ आरा में देवर्षि नारद रूप देकर विचार किया कि आपने बी ममता सौतेली मां की घोषणा से दुखी होकर श्री नारायण की खोज में निकला है अतः हमें इसकी परीक्षा देनी चाहिए और नारद जी का यह विचार करके धूप है सामने पहुंच कर बोलिए बालक तू किस कारण से अपने घर को छोड़कर वाना मे जा रहा है इस बाल्यकाल में तुझे खेलने कूदने के सिवा कुछ सारे नहीं करनी चाहिए और ना तो किसी के कहे वो दूर वचनों पर ध्यान नहीं देना चाहिए हम तुम्हें तेरे पिता महाराज के पास ले चलते हैं और उसे कह कर राजगद्दी दिलों आएंगे अथवा जिस वस्तु की तू इच्छा व्यक्त करेगा वह वस्तु प्रदान करेंगे नारायण की खोज कर पाना अत्यंत दुष्कर्म है जो तुझ जैसे बालक से कदापि ना हो सकेगा इसलिए मेरा कहा मान कर तू वापस घर को चले नारायण को पाने के लिए ऋषि मुनि योगी जाना अपने तन को ताप करके जला डालते हैं फिर भी प्रभु का दर्शन नहीं हो पाता फिर तू तो अभी 5 वर्ष का बालक है यह वाला काम देवर्षि नारद है हम तुम्हें राजा उत्पाद से सब कुछ दिलवा आएंगे नारद जी के वचनों को सुन कर दू में विचार के नारद के बारे में माता के मुख से सुना है कि नारायण के परम भक्त हैं यह जानकर धोने नारद जी को दंडवत प्रणाम किया और विनय पूर्व बोला है स्वामी आप तो नारायण जी के परम भक्त हैं अतः प्रभु के चरणों मे तक पहुंचने के लिए मेरी सहायता कीजिए और यह भी जान लीजिए कि मैं जब तक प्रभु के दर्शन नहीं पाऊंगा उनकी गोद में बैठ नहीं लूंगा तब मैं वापस लौट कर घर नहीं जाऊंगा इसलिए मुझे घर वापस ले जाने का आपका प्रयास करना व्यर्थ है उसकी परमेश्वर की प्राप्ति अटूट भक्ति देखकर उसे ज्ञान सिंह ने का संकल्प करते हुए नारद जी बेतूल मधुर वचन में बोले हे ध्रुव हम तेरे परीक्षा ले रहे थे तो मेरी परीक्षा में पूर्ण रूप से खरा उतरा पता हम तुम्हें नारायण से मिलाने का मार्ग बतलाते हैं तू यहां से मधुरापुरी चले जा और यमुना जी के किनारे कुशासन बिछाकर उत्तर दिशा की तरफ करके बढ़ जाना और नारायण का ध्यान करना नींद यमुना जी के में स्नान करके शुद्ध मोसे स्तुति करना त्रिलोकीनाथ श्री हरिनारायण होठों पर वह ना रहते हैं उसका स्वरूप अत्यंत सुंदर है उसका दर्शन करके तुम जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाओगे और फल फूल डूब एवं जाल में धूप दीप आकर उसका ध्यान करना इस प्रकार बालक ध्रुव को ज्ञान का उपदेश देते हुए नाराज जी ने ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का मंत्र उसे बतलाया तब अल्पाहार करने की शिक्षा दी मैथिली जी के क्षण मात्र के लिए चुप हुए तत्पश्चात बोले हे विदुर जी नारद जी ने बालक ध्रुव को श्री नारायण के चतुर्भुज स्वरूप के बारे में बतलाया जिससे उसे बड़े ध्यान और प्रसंता से सुना तत्पश्चात वह बोला हे देवर्षि आपने प्रभु को प्राप्त करने का सहज मार्ग बदला तक लाकर मुझ पर महान कृपा की अन्यथ माया ज्ञान बालापुर से घर-घर गांव गांव में रहता था यह कह कर उसने नारद भगवान को दंडवत प्रणाम किया और उनके कथा अनुसार मथुरा पूर के लिए प्रस्थान कर गए उसके चले जाने के बाद नारद जी वहां से चलकर राजा उत्पाद के पास पहुंचे उस समय राजा और उनकी रानी ध्रुव के लिए अत्यंत चिंतित एवं दुख ही दिखाई दे रहे थे और अपनी छोटी रानी पर क्रोधित भी हो रहे थे तूने कड़वे वचन का कर मेरे पुत्र को वन में जाने का के लिए विवश किया तू बड़ी निर्दई है ना जाने मेरा पुत्र कहां होगा कैसा होगा इस तरह की वह आपस में बातें कर रहे थे उसी समय नाराज जी पहुंचे देवर्षि को राजस्थान से दंडवत प्रणाम किया और आसन पर बैठकर अपनी व्यथा सुनाने लगी राजा उत्पाद के वचनों को सुनकर नारदजी बोले हे राजा मैं तुम्हें पुत्र वियोग में अति व्याकुल होते हुए देख रहा हूं किंतु तुम अपना मन उदास ना करो तुम्हारा बेटा मुझे मार्ग में मिला था से घर लौटा लाने का बहुत प्रयास मैंने किया किंतु वह आपने बात पर अड़ी रहा मेरी एक ना माना तथा प्रभु श्री नारायण के बारे में पूछता रहा जब मुझे विश्वास हो गया कि यह ना मानेगा तब मैंने नारायण का दर्शन पाने का उपाय बतला दिया और मथुरा भेज दिया अतः मेरी बात मान कर निश्चित हो जाओ तुम्हारा पुत्र दो ऐसी आदम प्राप्त करेगा जो आज तक तुम्हारे पुरखे में ना प्राप्त कर सके वह प्रभु की शरण में है इसलिए उसे प्रति चिंता करना मूर्खता होगी राजापाकर नारद जी ब्रह्मा लोग चले गए उधर मथुरा पहुंचकर गुरु ने कुशासन बिछाकर नारद जी की आज्ञा अनुसार तब करना आरंभ किया 3 दिन तक वह एक समय खा कर रहा फिर साथ में दिन एक बार थोड़ा सा आहार ग्रहण करने का निश्चय बना या फिर 3 महीने तक वृक्ष की प्रतीक्षा कर रहा उसके बाद पति खाना भी उसने त्याग दिया और जल पीकर तब करने लगा और पांचवें महीने जल्दी त्याग कर दिया एक पैर पर खड़े होकर महाराज जी द्वारा बताए हुए नारायण के चतुर्भुज रूप का ध्यान करने लगा किसी प्रकार आहार ना करने से उसका तन अत्यंत निर्बल हो गया किंतु फिर भी वह विचलित ना पुआ सांसो का आवागमन भी रुक गया और उसी स्थिति को पहुंचते ही तीनों लोगों की हवा चलनी बंद हो गई और हवा ना रहने से प्राणी में त्राहि-त्राहि मच गई यह महान आश्चर्यजनक दृश्य देखकर ब्रह्माजी एवं देवता गण भागते हुए नारायण के पास पहुंचे

