श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 5 आरंभ
देवर्षि नारद द्वारा साथी खेतन त्यागने का वृतांत शिव जी से कहना हे विदुर जी जिस समय शिव जी के गाने दक्ष प्रजापति के यज्ञ से भागकर शिवजी के पास पहुंचे थे उसी समय अपनी वीणा बजाते हुए देवर्षि नारद जी पहुंचे नारायण नारायण प्रणाम प्रभु नारायण को यथोचित उत्तर देखकर भगवान शंकर बोले यह देवर्षि आपका आगमन का कारण नहीं होता अवश्य ही कोई ना कोई कारण होता है चाहिए क्या समाचार है शिव जी के वचनों को सुनकर देवर्षि नारद ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ मंडल में योग अग्नि द्वारा सती के उपरांत होने की संपूर्ण कथा उन्हें सुना दी और दक्ष के घर किस प्रकार शिव जी के सेवक भागे गए उसका भी वृतांत भगवान शंकर को बताया नारद जी से समाचार सुनकर जटाधारी भगवान शंकर अत्यंत को अतीत हो उठे और खुद स्वरूप उन्होंने 1 जून को सोचकर पृथ्वी पर जोर से पटका फलस्वरूप उसी समय भयंकर आटा करता हुआ एक विशालकाय आप पुरुष प्रगट व सहस्त्र भुजाओं और अग्नि के समान भागते हुए तीन नेत्रों वाले उस दैत्य सामान पुरुष के दांत अत्यंत विकराल थे वह मुंडा माला पहने हुए तथा हाथों में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के प्रगट होते ही उसने शिव शंकर भगवान के सम्मुख नतमस्तक होकर बोला हमारे लिए क्या आ गया है दे स्वामी उसकी वाणी सुनकर भगवान महाकाल भोले हे वीरभद्र तेरी उत्पत्ति मैं मेरा अंश सम्मिलित है तुम अति शीघ्र मेरे गणों सहित जाकर प्रजा दक्ष पति के संपूर्ण यज्ञ को विध्वंस कर दो यह सुनकर वीरभद्र ने कहा जैसी आज्ञा स्वामी यह कहा करवाओ भूत प्रेत गणों को लेकर दक्ष प्रजापति के यज्ञ हवन की तरफ प्रस्थान कर गया उसके सिंह नाम धन से समस्त भूमंडल थरथर आने लगा असमान से लेकर दसों दिशाएं गूंज उठी रहा आगे आगे बढ़ा जा रहा था उसके पीछे भगवान शिव के अन्य गण को हाल करते हुए जा रहे थे उनके स्वर को सुनकर और दौड़ने से उभर कर आकाश में छानी वाले धूल को देखकर ऋषि मुनि देवता एवं अन्य विद्यमान ब्राह्मणों के साथ बैठे हुए दक्ष प्रजापति भारी आश्चर्य में डूब कर या विचार करने लगे कि यह फूल उठाकर आकाश में क्योंकि छा रही है अभी गौर के लौटने का समय भी नहीं हुआ है और ना तो किसी प्रकार की आंधी हो गायी है फिर ऐसा क्यों यह सुनकर दक्ष महाराज की पत्नियां बोली के स्वामी सती ने अपने यज्ञशाला में देह त्याग दिया यह समाचार शंकर जी सुनकर अवश्य क्रोधित हो गए उसके क्रोध का परिणाम सामने आ रहा है उससे आपका आप तांडव होगा ऐसी बातें चल ही रही थी कि वीरभद्र अपने आलोचकों सहित यज्ञशाला में पहुंच गया और पहुंचते ही उत्पात मचाना शुरू कर दिया देखते ही देखते यज्ञ मंडप को उन लोगों ने उखाड़ डाला किसी के कलश तोड़ दिया और किसी ने यज्ञ में रक्त की वर्षा कर अग्नि बुझा दी किसी ने यज्ञ को विध्वंस कर दिया और ऋषि मुनियों को डरा कर भगा दिया भागते हुए देवताओं को पीटा और वीरभद्र ने झपट कर दक्ष प्रजापति को पकड़ लिया नंदीश्वर ने भाग्य देव को पकड़कर पृथ्वी पर पटका आरंभ कर दिया और तब तक भटकते रहे जब तक कि उसकी आंखें बाहर ना निकल आई इसलिए की भाग देव ने भगवान शंकर के प्रति कुल सीट भाव रखकर दक्ष को आंखें के संकेत किया था चंडीगढ़ तृषा को फटकार कर उसके दांतो को उखाड़ लिया क्योंकि जिस समय दक्ष के द्वारा महादेव जी आप अपमानित हो रहे थे उस समय पुष्पा जी हंस रहे थे स्वयं वीरभद्र ने भीगना दाढ़ी एवं मूछें उखाड़ कर शिवजी के अपमान का बदला लिया क्योंकि ब्रिंग जी भगवान शंकर के अपमान के क्षण आपने मुझे हिलाकर प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे तत्पश्चात वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति को धारा सही करके अपने धार धार खड़क से उसका सिर काटने लगे किंतु दक्ष की त्वचा अत्यंत कठोर थी और खड़क सेना कटी तब वीरभद्र ने उसे उठाकर यज्ञ कुंड में फेंक दिया दक्ष प्रजापति का सिर भस्म हो गया और संपूर्ण यज्ञशाला में आग लगा दी
