श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध अध्याय 32

श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध अध्याय 32 आरंभ

देवहूति की मुक्ति कपिल देव जी के उपदेश से देवहूति के मन में ज्ञान रूपी ज्योति प्रज्वलित हो उठी अजीत संसारी माया के पीछे वह भाग रही थी उस संसारी माया से उसका मन उलट हो गया मोह भंग हो गया कर्दम जी का भी योग दुख समाप्त होकर उसकी आत्मा पवित्र हो गई चंचलता का नाश हो गया कुछ पल पुर जो अति व्याकुल हो रही थी वह पूर्ण रुप से संचित होकर कपिल देव जी को साष्टांग प्रणाम करके बोले हे अंतर्यामी हे जगत नियंता हे पालनहार स्वामी आपकी कृपा से आपके ज्ञान उपदेश से मुझे गृहस्थाश्रम की इच्छा ना रही आप धन्य है प्रभु जो आपने मुझ पर अपनी दया की आपकी कृपा पाकर ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करते हैं और महाप्रलय काल में ब्रह्मा सहित अन्य देवगण आपकी माया से नष्ट होकर आपके विराट रूप में लीन हो जाते हैं तत्पश्चात केवल आप रहते हैं बाकी चारों तरफ अपार जल होता है फिर जब आपकी इच्छा होती है तो सृष्टि का निर्माण करते हैं आप ने वामन रूप धारण कर राजा बलि के साथ छल किया और देवताओं को दूर किया नील सिंह अवतार लेकर अपने अन्याय भक्त दैत्य पुत्र बालक पहलाद की रक्षा की वह बालक भक्त पहलाद के नाम से अमर हो गया मत्स्य रूप धारण करके सात्विक को ज्ञान का उपदेश देते हुए उसकी नौका को महाप्रलय से खेत रहे कछुआ रूप में समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण किया और 12 अवतार लेकर पृथ्वी को पाताल लोक से वापस लाकर ब्रह्मांड में स्थापित किया और मेरे गर्व से प्रगट होकर मुझे ज्ञान का उपदेश दिया हे प्रभु आप की लीला न्यारी है ड्यूटी के कथन को सुनकर कपिल देव जी बोले हे माता जो ज्ञान मैंने तुम्हें प्रदान किया है इससे ज्ञानी महात्मा ऋषि मुनि एवं ब्राह्मणों तथा हरि भक्तों को बतलाना अधर्मी पापी लोभी चुगल खोर ना स्वार्थ अविश्वास नियत अथवा गुरु के साथ कपट करने वाले मनुष्यों को कभी मत बतलाना यदि मेरे कथन का उल्लंघन करोगे तो स्वयं ही अंधकार में जाओगे यह कह कर कपिल देव जी बोले हे माता तुम्हारी जो इच्छा हो वह वर मांग लो वह अवश्य प्रदान करेगा तब दे होती बोली हे सच्चिदानंद आप तीनों लोकों के स्वामी हैं आपको पुत्र रूप में पाकर मुझे दूसरी किसी वस्तु की इच्छा शेष नहीं रही तब कपिल देव जी वहां से ईशान कोण की तरफ प्रस्थान कर गए और ज्योति भी सांसारिक माया को त्याग कर सरस्वती नदी के तट पर बैठकर पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रभु के नाम का अखंड जाप करने लगे कपिल देव जी के उपदेश उसे उनका मन निर्मल हो चुका था अतः प्रभु का ध्यान करते करते वह नदी में मां गई उसकी आत्मा से उसे नाक व शरीर को छोड़कर मोक्ष प्राप्त पा लिया है विदुर जी मैथिली जी की कथा श्रवण कर रहे महात्मा विदुर जी को संबोधित करते हुए कहा यह हरि कथा अत्यंत पावन है जो मनुष्य शांत मन से प्रभु के चरणों का ध्यान करते हुए सुनेगा संसार में सुख भोग कर मृत्यु के पश्चात प्रभु के परमधाम को प्राप्त होगा

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Shrimad Bhagwat Katha Purana 3rd Skandha Chapter 32 Beginning

Devahuti's Liberation With the teachings of Kapil Dev ji, the light of knowledge got ignited in Devhuti's mind. Ajit was running after worldly Maya. The soul became pure, the restlessness was destroyed, for a few moments, the person who was becoming very disturbed, after being fully accumulated, he bowed down to Kapil Dev ji and said, O Antaryami, O controller of the world, O Lord of the world, by your grace, through your knowledge and preaching, I have been given the status of home. There is no desire, you are blessed Lord, who by getting your mercy on me, Brahma ji creates the universe and in the time of Mahapralay, other gods including Brahma are destroyed by your illusion and merge into your vast form, after that only you remain. There is immense water all around, then when you want, you create the universe, you took the form of Vamana and cheated with King Bali and took away the gods and protected your unjust devotee demon son, child Pahlada, by taking Neel Singh incarnation. That child became immortal by the name of devotee Pahlada, taking the form of a fish, seven While preaching knowledge to the world, he kept his boat in the form of a tortoise in the form of a tortoise at the time of churning of the ocean and took 12 incarnations and brought the earth back from the Hades and established it in the universe and manifested in my pride. He taught me knowledge, Lord, your leela is beautiful, listening to the statement of duty, Kapil Dev ji said, O mother, the knowledge that I have given you, tell the wise mahatma sage sage and brahmins and devotees of Hari, unrighteous sinners, greedy slanderers, no selfish disbelief Never tell the people who deceive you with the fixed or the guru, if you violate my statement, you will yourself go into darkness, saying this, Kapil Dev ji said, oh mother, ask for whatever boon you want, he will surely give it. O Satchidananda, you are the lord of all the three worlds, having found you in the form of a son, I did not have any desire for anything else, then Kapil Dev ji left from there towards the northeast and Jyoti also left worldly illusions and sat on the banks of the Saraswati river. Unbroken chanting of the name of the Lord with reverence Kapil Dev ji's teachings to him had become pure, his mind had become pure, so while meditating on the Lord, he became mother in the river, by his soul leaving his nose and body, he has attained salvation. Addressing the ji, said that this Hari Katha is very sacred, which a man will listen to while meditating on the feet of the Lord with a calm mind, after enjoying the happiness in the world, he will attain the supreme abode of the Lord.


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