श्रीमद् भागवत कथा पुराण तृतीय स्कंध तीसरा अध्याय
आरंभ
भगवान की अन्य लीलाओं का वर्णन उद्धव जी प्रभु की लीलाओं का वर्णन करते हुए विदुर जी से कहने लगे हे विदुर जी कंस ने प्रभु श्री कृष्ण जी को वालिया काल से ही मारने के लिए अनेक प्रपंच किया कई राक्षसों को भेजा फिर पूतना राक्षसी को भेजा वह अपने स्तन उच्च को 20 मई बनाकर सुंदर ब्राह्मण स्त्री का रूप धारण करके उन्हें दूध पिलाने के लिए गई जिससे कि 20 युवतियों को मुंह लगाने तेही उनके प्राण परखे उड़ जाए किंतु अंतर्यामी प्रभु सब कुछ जानते थे उसने कुछ भी छिपाया नहीं है सो उन्होंने दुग्ध पान तो किया किंतु स्वयं देना त्याग कर पूतना को मृत्यु के मुंह में डाल दिया अपनी इच्छा से उन्होंने देवकी की कोख से अवतार लिया और स्वयं आकाशवाणी करके बासुदेव को सचेत किया कि तुम मुझे नंद के घर पहुंचा दो नंद जी के घर प्रभु द्वारा की गई बाल लीला जग प्रसिद्ध हुए और अपनी लीलाओं द्वारा ब्रज वासियों को सुख प्रदान करते हुए कंस के भेजे हुए अनेक राक्षसों का वध किया एक बार प्रभु ने ब्रज वासियों से कहा आप लोग अन्याय ही इंद्र की पूजा करते हैं गोवर्धन जी पहाड़ हमारी रक्षा करते हैं वृष्टि अतिवृष्टि धूप एवं अन्य अपराधियों से बचाते हैं अतः हमें गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए ब्रजवासी प्रभु की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे जिसे देखकर इंद्रजीत अति कुपित हुए और में को आज्ञा दे कर बोले जाओ समस्त ब्रज को सागर में बहा दो में ने वैसा ही किया किंतु ब्रजवासी की करुणा पुकार सुनकर प्रभु के ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाकर व्रत की रक्षा की और अपना रूप दिखलाया और इंद्र के अभिमान को चूर किया अक्रूर जी के साथ जब उन्होंने मथुरा के लिए प्रस्थान किया तो राह मे यमुना जी में जल स्नान करते समय उन्हें अपना चतुर्भुज रूप दिखला कर उनके मन की व्यथा को दूर किया गुरुकुल में वेद अध्ययन करते समय अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त हो चुके संदीप संदीप बनी गुरु के पुत्र को यमपुरी से लाकर गुरु दक्षिणा अर्पित की जरा धन की 17 और सोनी सेनाओं को परास्त किया इस कम की बहन रुक्मणी को अनेक राजाओं को पारंगत करते हुए हर लाया जामवंत को जीतकर उसकी अति स्वर स्वरूप वाले पुत्री जामवंत को अपने पट नारी बनाया वो माशूर को मारकर 16 सहस्त्र एक सौ कन्याओं से विवाह कर उसके धर्म की रक्षा की नागदा जी ट को स्वयंवर मैं जीत कर वरण किया महाभारत में बिना वस्त्र के रहे किंतु अपनी माया से अर्जुन द्वारा अट्ठारह अवश्य योनियों सेना का संघार कराया आता है विदुर जी प्रभु एक है उसकी माया अनेक है जड़ से लेकर जून तक में उन्हें का वास है प्रभु लीलाधारी की लीलाएं अनंत है
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Shrimad Bhagwat Katha Purana Third Skandha Third Chapter
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