श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध तृतीय अध्याय आरंभ
सती का प्रीत गृह जाना हे विदुर जी कुछ समय पश्चात दक्ष प्रजापति ने एक-एक करके हमें किया ग्य किए जिसमें वाजपेई यज्ञ एवं बृहस्पति यज्ञ को यज्ञ के नाम से स्वयं ब्रह्मा जी ने पधार कर सर्वश्रेष्ठ कहा और यज्ञ आदि अनेक शुभ कार्य करने से उन्होंने दक्ष प्रजापति को प्रजापति में सर्वोच्च पद प्रदान किया इस कारण दक्ष जी का अहंकार और भी बढ़ गया यज्ञ करते समय उन्होंने अनेक देवताओं एवं ऋषि महर्षि यों को अमृत किया वह सभी अपनी स्त्रियों सहित दक्ष यज्ञ में पधारे उनके विद्यमान हो जाते हुए देख कर भगवान शंकर के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान दक्ष पुत्री सती ने पूछा है देवा दी देव स्वामी मेरे सुनने में आया है कि मेरे पिता श्री कोई बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं और यह गंधर्व एवं देवताओं गण अपनी पत्नियों सहित यज्ञ में भाग लेने के लिए जा रहे हैं वहां पर मेरी बहन ने भी अपने पति के साथ आई होगी मेरी बहुत इच्छा है कि वहां जाकर मैं अपनी बहनों मोतियों एवं अन्य सभी सगे संबंधियों से मिलो उनसे मिलने की मेरी बहुत इच्छा है और पिता द्वारा किए जा रहे महान यज्ञ को देखने की अभिलाषा हो रही है हे प्रभु आप तो अंतर्यामी आप त्रिभुवन सृष्टि के ज्ञाता हैं मैं अज्ञानी स्त्री अपनी जन्मभूमि को देखने की इच्छा को रोक नहीं पा रही हूं यह स्वामी जिन स्त्रियों दक्ष महाराज से किसी प्रकार का संबंध नहीं है हुए भी अपने पतियों के साथ उनके महायज्ञ की निराली शोभा देखने के लिए जा रहे हैं फिर वह तो मेरे पिता हैं आप यहां ना विचार करें कि मुझे बिना बुलाए वहां नहीं जाना चाहिए शास्त्रों में कहा गया है गुरु माता पिता एवं इष्ट मित्रों के घर बिना बुलाए भी जाना चाहिए अतः हे स्वामी मुझ पर अपना अनुग्रह कर मुझे फ्री डिग्री है जाने की अनुमति दीजिए यह सुनकर महादेव बले हे प्रिय तुम्हारी भावना मैं पूर्ण रुप से समझ रहा हूं तुम्हारे स्थान पर कोई दूसरी स्त्री होती तो वह भी यही कहती किंतु पिता के घर बिना निमंत्रण के जाना तभी संभव है जब पिता और पति के बीच किसी प्रकार के पैर अथवा द्वेष की भावना ना हो तुम्हारे पिता श्री दक्ष प्रजापति अत्यंत अभिमानी हैं और मुझसे द्वेष भाव रखते हैं यह सतीश सत पुरुषों में तब क्षमा साधुओं सहनशीलता धान तथा उच्च कुल की गुण पाए जाते हैं किंतु अभिमान के कारण यह गुण समाप्त हो जाते हैं जो कि तुम्हारे पिता के साथ हुआ है मेरे अभिमान पुरुष के घर कभी नहीं जाना चाहिए यह यहां जाते हुए भी कि तुम अपने पिता की सबसे प्रिय पुत्री हो फिर भी तुम्हें वहां जाने से मना कर रहा हूं इसलिए कि मेरे साथ रहने से वहां तुम्हें भी अपमान मीठी दृष्टि देखता है तुम यह विचार करोगी कि अपने पिताश्री का आदर क्यों नहीं किया क्योंकि अनेक सम्मान में सिर नहीं झुकाया है सती ऐसा ना करने का एकमात्र कारण यह है कि मेरे मस्तक सदैव भगवान करुणानिधि भक्त हितकारी वासुदेव जी के सम्मुख झुकता है एक मात्र उन्हीं को मैं प्रणाम करता हूं अन्य किसी को नहीं जिससे आत्मा कलुषित हो जिसके अंतता कारण में वासुदेव प्रभु का निवास ना हो उसके सम्मुख मस्तक झुका ना सर्वदा अनुचित है तुम्हारे पिता ने मेरे ऊपर दूर वचनों के तीज ना वाल से प्रहार करके अपने बुद्धि हीनता का परिचय देते हुए मेरे पति अपने मन में बैर भाव को जन्म दिया है इस कारण तुम्हारा वहां जाना सब प्रकार से अनुचित है मेरे वचनों को मानकर मेरे साथ रहोगे तो तुम्हारा कल्याण होगा अन्यथा किसी प्रकार का अहित भी हो सकता है यह कह कर त्रिनेत्र धारी शांत हो गए किंतु सती के शांत मन में अशांत छा गई सती का चेहरा पूर्ण रूप से उदास हो गया इस प्रकार जैसे रात्रि के अंधकार को दूर करने वाले दीपक की ज्वाला हवा के वेग से बुझ गई हो उसकी दशा देखकर कैलाश पति ने विचार किया कि यदि सती को पित्र गृह आ जाने की आज्ञा नहीं देता तो निश्चित रूप से अपने प्राण त्याग देगी और वहां जाने के पश्चात दक्ष गिरी हमें मेरे कारण इसका अनादर अवश्य होगा वहां भी इसके प्रणाम त्याग की संभावना प्रबल है अंततः मैं उन्हें सती को जाने की आज्ञा प्रदान कर दी
