श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध अध्याय 31

श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध अध्याय 31 आरंभ

कपिल जी द्वारा तीन तरह के ज्ञान का वर्णन मैथिली जी का ज्ञान का उपदेश देते हुए महात्मा विदुर जी से बोले हैं विदुर जी परमात्मा के अवतार कपिल देव जी अपनी माता से बोले गृहस्थाश्रम से दूर रहकर जीवन व्यतीत करने वाले प्राणियों को इस्त्री एवं धन संपत्ति की कामना नहीं करनी चाहिए यह दोनों चीजें मन में हलचल उत्पन्न करने वाले होते हैं किंतु गृहस्थ आश्रम में रहकर प्रभु का भजन एवं ध्यान करने वाले मनुष्य के लिए इस्त्री और धन का निषेध नहीं है पराई स्त्रियों की कामना नहीं करनी चाहिए और ना ही दूसरों के धान का कुदृष्टि डालनी चाहिए ऐसा विचार करना भी पाप की श्रेणी में आता है अपनी स्त्री सुंदर हो अथवा कुरूप उसी को सर्व सुंदरी समझना चाहिए और अपने परिश्रम से कमाए हुए धन से संतुष्ट रहना चाहिए कमाए हुए धन का दसवां भाग दान पांचवा भाग पूजा पाठ एवं उच्च भाग में आशाओं की सहायता करनी चाहिए बाकी जो बचे उसे अपने कुटुम का भरण पोषण करना चाहिए गृहस्थ मनुष्य को देव पूजा पित्र पूजा एवं परमात्मा का भजन अवश्य करना चाहिए जबकि सन्यास ग्रहण करने कर चुके प्राणियों को सांसारिक सुख का पूर्ण त्याग कर एकमात्र तारणहार के श्री चरण कमलों का ध्यान करना चाहिए गृहस्थ जीवन में रहकर जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धा भक्ति एवं विश्वास से प्रभु का ध्यान करता हुआ स्वयं जो सांसारिक माया से खत रहता है उसे प्रभु प्रसन्न रहती है मृत्यु पश्चात उस मनुष्य की आत्मा सूर्य मंडल की परिक्रमा करके प्रभु के परमधाम को पहुंचता है किंतु अज्ञानी मनुष्य प्रभु का कीर्तन भजन एवं उनके चरित्रों का गुण गुण अनुवाद ना करके परिवार के भरण-पोषण तथा इंद्रिय सुख प्राप्ति करने में लीन रहते हैं श्री हरि की भक्ति से दूर रहकर मूल्य मूल्यवान क्षणों को व्यतीत में गवा देते हैं और अत्यंत कष्ट पाते हुए मृत्यु को प्राप्त होती है उत्तरायण में सूर्य की स्थिति हो और शुक्ल पक्ष हो उस समय मृत्यु को प्राप्त होने वाले मनुष्य को बैकुंठ प्राप्त होता है जबकि दक्षिणायन सूर्य अथवा कृष्ण पक्ष के रात्रि काल में मरने वाले प्राणी चंद्र मंडल से होकर लोग को पहुंचता है और कर्म अनुसार सुख भोगने के पश्चात पुनः जन्म लेकर संसार में आना पड़ता है पापी मनुष्य पुनः 8400000 योनियों जन्म के चक्कर में फस कर बार-बार जन्म लेते और मरते हैं अतः हे माता मुक्ति पाने के लिए तीन मार्ग में तुम्हें बतलाता हूं तुम ध्यान से सुनो प्रथम मार्ग वेद शास्त्रों के अनुसार उत्तम कर्म करना एवं बुरे कर्म कार्य तथा बुरी संगति से दूर रहना दूसरा मार्ग पूर्ण भक्ति में प्रभु श्री हरि नारायण का पूजा करना एवं मनुष्य की मुक्ति का तीसरा मार्ग प्रभु के हाथों से बनाए गए प्राणियों को प्रभु का रूप जानकर उसे परमेश्वर समझकर उसने उनसे प्रेम भाव से रहना ए तीनों मार्ग अत्यंत सरल एवं मुक्ति प्रदान करने वाले हैं


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Shrimad Bhagwat Katha Purana Third Skandha Chapter 31 Beginning

Kapil ji described three types of knowledge, preaching the knowledge of Maithili ji, said to Mahatma Vidur ji, Vidur ji, the incarnation of God, Kapil Dev ji said to his mother, ironing and wealth to the living beings living away from the household. One should not wish, these two things are going to create a stir in the mind, but there is no prohibition of ironing and money for a man who worships and meditates on the Lord by staying in a householder's ashram, neither should one wish for foreign women nor do others' paddy. One should put a bad vision of the person, it also comes under the category of sin, whether your woman is beautiful or ugly, one should consider her to be beautiful and should be satisfied with the money earned by her hard work. Hopes should be helped in the part, the rest should feed their families lotus feet One should meditate while living in a householder's life, the person who, while meditating on the Lord with full devotion, devotion and faith, remains happy with the worldly illusion, after death, the soul of that person revolves around the sun circle and reaches the supreme abode of the Lord. But the ignorant man, by not translating the hymns of the Lord and the merits of His characters, remains engrossed in the maintenance of the family and attainment of sense pleasures, by staying away from the devotion of Shri Hari, waste valuable moments in spending and extremely Death is attained by suffering, if the position of the Sun is in Uttarayan and the person who dies in the Shukla Paksha at that time, the person who dies during the night of the Dakshinayan Sun or Krishna Paksha passes through the lunar circle. Reaches and after enjoying pleasures according to karma one has to come again in the world by taking birth again and again sinners take birth and die again and again after getting caught in the cycle of birth of 8400000 yonis, so oh mother, I will tell you three paths to attain liberation. Listen carefully, the first path is to do good deeds according to the Vedas and to stay away from bad deeds and bad company, the second path is to worship Lord Shri Hari Narayan in full devotion and the third path to the salvation of man is to worship the creatures created by the hands of the Lord. Knowing the form of God, considering him as God, he lived with love from them, all the three paths are very easy and liberating.


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