श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 6

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 6 आरंभ

ब्रह्मा जी का कैलाश पति के पास जाना द ब्रह्मा जी के यज्ञ को भी स्वास्थ्य करने की कथा सुनाने के उपरांत मैथिली जी बोले भगवान शंकर के क्रोध का विनाश कार्य रूप देखकर देवता गण अत्यंत भयंकर होकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और प्रणाम करने के उपरांत घबराए हुए स्वर में बोले हैं पितामह हमारी रक्षा कीजिए हम आपकी शरण में हैं पिता मां हमें भगवान शिव का भजन होने से बचाएं ब्रह्मा जी के गंभीर वाणी में बोले हे देवता गण सामर्थ वन पुरुष से यह कोई दोस्त जनित कार्य हो जाता है फिर भी उसे अपेक्षा नहीं की जाती और आप लोग ने परम तेजस्वी आनंद फल दाता देवों का देव देवा दी देव महादेव शंकर को यज्ञ में उनका भागना देकर घोर अपराध के तुल्य कार्य किया और सती को अपमानित कर उसे प्राण त्यागने पर विवश कर दिया फिर भी भोला शंकर के पैर पकड़कर तुम सभी क्षमा याचना करो वे अत्यंत उदार हृदय है अवश्य ही समाधान देंगे हर था वह क्रोध से दक्ष का एक यज्ञ क्या संपूर्ण जगत पल भर में जलकर स्वाहा हो सकता है अतः तुम लोग मेरे साथ चलो मैं उनसे निवेदन करके तुम्हारे अपराधों को क्षमा करूंगा यह कह कर सभी देवताओं को अपने साथ लेकर ब्रह्मा जी का इलाज पर्वत पर जा पहुंचे वहां ही छटा देखकर उन सभी का मन मोहित हो उठा तालाब बावड़ी झरना एवं सुंदर सुगंधित फूलों से उड़ती सुगंध मन को मोहने वाली थी वहां अनेक प्रकार के पशु पक्षी एवं देवगन बिहार करते थे उस पर्वत पर गंधर्व एवं देवकन्या आती थी और वे लोग हिमालय पहाड़ से निकलने वाले स्वच्छ जल धारा में स्नान करके आती छुपाते थे उसी पहाड़ पर 400 को सूची और क्षेत्रों को धीरे विकसित अति विशाल वट वृक्ष के नीचे मेरी कसम महादेव जी बैठे हुए थे और शाम का अति रिसीव उनका गुण अनुवाद कर रहे थे उस समय महादेव जी हरि चर्चा में इस तरह लिंग थे कि उन्होंने यह ज्ञान ही ना रहा कि देवताओं का अपराध क्षमा करने हेतु ब्रह्मा जी पधारे उनकी सम्मुख पहुंचकर ब्रह्मा सहित अन्य सभी देवताओं ने उन्हें प्रणाम किया और यथा योग्य स्थान ग्रहण कर शिवजी के चारों ओर बैठ गए हुए पूर्व मंत्री चर्चा में मग्न रहे तब ब्रह्माजी ने बहु विधि से स्तुति की और विनय पूर्वक बोले हे महादेव आप सृष्टि के समस्त देवों के देव हैं इसी कारण आपका नाम महादेव व दक्ष प्रजापति आपके सामर्थ्य से परिचित ना थे और आकार के वशीभूत होकर अपना अपमान किया और उस अपमानजनक कर्म का उन्हें उचित फल प्राप्त हुआ आप आप दयालु होकर दक्ष प्रजापति के अपराध क्षमा करें तथा वीरभद्र के प्रकोप से डरे हुए देवताओं को अभय दान प्रदान करें और ऐसा आशीर्वाद दें जिससे देवताओं के टूटे हुए हाथ पैर पूर्व स्थिति को प्राप्त हो और दक्ष प्रजापति पुनः जीवित हो जाए हे देवाधिदेव कृपा करके रिंग नदी की दाढ़ी मूछें मुस्कान के दांतो भाग देव जी की आंखें पुनः पूर्व स्थिति को प्राप्त होने का आशीर्वाद दें आप यज्ञ पुरुष है इस कारण यज्ञ में आपका भाग होना अनिवार्य है अतः यज्ञ के पश्चात जो संस्कार बजाता है वह सरकार आपका भाग होगा

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Chaturthi Skandha Chapter 6 Beginning

After narrating the story of Brahma ji's going to Kailash's husband, the yagya of Brahma ji also after narrating the story of health, said Maithili ji, seeing the form of destruction of Lord Shankar's anger, the deities reached Brahma ji very frightened and after bowing they got frightened. It has been said in the voice that Father, protect us, we are in your shelter, father mother, save us from being a hymn to Lord Shiva, said in the solemn voice of Lord Brahma, this is a friend-born task with a mighty forest man, yet he expects Not done and you guys did the deva deva deva deva deva of the gods, giving Mahadev Shankar his participation in the yagya and humiliating Sati and forced her to give up her life, yet at the feet of Bhola Shankar Holding you all apologize, they have a very generous heart, they will surely give a solution, every one was a sacrifice of skill with anger, can the whole world be burnt in a moment, so you guys come with me, I will forgive your crimes by requesting them By saying this, taking all the deities with him, Brahma ji was cured. When they reached the vat, seeing the shade, all of them were fascinated by the smell of the pond, the waterfall and the beautiful fragrant flowers, there were many types of animals, birds and Devgan used to do Bihar, on that mountain Gandharva and Devkanya used to come and Those people used to hide coming after bathing in the clean water stream coming out of the Himalaya mountain. On the same mountain, the list and regions slowly developed under a very huge banyan tree. At that time, Mahadev ji was such a linga in Hari discussion that he had no knowledge that Brahma ji came before him to forgive the sins of the gods, all the other gods including Brahma bowed down to him and took the appropriate place and surrounded Shiva. Sitting on the other side, the former minister was engrossed in the discussion, then Brahma ji praised him in many ways and humbly said, O Mahadev, you are the God of all the gods of the universe, that is why your name Mahadev and Daksha Prajapati were not familiar with your power and were subdued by the size. He insulted himself and that degrading deed was punished by him. You have got the right result, please forgive the sins of Daksha Prajapati and give blessings to the deities who are afraid of the wrath of Veerabhadra and give such blessings that the broken hands and feet of the deities are restored to their former condition and Daksha Prajapati is alive again. Go, O God, please bless the ring river, the beard, the mustache, the teeth of the smile, God's eyes to regain the former position, you are a yagya man, that's why it is necessary to participate in the yagya, so the government that plays the rites after the yajna will be your part


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