श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध सातवां अध्याय

श्रीमद् भागवत कथा पुराण सातवां अध्याय आरंभ

मैथिली जी द्वारा प्रभु की महिमा का गुणगान मैथिली जी बोले हे महात्मा विदुर आप ज्ञानी ध्यानी एवं प्रभु के भक्तों को अपने बाल्यकाल से ही प्रभु के चरणों की भक्ति करते रहे हो आप स्वयं प्रभु के मन में निवास करते रहे हो भला आपसे क्या छिपा है फिर भी आप मुझसे पूछते हो यह आपका बड़प्पन है मेरा ज्ञान जहां तक प्रभु को जितने रूप में मैं जान सका हूं वह हीरा वर्णन आप से करता हूं जिसे सुनकर माया मोह के जाल में फंसे रहने वाले सांसारिक प्राणियों की भी मुक्ति हो जाए भाव रूपी अर्थात सागर से पार उतर जाए हे विदुर जी आप मंडल ऋषि के श्राप को सत्य करने हेतु मानवता में"लिए माननीय था आप तो साक्षात धर्मराज हैं समस्त सृष्टि को संचालित करने वाले लीलाधारी प्रभु श्री कृष्ण जी आप से सलाह लिए बिना कोई कार्य न करते थे आप प्रभु को अत्यंत प्रिय है अतः हमारे पिता श्री भागवत रूपी अमृत ज्ञान की शिक्षा हमें प्रदान की है उसे हम सुनते हैं जिस तरह हम सांसारिक प्राणियों माया मोह के चक्र में पढ़कर अति क्लेश एवं दुख के भागी बनते हैं उस तरह प्रभु बंशीधर किसी माया के वशीभूत नहीं होते किंतु अपनी माया से हर प्राणियों को न जाते हैं और अज्ञान व प्राणी वही करता है जिसे प्रभु कराना चाहते हैं जबकि यह सत्य है कि आत्मा में परमात्मा का निवास रहता है किंतु सांसारिक जीवन जिसे पा सकने में सदैव असमर्थ रहता है अज्ञानता का अवतरण ही उसके समस्त दुखों का कारण है यदि मनुष्य निष्काम भाव से प्रभु का ध्यान करें उसके चरणों से अपनी प्रति बढ़ाते तो नीचे रूप से वह परमात्मा में लीन हो जाएगा तब भी दूर जी नम्रता पूर्वक बोले हैं मैथिली जी आप की दया से मेरे मन का कलेश मिट गया आपके ज्ञान रूपी भोजन कराने से मेरे समक्ष में आ गया अब मुझे ज्ञात हो गया कि माया उस स्वप्न के समान जो रात्रि काल में निद्रा अवस्था के समय दिखाई देता और प्रातः आंखें खुलते ही असली अता मालूम हो जाती है कि यह सब झूठ है है सत्य रूप भगवान का दर्शन है बाकी सब मिथ्या किंतु है मैथिली जी अब तक आपने हमें जो कुछ भी बताया उन में प्रभु के उन चरणों का वर्णन कहीं नहीं है जब सृष्टि की रचना के समय प्रभु विराट रूप में विद्यमान थे उनके शास्त्रों सिरों सहस्त्र पैरों एवं भुजाएं समस्त भू लोगों से लेकर आकाश एवं पताल लोक दृष्टिगोचर होता है विश्वरूप का क्या अर्थ हुआ पशु पक्षी मानव एवं देवगढ़ की उत्पत्ति किस प्रकार से हुई रजोगुण सतोगुण एवं तमोगुण का अर्थ आप विस्तार पूर्वक समझाएं रजोगुण से ब्रह्मा सतोगुण से विष्णु एवं तमोगुण से भगवान शंकर का रूप धारण कर कौन से कार्य प्रभु द्वारा संपादित पूर्ण हुए दान धर्म एवं तब से क्या लाभ है प्रभु की प्राप्ति किस प्रकार की होती है पर लेके कितने रूप हैं तथा यह भी बताने की कृपा करें कि पर ले के पश्चात प्रभु के साथ कौन-कौन से तत्व रहते हैं

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Shrimad Bhagwat Katha Purana seventh chapter begins

Glorifying the glory of the Lord by Maithili ji Maithili ji said, O Mahatma Vidur, you have been a wise meditator and devotees of the Lord, since your childhood, you have been residing in the mind of the Lord, what is hidden from you then? Even if you ask me, this is your nobility, my knowledge, as far as I have come to know the Lord, I describe that diamond to you, listening to which the worldly beings trapped in the web of illusion, may also be liberated. Get out of the way, O Vidur ji, you were honorable in humanity to fulfill the curse of Mandal Rishi, you are the true Dharmaraja, Lord Shri Krishna ji, the Leela-dhari who governs the entire creation, did not do any work without consulting you, you Lord He is very dear to us, so our father Shri Bhagwat has imparted to us the education of nectar knowledge, we listen to him, just as we become partakers of great distress and misery by studying in the cycle of illusion of worldly beings, in the same way Lord Banshidhar is not under any illusion. But he does not go to every living being with his illusion and today Knowledge and living beings do what the Lord wants them to do, whereas it is true that God resides in the soul, but the worldly life, which is always unable to be attained, the descent of ignorance is the cause of all his miseries, if a person is selfless in God. Let's meditate, if you increase yourself from his feet, then he will be absorbed in the divine from below, even then far away has said humbly, Maithili ji, due to your kindness, the pain in my mind has been erased, due to the food of your knowledge, I have come in front of me. Now I have come to know that Maya is like a dream that appears during the sleep state during the night and when the eyes are opened in the morning, the real identity is known that all this is a lie, the truth is the vision of God, everything else is false but is Maithili. Yes, whatever you have told us till now, there is no description of those feet of the Lord, when at the time of creation of the universe, the Lord was present in the form of a giant, His scriptures would have a thousand feet and arms visible from all the earth people to the sky and the world. What is the meaning of Vishwaroop, animal bird, human and the origin of Devgarh How did this happen, explain in detail the meaning of Rajogun, Satoguna and Tamogun, which of the works were completed by the Lord by taking the form of Lord Shankar from Rajogun, Brahma from Satoguna and Lord Shankar from Tamogun and what is the benefit of God since then? There are different types but how many forms are there and also please tell that what are the elements with the Lord after taking it. 


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