श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थी स्कंध अध्याय 2

श्रीमद् भागवत कथा पुराण चतुर्थ स्कंध अध्याय 2 आरंभ

दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव शंकर को श्राप विदुर जी ने पूछा है महात्मा सती एवं भगवान शंकर के सहयोग से किसी पुत्र की उत्पत्ति क्यों नहीं हुई तब मैथिली जी बोले क्योंकि शिव पत्नी सती अपनी तरूणा मैं जवानी में ही पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में जलकर भस्म हो गए विदुर जी ने पुनः पूछा लेकिन क्यों विदुर जी के आने का एक प्रश्न और उसकी जिज्ञासा के अनुमान कर मैथिली जी मुस्कुरा कर बोले ना रह सके तत्पश्चात गंभीर होते हुए बोले हे विदुर जी जो कुछ भी होता है हो रहा है अथवा जो पूछ भी होगा सब माय श्री हरि नारायण की माया विधि महान होती है दक्ष प्रजापति की यज्ञ कुंड में सती क्यों जल कर भस्म हुई उस कथा को सुनने से पहले आपको मैं वह कथा सुनाता हूं जिस कारण दक्ष प्रजापति और भगवान शंकर के बीच बैर भाव ने जन्म लिया मैथिली जी के कथन को सुनकर विदुर जी आश्चर्यचकित हुए हुए विचार ने लगे कि शंकर भगवान को दक्ष ने अपनी पुत्री दी फिर दोनों के बीच बैर भाव क्यों विदुर जी विचार कर रहे थे कि मैट्रिक जी बोले पूर्वकाल में समस्त प्रजापति यों ने मिलकर एक महान यज्ञ अनुष्ठान किया उस राज्य में सभी ऋषि महर्षि योग लोकपाल तथा देवता गड़ाए यज्ञ में दक्ष प्रजापति का भी आगमन हुआ उन्हें आते देख उनके स्वागत एवं सम्मान में यज्ञ मंडल में विराजमान समस्त ऋषि गण एवं देवताओं आपने अपने आंसुओं को छोड़ कर उठ खड़े हुए किंतु विष्णु जी एवं शंकर भगवान पूर्वक बैठे रहे दक्ष जी के आगमन को देखकर भी उन्होंने अनदेखा कर दिया उनके इस व्यवहार को देखकर दक्ष प्रजापति को किसी माना रही सो क्रोध स्वर में बोले ही उपस्थित ऋषि महर्षि एवं देवता गण यह निर्जल शंकर पूर्ण रूप से अभीष्ट एवं अहंकारी है इसे शिष्टाचार नामा की कोई वस्तु विद्यमान नहीं है मैं यह नहीं कहता कि मेरे आने पर इसने अपने आश्रम को त्याग कर मेरा सम्मान क्यों नहीं किया बल्कि मैं यह कहता हूं कि शिष्टाचार की भाषा का भी ज्ञान इससे कहीं नहीं है इसे सत्पुरुष समझ कर मैंने अपनी कन्या सती को इसके साथ विवाह दिया इस कारण यह मेरे पुत्र समान हुआ फिर भी इसे इससे यह सिद्ध होता है कि इसके मन में अहंकार की भावना है और अपने इस स्वभाव से आप सभी के सम्मान एवं कृत को मिट्टी में मिला रहा है मेरी इच्छा ना थी कि अपनी कन्या का विवाह किसके साथ करूं या नंगा डांस भूत प्रेत और बेताल ओं को साथ लेकर चलने वाला अघोर नरमुंड पहनने वाला बुद्धिहीन है यह नाम का सिम है कर्म इसके पूर्ण रूप से अमंगल कारी है ब्रह्मा जी के वचन को मानकर मैंने अपनी परम सुंदरी कन्या का विवाह इससे कर दिया इस प्रकार दक्ष प्रजापति ने विधि प्रकार के कर शब्दों वर्णन का प्रयोग करके ऋषि मुनि एवं सभी देवताओं के सम्मुख भगवान शंकर को बुरी तरह अपमानित किया किंतु उस अपमान भरे शब्दों पर गोला कहे जाने वाले शिव जी ने तनिक भी ध्यान ना दिया वेब पूर्वक शांत बैठे रहे उन्हें इस प्रकार चुप देखकर दक्ष महाराज का क्रोध और ज्यादा बढ़ गया इस अभाव में पूर्ण उग्रता आ गई और सहनशीलता की सीमा को पार करते उन्होंने भगवान शंकर को कठोर शराब दे डाला हे मूर्ख घमंडी शिव तेरे इश्क असंभव व्यवहार से शुरू होकर मैं तुम्हें श्राप देता हूं आज के बाद से तुझे इंद्र उपेंद्र आदि देवताओं के साथ यज्ञ का भागना प्राप्त हुआ अन्य देवताओं ने दक्ष प्रजापति को श्राप देने से रोकना चाहा किंतु हुए ना माने और शराब देकर अपने घर चले गए हे विदुर जी शंकर जी को श्राप देने वाले बात जब नंदी महाराज को मालूम हुई तो उनके क्रोध का ठिकाना ना रहा और क्रोध के वशीभूत होकर बोले जिस दक्ष ने भगवान शंकर को श्राप दिया है और अभिमान के कारण शंकर जी से बैर भाव रखता है वह दक्ष ज्ञान तत्व से विहीन हो जाएगा तथा उसका मुख बकरे की भांति हो जाए और उसका अनुसरण साथ करने वाले सदैव जन्म मरण के चक्र में उन्हें रहे उनके साथी संगी नीचे कर्म करने वाले एवं दरिद्र हो यह काकर नंदी जी शांत हो गए तत्पश्चात उनके सर आपको सुनकर विंग जी ने श्राप दिया कि शिव का स्मरण करने वाले शिव भक्त शराब पान करने वाले पाखंडी तथा शास्त्रों के विरुद्ध आचरण करने वाले को इस प्रकार उबेर भावना की उत्पत्ति होने के पश्चात शिवजी अपने गानों के साथ उठ कर चले आए

