श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 4

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 4 आरंभ

यज्ञ मंडल में सती का शरीर त्याग करना मैथिली जी बोले है महात्मा सती को दक्ष गिरी है जाने की आज्ञा प्रदान कर भगवान शंकर ने अपने गानों को उनके साथ भेज दिया बैल पर सवार होकर सती पूछ ही काल में अपने मित्र गिरी पहुंच गई वहां पर वेद वेदांता के ज्ञाता ब्राम्हण ऋषि गण एवं देव देवता गण एकत्रित हुए थे यज्ञ मंडल की शोभा अद्वितीय थी वहां याग मंडल को निहारती हुए अपनी माता की तरफ बड़ी क्षति की माता एवं माने उसे आई हुई देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और आगे बढ़कर छाती से लगात हुए कुशल क्षेम पूछने लगी किंतु उसके पिता दक्ष जी महाराज ने उसे देख कर अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया पिता द्वारा इस प्रकार किया गया अपमानजनक व्यवहार सतीश शाह नहीं सकी तथा माता एवं बहनों द्वारा दिए गए उपहार को उन्होंने वापस लौटा दिया तत्पश्चात हुआ त्रिशूल होकर यज्ञ मंडल में जा पहुंची उसे भगवान शिव के कहे हुए वचन याद आने लगे यज्ञ मंडल में सती ने ध्यान पूर्वक समस्त ऋषि-मुनियों देवी-देवताओं किन्नर एवं लोकपाल ओके लगे हुए भाग को देखना किंतु शिवजी का भाग उसे कहीं दिखाई ना दिया पिता के इस कर्म से अत्यंत क्रोधित हुए उसके नेत्रों से प्रचंड ज्वाला निकलने लगी क्रोध से बड़ी हो गई सती के साथ हुए अपमान को देख शिव जी के गण दक्ष प्रजापति को मारने के लिए दौड़ किंतु उन्हें रोकते हुए वहां अपने पिता से ग्रोथ परिपूर्ण स्वर में बोले हे पिता श्री भगवान शंकर देवों के देव महादेव में वह किसी प्राण से द्वेष नहीं करते सबको प्रेम से गले लगाते हैं और आप उससे प्रभाव रखते हैं श्रेष्ठ पुरुष की श्रेणी में वह प्राणी आता है जो अपने सामने वाले को अल्प गुणों को विशेष गुण मानने परंतु उसने उन्हें मूर्ख कहा और दूषित दोषी ठहराया जबकि वह सर्वशक्तिमान है दो अक्षरों के मिलन से बने शिव संपूर्ण प्राणियों का कल्याण करते हैं अनजाने एवं अनचाहे रूप में भी भूल कर भी किसी प्राणी के मुख से शिव शब्द का उच्चारण हो गया हो यह जानना चाहिए कि उस प्राणी का कल्याण हो गया उसके चरण कमल में वंदना ब्रह्म अधिक देवता करते थे और आप उन्हें शिव को कहते हैं कि वहां अश्विन एवं अमंगल है मुंड माला पहने वाले भूत प्रेत तथा निशाचर ओं का साथी है क्या आप ब्रह्मा और इंद्र आदि देवता तथा ऋषि-मुनियों से ज्यादा ज्ञान वाले तत्व वेदांत हैं जो कि उनके चरणों को पूछते हैं यह पिताश्री यह आपकी अज्ञानता है और जो प्राणी अपने स्वयं की निंदा सुनता है उससे चाहिए की निंदा करने वाले को कठोर से कठोर दान दें यदि सक्षम नहीं है तो उस स्थान में उठाकर अन्य कहीं चला जाए या फिर अपने प्राण अपने स्वामी के लिए न्योछावर कर दें अंतर है पिता महाराज अब मैं आपके द्वारा उत्पन्न इस शरीर को त्याग दूंगी क्योंकि इस शरीर में आपका अपवित्र रक्त बह रहा है जिससे मैं आपकी आत्मा पर भारत समझती हूं आपके परम ब्रह्मा शिव का घोर अपमान किया है इस कारण मैं आपने इस तन क त्याग करके तुम्हें डांट दूंगी क्योंकि यहां से जाने के बाद शंकर दक्ष कुमारी कहां कार मुझे ठिठोली करेंगे और महिला जीत हो जाऊंगी इसलिए प्राण त्यागना ही मैं उचित समझती हूं यह कह कर सकती उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ गई हाथ में जल लेकर आ चम्मच किया जिससे उसका अंत अंत तक का कारण शुद्धता को प्राप्त हुआ तत्पश्चात पीत वस्त्र से अपने तन को ढककर नेत्र बंद करके प्रणाम किया से प्रणाम वायु तथा अपमान वायु को एक करके नाभि चक्र में स्थापित करने के उपरांत उदान वायु को नाभि चक्र के ऊपर उठाकर रिक्तियों के मध्य स्थापित की और भगवान शंकर के चरण कमलों का ध्यान करते हुए योगा अग्नि द्वारा अपने तन को भस्म कर दी सती को इस प्रकार तन का त्याग करते देख समस्त ऋषि गण एवं देवता समूह में भारी हलचल मच गई सामने दक्ष प्रजापति की बुराई की उधर सती के साथ आए हुए शिव जी के गणों ने सती को देह त्याग करते देखा तो क्रुद्ध होकर दक्ष को मारने दौड़े उसी समय वृक्ष जी अत्यंत मंत्र पढ़कर अग्नि में आहुति डाली जिसके प्रभाव से यज्ञ कुंड से सहस्त्र देवता उत्पन्न हो गए और ब्रह्मा तेज से जल भर जल रही लकड़ियों से शिव गणों पर प्रहार करने लगे जिससे भयभीत होकर शिवगढ़ भाग निकले और शिवाजी के पास जा पहुंचे