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Chaturthi Skandha Third Chapter Begins
Going to the love house of Sati, O Vidur ji, after some time, Daksha Prajapati did us one by one, in which Brahma ji himself came in the name of Yagya and called Vajpei Yagya and Brihaspati Yagya the best and by performing many auspicious works like Yagya etc. Daksha Prajapati was given the highest position in Prajapati, due to this the ego of Daksha increased even more. While performing the yajna, he gave nectar to many gods and sage Maharishi, all of them along with their women came to the Daksha Yagya, seeing them becoming present, Lord Shankar Daksha's daughter Sati, who is sitting on Mount Kailash, has asked Deva Di Dev Swami. I have heard that my father Shree is performing a big sacrifice and this Gandharva and Gods are going to participate in the Yagya along with their wives. There my sister must have also come with her husband, I have a great desire to go there and meet my sisters, pearls and all other relatives. O Lord, you are the innermost you are the Tribhuvan creation I know the ignorant woman, I am not able to stop the desire to see her birthplace. So my father, don't you think here that I should not go there without being called, it has been said in the scriptures that the teacher should go to the house of parents and favored friends without invitation, so oh lord, please give me your grace and I have a free degree, allow me to go. Give it to Mahadev, oh dear, I understand your feeling completely, if there were any other woman in your place, she would have said the same thing, but it is possible to go to the father's house without invitation only when there is some kind of leg or foot between the father and the husband. There should be no feeling of malice, your father Shri Daksha Prajapati is very arrogant and has hatred towards me. My proud man has happened with father I should never go to the house of my father, even though I am refusing you to go there even though you are the dearest daughter of your father, because living with me sees you insultingly sweetly there too, you will think that your Why did not I respect my father because I have not bowed my head in many respects, the only reason why Sati did not do this is that my head always bows in front of Lord Karunanidhi devotee benefactor Vasudev ji, I bow to him only and not to anyone else. If the soul is corrupted, because of which Lord Vasudeva does not reside in the end, it is not always inappropriate to bow down before him, your father attacked me with the sound of distant words. You have given birth, because of this your going there is inappropriate in all respects, if you follow my words and stay with me, then you will have welfare, otherwise, there may be some kind of harm. Sati's face turned completely sad. Seeing his condition as if the flame of the lamp that dispelled the darkness of the night had been extinguished by the speed of the wind, Kailash's husband thought that if Sati was not allowed to come to the Pitra Griha, she would surely give up her life and go there. After Daksha fell, we will definitely disrespect it because of me, there is also a strong possibility of renunciation of it, finally I allowed him to go to Sati.
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