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Fourth Skandha Chapter 2 Beginning

Lord Shiva was cursed by Daksha Prajapati. Consumed, Vidur ji asked again, but why Maithili ji could not keep smiling after anticipating a question about Vidur ji's arrival and his curiosity, then becoming serious said, oh Vidur ji, whatever happens, whatever is happening or whatever happens. It will also happen that the Maya method of Shri Hari Narayan is great. Vidur ji was surprised to hear the statement of Maithili ji, thought that Daksha gave his daughter to Lord Shankar, then why there was enmity between the two, Vidur ji was thinking that Matric ji said that in the past, all Prajapatis together made a great All the sages Maharishi Yoga Lokpal and Devas performed the Yagya rituals in that state. Daksha Prajapati also arrived in the yagya, seeing him coming, all the sages and deities sitting in the Yagya Mandal in their welcome and respect, left their tears and stood up, but Vishnu ji and Shankar remained seated before the arrival of Daksha. Even after seeing this, he ignored him, seeing his behavior as someone considered Daksha Prajapati, so the sage Maharishi and the deities present in a rage voice, this Nirjal Shankar is completely aspirant and egoistic, there is no such thing as a courtesy name. I do not say why he did not respect me by leaving his ashram when I came, rather I say that even the knowledge of the language of etiquette is nowhere, considering it to be a good man, I married my daughter Sati with him, that is why it is my Even though he became like a son, it proves that he has a sense of ego in his mind and with this nature of his is mixing all your honor and deeds in the soil, I did not wish to marry my daughter with whom or naked. The Aghor, who carries the dance ghosts and the Betals together The one who wears the neck is brainless, it is the name of the karma, it is completely inauspicious, by following the words of Brahma ji, I married my most beautiful girl to him, thus Daksha Prajapati, by using the description of the words, the sage sage And humiliated Lord Shankar badly in front of all the deities, but Shiva, who was called Gola on those insulting words, did not pay any attention to the web, sat quietly, seeing him silent like this, the anger of Daksha Maharaj increased even more. I came full fury and crossing the limit of tolerance, he gave hard liquor to Lord Shankar, O foolish arrogant Shiva, your love starts with impossible behavior, I curse you, from today onwards you have to run a yagya with gods like Indra Upendra etc. Received other gods tried to stop Daksha Prajapati from cursing, but did not agree and went to his house after giving liquor, O Vidur ji, when Nandi Maharaj came to know about the curse of Shankar ji, there was no place for his anger and due to anger. Subdued and said, the one who worshiped Lord Shankar He is cursed and because of pride, he hates Shankar ji, he will be devoid of the skillful knowledge element and his face becomes like a goat and those who follow him will always be in the cycle of birth and death, his companions below karma Nandi ji became calm after listening to his head and being poor, Ving ji cursed that the devotee of Shiva who remembers Shiva, the hypocrite who drinks alcohol and behaves against the scriptures, thus giving rise to Uber spirit. After that Shivaji got up with his songs and left.


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