श्रीमद्भागवत पुराण कथा तृतीय स्कंध छठा अध्याय

श्रीमद् भागवत कथा छठवां अध्याय आरंभ

जीतू जी द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन पूछना श्री सुखदेव जी राजा परीक्षित को अमृत्तुल्य श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए बोले हे राजा ऋषि जिस समय महात्मा विदुर से विदा लेकर उद्धवजी चलने को तैयार हुए उस समय विदुर जी अति दिन होने लगे व्याकुलता ने उन्हें घेर लिया उनका मुख मंडल उदासीन से गिर गया यह देख उद्धव जी ने उन्हें बहुत तरह से समझाया तत्पश्चात मैथिली जी के पास जाने के लिए प्रेरणा दी उधर उद्धवजी बद्रिका आश्रम के लिए चले तो विदुर जी वहां ना रुक सके शो मैथिली जी से मिलने के लिए चल पड़े अन्य तीर्थों का भ्रमण करते हुए द्वारिका जा पहुंचे वहां जाकर प्रथम मैथिली जी से भेंट की उसकी विवाह देखकर मैथिली जी ने पूछा है ज्ञानी चक्षु विदुर जी आप इतने उदास और मालिक क्यों हो रहे हो मैथिली जी की बात सुनकर विदुर जी स्वयं को रोकना सकेत नेत्र सर्जन होने लगे और अत्यंत बी वाला उभर आए और बोले ऋषि राज जब से उद्धव जी ने मुझे बताया कि समस्त भूलोक पर अपनी लीला प्रगट करने के लिए अवतार लिए प्रभु श्री कृष्णा जी अंतर्ध्यान हो गए जिन्होंने अपनी माया से महाभारत कराया उनकी इच्छा हुई कि यदुवंशियों का नाश होना आवश्यक है तो उनकी माया के वशीभूत होकर यदुवंशी आपस में लड़ पड़े और अंत समय में आपने भेंट प्रभु से हुई प्रभु ने आप को ज्ञान का उपदेश देकर धन्य किया आते हो आप मुझ पर कृपा करके और प्रभु द्वारा दिए गए उपदेशों का रसपान कराएं यह सुनकर मैथिली जी अति प्रसन्न होकर बोले हैं विदुर जी आपके आगरा को डालने की सामर्थ मुझ में नहीं आता सुख निधान प्रभु श्री कृष्ण जी ने गोलोक प्रस्थान करते समय जो ज्ञान मुझे प्रदान किया उस ज्ञान को मैं तुम्हें सुनाऊंगा मिली जी के वचन सुनकर विदुर ने पूछा हे मैथिली जी सुख प्राप्त होने के लिए मनुष्य परिश्रम करता है किंतु फिर भी उसे दुख से मुक्ति नहीं मिलती अतः आप मुझे समझाएं कि उन्हें दुख कौन देता है एवं प्रभु श्री हरीश सद्गुण रूप में अवतार क्यों लेते हैं किस प्रयोजन से सृष्टि की रचना करते हैं और क्यों सृष्टि का नाश करते हैं मैं अपने अल्प ज्ञान से इतना ही समझा पाता हूं कि सांसारिक जीवन को भाव रूपी अर्थात सागर से पार उतरने के लिए एवं पापों का नाश कर धर्म की स्थापना हेतु सगुण रूप में अवतार लेते हैं जिसे युगों तक प्राणी उनके नाम का सुमिरन करें और प्रभु की कथा एवं प्रभु द्वारा प्रकट की गई लीलाओं का ध्यान कर अपनी मुक्ति पा लें यदि इतना जान कर भी प्रभु प्राणी संसार माया मोह में लिपटा रहे तो यह उसका अति दुर्भाग्य है इसमें भगवान श्री हरि का कोई दोष नहीं है मैथिली जी किस तरह प्रभु त्रिलोकीनाथ ब्रह्मा का रूप धारण कर शृष्टि का सृजन करते हैं विष्णु रूप में जियो का पालन करते हैं जिसमें प्राणी उन्हें पालनहार कहते हैं और प्रभु को प्रसन्न करने के कौन-कौन से उपाय हैं उनके प्रसन्न होने पर मानव रूपी प्राणी अपने समस्त मनोरथ पूर्ण कर मृत्यु पश्चात मुक्ति प्राप्त करता है और प्रभु के मन में जब सृष्टि का नाश करने की इच्छा होती है तो किस प्रकार शिव का रूप धारण कर संघ हार करते हैं हे मैथिली जी प्रभु की इन समस्त लीलाओं का वर्णन इस प्रकार कीजिए जिससे मुझे आप द्वारा दिया गया ज्ञान जन्म स्मरण तक याद रखें

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Shrimad Bhagwat Katha 6th Chapter Begins

Asking Jeetu ji the description of the origin of the universe, Shri Sukhdev ji, while giving King Parikshit the juice of the immortal Shrimad Bhagwat Katha, said, O King Rishi, at the time when Uddhavji got ready to leave Mahatma Vidur, at that time Vidur ji started getting distracted for many days. Seeing that his face fell indifferently, Uddhav ji explained to him in many ways, then inspired him to go to Maithili ji, while Uddhav ji left for Badrika ashram, Vidur ji could not stop there to meet Maithili ji. While visiting other pilgrimages, reached Dwarka, there he first met Maithili ji, seeing his marriage, Maithili ji has asked the wise eye Vidur ji, why are you being so sad and master, Vidur ji should stop himself after listening to Maithili ji. He began to become eye surgeons and a very powerful person emerged and said Rishi Raj, ever since Uddhav ji told me that Lord Shri Krishna ji incarnated to reveal his pastimes on all the earth, who incarnated in the incarnation, who made Mahabharata with his Maya, he wished. that the Yaduvanshis should be destroyed If it is possible, then the Yaduvanshis fought among themselves due to their illusion and in the end you met the Lord, the Lord blessed you by preaching knowledge, you come to me and make me drink the teachings given by the Lord. Maithili ji is very pleased and said, Vidur ji does not have the power to put your Agra in me Maithili ji, man works hard to get happiness, but still he does not get freedom from sorrow, so you explain to me who gives him sorrow and why Lord Shri Harish incarnates in the form of virtue, for what purpose he creates the world and Why destroy the universe, I am able to explain only this much with my meager knowledge that the worldly life is incarnated in the form of spirit, that is, to cross over the ocean and to destroy sins and establish religion, which for ages, beings incarnate in their name. Sumiran the story of the Lord and revealed by the Lord Get your salvation by meditating on the pastimes done, if even after knowing so much, the Lord being wrapped in the illusion of the world, then it is very unfortunate for him that there is no fault of Lord Shri Hari in this They follow the life in the form of Vishnu, in which beings call him the sustenance and what are the ways to please the Lord, on being pleased by him, the human form attains salvation after death by fulfilling all his desires and the Lord When there is a desire to destroy the world, how do you defeat the Sangh by taking the form of Shiva? 


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