श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंद आठवां अध्याय

श्रीमद् भागवत कथा पुराण आठवां अध्याय आरंभ

मैथिली जी द्वारा ब्रह्मा जी की उत्पत्ति का वर्णन विदुर जी ने अति गुरु प्रसन्न प्रश्न किया जिसे सुनकर मैथिली जी के गंभीर मुख मंडल पर मुस्कान की हल्की सी छाया डोल गई उसके उपरांत हुए बोले हैं महात्मा उस समय सृष्टि नाम की कोई वस्तु ना थी ब्रह्मांड जल मग्न था चारों तरफ जल ही जल था केवल श्री हरि शेष शैया पर विराजमान रहते थे किंतु वह जागृत अवस्था में ना थे बल्कि समस्त चराचर को आने में लीन किए निंद्रा का सुख ले रहे थे यद्यपि काल शक्ति जागृत थी किंतु काल शक्ति ने प्रभु श्री नारायण को तब जगाया जब एक सहस्त्र चतुर योगी प्रभु को जल में सोते हुए बीत गए जागने के उपरांत प्रभु ने अन्य लोगों को देखा अपने शरीर में स्थान पाए जिओ की तरफ प्रभु ने ध्यान दिया तब काल की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रभु के नाभि प्रदेश से कमलनाथ निकला जिससे ने जल के ऊपर उठकर पुष्प का आकार ले लिया और उस पर ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई चारों तरफ अत्यंत तेज प्रकाश उभर रहा था और तेजा में प्रकाश में ब्रह्मा जी चारों तरफ आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगे किंतु यथा जल राशि की सिवाय कुछ भी दिखाई ना दी किंतु चारों तरफ बार-बार देखने से प्रभु की प्रेरणा हुई और उन्हें चारों मुख प्राप्त हुए फिर भी उनके मन को शांति ना मिली मन में विचार उठने लगा मैं कौन हूं जिसने मुझे जन्म दिया और यह कमल पुष्प पर जिस पर स्वयं को सचेत अवस्था में पाया इस कमल का उद्गम कहां से निकलता है स्थल कहां है अवश्य ही वही स्थान केंद्र बिंदु होगा यह विचार कर ब्रह्मा जी कमल नाल पकड़कर नीचे उतरने लगे और इस तरह उतरते उतरते हजार वर्ष व्यतीत हो गए किंतु कमल के आधार का पता न लग सके अंततः निराश होकर पुनः कमल पुष्प पर वापस लौट आए और चिंतन होकर बिछड़ने लगे उसी समय आकाशवाणी हुई ब्रह्मा देव परम ब्रह्मा का भजन करो तभी तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति होगी आकाशवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने प्रभु के चरणों में ध्यान लगाए तत्पश्चात उनके अत्यंत कारण से दिव्य ज्योति फूटकर बाहर निकली प्रभु की कृपा प्राप्त हुई और ब्रह्मा जी को ज्ञान प्राप्त हुआ और तब उन्हें दिखाई देने लगा एक अत्यंत मनोहारी दृश्य जिसे देखकर वे मुक्त हो गए प्रभु की कृपा से उन्हें तिथि ज्ञान प्राप्त हुआ और वह सृष्टि जिससे हुए प्रभु के सहन करने की अवस्था को देख पाने में सक्षम हो गए यह समय ब्रह्मा जी ने देखा कि सांवले सलोने पितांबर धारी सिर पर रत्न जड़े मुकुट बाई तरफ लक्ष्मी जी बैठी हुई उनके चरण दबा रही है और जिस सैया पर वह अलौकिक रूप धारी लेटे हुए हैं वहां सामान्य संयम ना थी शेषनाग जी स्वयं उनका भार वाहन कर रहे थे ऐसा प्रभु का अद्भुत रूप देखकर ब्रह्मा जी बी मोहित हो गए और वंदना करते हुए बोले यह जागृति पति आप धन्य है आपकी माया अपरंपार है

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Shrimad Bhagwat Katha Purana Eighth Chapter Beginning

Describing the origin of Brahma ji by Maithili ji, Vidur ji asked a very guru pleased question, upon hearing which a slight shadow of smile fell on the serious face of Maithili ji, after that said Mahatma, at that time there was no such thing as creation, the universe was water. Was engrossed, there was water all around, only Shri Hari used to sit on the Shesh bed but he was not in an awakened state, but was taking the pleasure of sleep by absorbing all the pastoralists, although Kaal Shakti was awake but Kaal Shakti did Prabhu Shree Narayan was awakened when a thousand clever yogis had passed away while sleeping in the water. It emerged that rose above the water and took the shape of a flower and Brahma was born on it, a very bright light was emerging all around and in the light of Teja, Brahma ji started to tear his eyes all around, but nothing except the amount of water. Was not visible, but the inspiration of the Lord by looking around again and again And he got all the four faces, yet his mind did not get peace, thoughts started arising in the mind, who am I who gave birth to me and on this lotus flower on which he found himself in conscious state, where does the origin of this lotus originate from? Considering where it is definitely the same place would be the center point, Brahma ji started descending by holding the lotus cord and in this way, thousands of years went down and descended, but the base of the lotus could not be traced, finally disappointed and returned again to the lotus flower and After thinking and getting separated, at the same time there was a voice from the sky, worship the Supreme Lord Brahma, only then you will get knowledge, listening to the voice of the sky, Brahma ji meditated at the feet of the Lord, after that due to his utmost reason, the divine light erupted and came out, received the grace of the Lord and Brahma He got knowledge and then he began to see a very beautiful scene, seeing which he became free. By the grace of the Lord, he got the knowledge of Tithi and was able to see the state of the Lord that caused the creation, this time Brahma Ji saw that dark skinned Pitambar Dhari The crown studded with gems on the head, Lakshmi ji is sitting on the left side pressing her feet and there was no normal restraint on the saiya on which she is lying in a supernatural form, Sheshnag ji himself was carrying his weight, seeing such a wonderful form of Lord Brahma ji B. Got fascinated and said while worshiping this awakening husband, you are blessed, your Maya is unparalleled. 


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