श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 7 आरंभ
शिव जी का प्रसन्ना होना पितामह ब्रह्मा के बारंबार निवेदन करने पर शिवजी भोले हे ब्रह्मा जी सती केतन त्यागने से मैंने गोद अवस्था में होकर दक्ष प्रजापति को दंडित किया अन्यथा किसी को दूर वचन कहने से में रुकावट नहीं हुआ करता फिर हरि इच्छा भी तो ऐसी ही थी तो उनकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं होता इतनी कथा बदलाव कर मैथिली जी बोले हे महात्मा विदुर ब्रह्मा जी के गिनती को स्वीकार कर भगवान उसके साथ प्रसन्न होकर दक्ष प्रजापति की यज्ञशाला में पहुंचे वहां देवताओं ने उनकी बहुत प्रकार से स्तुति की ब्रह्मा जी बिना करते हुए बोले हैं रुद्रावतार हे देवाधिदेव आप समर्थ वान हैं इन सभी को क्षमादान दे कर इनको पूर्व स्थिति प्राप्त होने का आशीर्वाद दो तब शंकरजी मधुर वाणी से बोले हे ब्रह्मा जी दक्ष प्रजापति का सीरी अज्ञ कुड में जल चुका है इसलिए अब वह अपनी पूर्व स्थिति को नहीं प्राप्त हो सकता आता है बकरे का सिर काट कर उसके घर से जोड़कर उन्हें जीवित कर देता हूं यह काकर दक्ष के सिर के स्थान पर उन्होंने बकरे का सिर जोड़ दिया और प्रिंस जी की दाढ़ी मूछें की स्थान पर बकरे की दाढ़ी मूछें लगा दी और वहां जम गई भाग देव को मित्र देवता के नेत्र दिए जाते हैं पृष्टा के दांत नष्ट हो गए हैं अतः वह दशक के दांत से भोजन करते हैं और प्रभु के आशीर्वाद से बाकी अन्य समस्त देवताओं के टूटे-फूटे आपने वास्तविक स्थिति को प्राप्त हो गए किंतु बकरे का सिर मोड़ने के कारण दक्ष प्रजापति के मुख से बकरे की आवाज निकल रही थी वह वह वह के अलावा कुछ बोलना पा रहे थे उनकी इस स्थिति को देखकर सभी लोग हंसने लगे तब शंकर भगवान ने उनके सिर पर अपना हाथ फेरा तत्पश्चात दक्ष प्रजापति को बोलने की शक्ति प्राप्त हो गई तब दक्ष प्रजापति ने शिवजी के दंडवत प्रणाम किया और अत्यंत दिन होकर बोले हैं स्वामी मैं अज्ञानी ज्ञान व आप की प्रभुता को ना जान सका था और उसी अज्ञान के कारण मुझसे भयंकर अपराध हुआ वैसे ही फल कि मुझे प्राप्ति भी हुई किंतु आप हिरदे बहुत विशाल है जो आपने मुझे जैसे आप रात को क्षमादान देते हुए पुनर्जीवित कर दिया आप धन्य है प्रभु अथवा आपकी महिमा भी धन्य है इस प्रकार दक्ष प्रजापति भगवान शंकर की महिमा का गुणगान करते हुए विनती करते करने लगे उनके पश्चात ब्रह्मा आदि देवताओं सहित दक्ष प्रजापति की अवस्था में इस वक्त हुए यज्ञ को पूर्ण कराने हेतु आसन पर बैठ गए और सहस्त्र की रीति से यज्ञ को संपन्न कराया यज्ञ संपन्न होते ही श्री हरिनारायण आपने चतुर्भुज रूप से यज्ञ कुंड से प्रकट हुए हुए संघ गधा चक्र एवं पर धारण किए हुए अत्यंत सुंदर लग रहे थे सिर पर रत्न जड़े मुकुट जिसमें मोर पंख लगा हुआ था गले में वैजयंती माला और अपने प्रिय वाहन गरुड पर सवार थे उनके मनोहारी रूप का दर्शन कर देवता सहित यज्ञशाला में उपस्थित सभी लोग अपने जीवन को सामर्थ समझने लगे तब प्रभु की स्तुति करते हुए दक्ष प्रजापति बोले हे त्रिलोकीनाथ यह समस्त सृष्टि के मालिक मुझे अज्ञातवास भगवान शंकर का अनादर हो गया था और यज्ञ विधिवत हो गया किंतु प्रभु शिवजी की मुझ पर कृपा हुई और यज्ञ पूर्ण हुआ और आपका दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुआ दक्ष की वाणी सुनकर यज्ञ भगवान बोले हैं दक्ष प्रजापति ब्रह्मा विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं को एक समान जानू तीनों ही यज्ञ पुरुष है अतः इसमें से किसी का भी अनादर करना अनुचित होगा
Lord Shiva to be pleased On repeated requests of Pitamah Brahma, Lord Shiva is innocent, O Brahma ji, by giving up Sati Ketan, I punished Daksha Prajapati by being in the lap state, otherwise there would not have been a hindrance in speaking distant words to anyone, then Hari's desire is also like this. If there was nothing contrary to their wishes, Maithili ji said after changing the story, oh Mahatma Vidur, after accepting the count of Brahma ji, God was pleased with him and reached Daksha Prajapati's yagyashala, where the gods praised him in many ways, Brahma ji would have done without. It has been said that Rudravatar, O Devadhidev, you are a capable man, by granting clemency to all of them, bless them to get their former condition, then Shankarji said with a sweet voice, O Brahma ji Daksha Prajapati's Siri has been burnt in the fire, so now he can restore his former condition. Can't get it, I cut the goat's head and connect it to his house and make him alive, instead of Daksha's head, he added the goat's head and instead of Prince ji's beard mustache, he put the goat's beard and moustache. Bhag Dev's friend got frozen there The eyes of the deity are given, the teeth of the deity have been destroyed, so they eat with the teeth of the decade and with the blessings of the Lord, you have attained the original condition of all the other gods, but due to turning the head of the goat, he became efficient. A goat's voice was coming out of Prajapati's mouth, he was able to speak anything other than that, seeing his condition, everyone started laughing, then Lord Shankar put his hand on his head, after that Daksha Prajapati got the power to speak. Daksha Prajapati bowed down to Lord Shiva and said after a long time, Swami, I could not know the ignorant knowledge and your sovereignty and because of that ignorance I committed a terrible crime, the same result that I also got, but you are very huge. The one who revived me by granting clemency to me in the night, you are blessed Lord or your glory is also blessed, in this way Daksha Prajapati started praying, praising the glory of Lord Shankar, after him in the state of Daksha Prajapati along with Brahma etc. To complete the Yagya done at this time, sit on the seat. Went and got the yagya done in the manner of Sahastra Vyjayanthi garland around his neck and his beloved vehicle Garuda was riding on seeing his beautiful form, all the people present in the yagyasala including the deity started to understand their life as the power, then while praising the Lord, Daksha Prajapati said, O Trilokinath, the master of all this creation, I am unknown to God. Shankar was disrespected and the yagya was done properly, but Lord Shiva was pleased with me and the yajna was completed and you got a rare vision. Hearing the voice of Daksha, Yajna God has said, Daksha Prajapati, Brahma Vishnu and Mahesh, know these three deities alike. All three are Yagya Purush, so it would be unfair to disrespect any of them.
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