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Chaturthi Skandha Chapter 4 Beginning

Abandoning the body of Sati in the Yagya Mandal, Maithili ji has said that by ordering Mahatma Sati to go to Daksha Giri, Lord Shankar sent his songs with him, riding on a bull, Sati reached her friend Giri only after asking the Vedas there. Knowing Vedanta, Brahmin Rishi Gana and Dev Devta Gana had gathered, the beauty of the Yagna Mandal was unique, there, looking at the Yag Mandal, the mother of great loss towards her mother and Mane was very pleased to see her coming and went ahead and skillfully applied it to her chest. She started asking for forgiveness, but her father Daksha Ji Maharaj turned his face to the other side after seeing her, the abusive behavior done by the father in this way Satish Shah could not and he returned the gift given by the mother and sisters, after that there was a trident in the Yagya Mandal. When she reached there, she started remembering the words of Lord Shiva. In the Yagya Mandal, Sati carefully looked at all the sages and deities, the Kinnar and the Lokpal, the part engaged, but the part of Shiva was not visible to her anywhere. A fierce flame from his eyes became very angry. Seeing the humiliation done to Sati, the people of Shiva started running to kill Daksha Prajapati, but while stopping them, they said in a full voice to their father, O Father, Lord Shankar in Dev Mahadev of Devas. Do not hate life, embrace everyone with love and you are influenced by him, in the category of superior man comes that creature who considers the minor qualities in front of him as special qualities but he called them foolish and blamed corrupted while he is omnipotent Shiva, formed by the union of two letters, does welfare of all beings, even by forgetting inadvertently and involuntarily, the word Shiva has been uttered from the mouth of any creature, it should be known that the welfare of that creature has been done at his lotus feet. There used to be more deities and you tell them to Shiva that there are Ashwin and Amangal, who are the companions of ghosts and nocturnal people wearing garlands. This father asks the feet, this is your ignorance and The creature who hears his own condemnation, should give the harshest donation to the one who condemns him, if he is not able, then lift him in that place and go somewhere else or else sacrifice his life for his master, the difference is Father, now I am I will give up this body created by you because your impure blood is flowing in this body, due to which I consider your soul to be India, you have insulted your supreme Brahma Shiva, that's why I will scold you by sacrificing this body because from here After leaving, where will Shankar Daksh Kumari ridicule me and the woman will be victorious, so I consider it appropriate to give up my life, saying that I sat facing the north direction and took a spoon with water in my hand, so that the reason for her end till the end After attaining purity, after covering his body with a yellow cloth, closed his eyes and performed obeisances, after setting the air of salutation and insulting air one by one in the navel chakra, raised the Udan Vayu above the navel chakra and established it between the voids and worshiped Lord Shankar. Meditation on the Lotus Feet by Yoga Agni Seeing Sati sacrificing her body in this way, there was a huge stir in all the sages and the group of gods, in front of the evil of Daksha Prajapati, on the other hand, the ganas of Shiva, who came with Sati, saw Sati renouncing her body. Enraged and ran to kill Daksha, at the same time, after reciting the very mantra, the tree sacrificed itself in the fire, due to which thousands of gods were born from the Yagya Kund and Brahma started attacking the Shiva ganas with the burning sticks filled with water, due to which Shivgarh escaped in fear. and went to Shivaji


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