The story of Devarshi Narad giving up his companion's land to say to Shiva, O Vidur ji, at the time when Shiva's songs ran from the yajna of Daksha Prajapati and reached Shiva, at the same time playing his veena, Devarshi Narad reached Narayan Narayan Pranams to Prabhu Narayan. Seeing Lord Shankar said, this deity is not the reason for your arrival, there must be some reason or the other, what is the news, listening to the words of Lord Shiva, Devarshi Narad told him the whole story of being after Sati by yoga fire in the Yagya Mandal of Daksha Prajapati. Heard and told the story of how Shiva's servants ran away from Daksha's house to Lord Shankar. Hearing the news from Narad ji, Jatadhari Lord Shankar became extremely past and thinking of himself on June 1, he slammed hard on the earth as a result at the same time. A gigantic man making fierce dough appeared and running like a thousand arms and fire, the demonic man's teeth were very formidable. bow before lord shankar He bowed down and said what has come for us, Lord Mahakal, listening to his voice, Lord Mahakal is innocent, O Virbhadra, I include my part in your origin, you should go with my ganas and destroy the entire yagya of the people, Daksh husband, hearing this, Virbhadra said as ordered. Lord said, get the ghosts and ghosts to go towards the Yagya of Daksha Prajapati, with the wealth of his lion, the whole earth started to tremble, from uneven to ten directions, it was moving forward and was being followed by other ganas of Lord Shiva. The sage Muni, sitting with the deity and other existing brahmins, was either in great astonishment or thought that by picking up this flower, the sage Prajapati was going to the sky. Because now it is not even the time for Gaur to return, and neither has there been any kind of storm, then why after hearing this, the wives of Daksha Maharaj, Sati, the master of speech, left her body in her yagyashala, after hearing this news Shankar ji Must have become angry, the result of his anger is coming to the fore. Such things were going on that Virbhadra along with his critics reached the yagyashala and started creating ruckus as soon as they saw the yagya pavilion being uprooted, someone broke the urn and someone spilled blood in the yagya. extinguished the fire by raining, someone destroyed the yajna and scared the sages and ran away, beat the gods, and Virbhadra jumped up and caught Daksha Prajapati, Nandishvara grabbed Bhagya Dev and started slamming the earth and then Wandering till his eyes came out, because Bhaag Dev had indicated to Daksha by keeping the total seat rate towards Lord Shankar, Chandigarh reprimanded Trisha and uprooted her teeth because at the time when Mahadev ji by Daksha You were being humiliated at that time Pushpa ji was laughing and Virbhadra himself avenged the insult of Shiva by uprooting his wet beard and mustache, because at the moment of insulting Lord Shankar, you were expressing happiness by shaking me, after that Virbhadra asked Daksha Prajapati After correcting the stream, he started cutting his head with his torrent. But Daksha's skin was very hard and the army of Khadak was cut, then Virbhadra picked it up and threw it in the Yagya Kund.
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