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Chaturthi Skandha Chapter 9 Beginning

Maithili ji has started telling the story of the child Hari devotee Dhruv, Vidur ji, till you I was telling you the story of the descendants of the daughters of Maharaja Manu and Shatrupa. Two sons were obtained from North India and the experiment woman became the successor to the posthumous throne of self-styled godman Manu. He had two wives Suniti and Suruchi. Because of this, the king used to believe every thing of his things and remembered that the donkey used to expect even for sure, his love for Suniti was less. The son arrived, he was also there, seeing him, there was love in the mind of the king. And he lifted Uttam from himself and lifted the child Dhruv, seeing this act of the king, the little queen Suruchi standing there became very Christian and dragged Dhruv down from the king's meat, the king could not speak anything to Shri Hindu in front of him. Saying good and bad, Suruchi said in bitter words, Oh child of Abha, you do not have the right to sit on the lap of the king, if you had remembered the name of Narayan in your previous life, then it would have been his condition, then in this life you would have been born from my womb. If you had received the king's lap, then in this birth, the king cannot sit on the throne, hearing the voice of the younger mother Suruchi, the mind of the 5-year-old boy Dhruv was injured, crying after seeing his mother ensured that the committee saw her crying. I had asked the reason for that game, I came to my father while playing that game. Seeing me, he picked me up and made me sit on his lap, but Kakarva was engaged in auspicious work, then Suniti said, but what son then he said while drying the younger mother He took it down from his father's side and reprimanded him and said that you are I do not have the right to sit in my lap and on the throne of the kingdom and I should be scolded and driven away, O mother, at that time the father did not even say anything, I have felt very sad, the younger mother was saying that you remembered Narayan in your previous life. That's why you are unfortunate, you know mother, first of all you tell me who is Narayan, after listening to such words of the son, the tears started flowing from his eyes, he said, being very Bihar, son, you do not know Narayan's grace to the creature. One gets it, he is released from the bondage of birth and death, that supreme power, the one who sits on the supreme throne of creation, is the most merciful, then seeing the crying child Dhruv started becoming very Bihari, seeing him sitting on his lap, Suniti said. Son, your younger mother's statement is true, you did not worship Lord Shree Narayan in your previous birth, due to which you were deprived of receiving the father's lap. Yes, the committee has spoken after listening to the child Dhruv, because no my red is such that like this But it is very difficult near the right place, then it was sad that the innocent mother, Shri you changed the way to attain the same place which is higher than the king's lap and the king's throne, listening to the words of the son, Suniti has started saying son the whole world. It is the best place to sit in Narayan's lap, the same place, even sages, sages and gods are not able to get it. After that, Dada Swayambhu Manu also did the work of expansion of the universe after receiving the blessings of God. By doing penance of God, every wish is fulfilled by the creature, listening to the words of the mother, the education of 5 year old boy Dhruv stopped from home. On the way out and left for the oven, a thought emerged in his mind that I have never seen the ignorant child Narayan, trace him in this way by giving the form of Devarshi Narad in Ara and thought that you were saddened by the announcement of B Mamta's stepmother, Shri Narayan So we want to test it Come and think of Narad ji, it is sunshine, reach in front and say child, for what reason are you leaving your home and going to Wana, in this childhood you should not do anything except jump to play and neither should anyone tell those distant words. But you should not pay attention, we take you to your father Maharaj and by telling him the throne will come to the hearts or you will give whatever you desire, it is a very misdeed to find Narayan, which can never happen to a child like you. Therefore, obeying my words, you go back home to get Narayan, go to sage sage yogi, burn your body by heating it, yet God is not able to see it, then you are still a child of 5 years, this work is done by Devarshi Narad. We will get you everything from King's product, after listening to the words of Narad ji, I have heard about Narada from the mouth of my mother, knowing that she is the supreme devotee of Narayan, bowed down to Narad ji and said humbly. Hey Swami, you are the supreme devotee of Narayan ji, so be at the feet of the Lord.Help me to reach me and also know that I will not go back home until I get the darshan of the Lord, so your effort to take me back home is in vain. Seeing the unwavering devotion of God, Gyan Singh resolved to him, Narad ji said in a sweet word, O Dhruv, we were taking your test, so I fully met my test, know we show you the way to meet Narayan, you are here Go to Madhurapuri from and lay misrule on the banks of Yamuna ji, move towards the north direction and meditate on Narayan, sleep, bathe in Yamuna ji and praise pure Moose, Trilokinath Shri Harinarayan does not live on his lips, his appearance is very beautiful, his vision is By doing this, you will be free from the sins of birth after birth and by drowning fruits and flowers and coming in the incense lamp in the net, meditating on it, in this way, while preaching knowledge to the child Dhruv, angry ji told him the mantra of Om Namo Bhagwate Vasudevaya Namah, then teach him to eat snacks. Quiet for just a moment of the Maithili ji After that he said, O Vidur ji, Narad ji told the child Dhruv about the four-armed form of Shree Narayan, from whom he listened to him with great attention and admiration, after that he said, O God, you have done me great grace by bringing the easy way to attain the Lord. Otherwise, saying that Maya Gyan lived from village to village from Balapur, he bowed down to Lord Narad and according to his legend, he left for Mathura Pur, after his departure, Narad ji walked from there and reached the king product. At the time, the king and his queen were very worried and sad for Dhruv and were also getting angry on their younger queen, you forced my son to go to the forest by saying a bitter word, you are very cruel, don't you know mine? Where will the son be, how will it be, such that they were talking among themselves, at the same time the angry ji reached Devarshi, bowed down to Rajasthan and sat on the seat and started narrating his agony, listening to the words of the king product, Naradji said, O king, I am leaving you son in separation. I am looking very disturbed but you do not make your mind sad, you I made a lot of efforts to bring the lost son back home from the one I met on the way, but he was adamant on your point, did not listen to me and kept asking about Lord Shri Narayan, when I was convinced that he would not obey, then I saw Narayan. Told me the way to get it and sent it to Mathura, so be sure by obeying me, your son will get two such Adams which till today cannot get in your ancestors, he is in the shelter of the Lord, so it would be foolish to worry about him. Brahma people went there, after reaching Mathura, the Guru started doing misrule as per the orders of Narad ji, then he was eating for 3 days at a time, then together it was decided to take a little food once a day or else the tree for 3 months. After waiting, she also gave up her husband's food and after drinking water and then gave up early in the fifth month, standing on one leg, started meditating on the four-armed form of Narayan as told by Maharaj Ji, his body was not eating any way He became very weak, but still he did not get distracted but the flow of breath also stopped. Gaya and on reaching the same position, the wind stopped blowing for all the three people and the creature was devastated due to the absence of air. Seeing this great amazing sight, Brahma ji and the gods rushed to Narayan.

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