श्रीमद् भागवत कथा पुराण का तृतीय स्कंध का दूसरा अध्याय आरंभ
उधारी के मुखर बिंदु से श्री कृष्ण लीला का वर्णन उद्धव जी से अत्यंत प्रति पूर्वक मिलने के पश्चात विदुर जी से पूछा आप तो आठ पर प्रभु के साथ रहते थे उद्धवजी किंतु क्या कारण है आज आप अकेले विचरण कर रहे हैं प्रभु बासुदेव बलदाऊ भैया अग्नि रूद्र प्रदुमन आदि सब यादव के साथ कुशल पूर्वक तो हैं युधिष्ठिर एवं अन्य भाइयों सहित कुंती एवं द्रोपति कुशल से तो हैं इतना मैं जानता हूं कि प्रभु श्री कृष्णा ने पृथ्वी का भार उतारने के लिए मानव रूप में अवतार लिया है और अपनी माया फैलाकर दृष्ट राष्ट्र एवं उनकी अधर्मी पुत्रों को बुद्धिहीन कर दिया इसलिए हेयुत्त उद्धव आप केवल प्रभु नंद नंदन का हाल मुझे बताने की कृपा करें विदुर के वचन सुनकर अन्याय ही उद्धव के आंखों में आंसू भर आए गला रूंध गया बहुत प्रयत्न करने के पश्चात भी बोलना पा रहे थे विदुर जी ने उनके उदास मुख मंडल एवं आसपुर अतीत नेत्रों को देखा और समझ गए कि भक्तवत्सल पृथ्वी का भार उतारने हेतु आपने धारण किया अवतार के कर्तव्य को पूरा करके गोलोक के लिए प्रस्थान कर गए फिर भी उद्धव के बोलने की प्रतीक्षा करते रहे कुछ पल बिताने के पश्चात उद्धवजी भाव b1 होकर बोले हे विदुर जी आप प्रभु वासुदेव का हाल पूछते हो ज्योतिष रूपी सूर्य पंचमी दिशा में जाकर अस्त हो गया प्रभु हमें अकेला छोड़ कर चले गए प्रभु ने जन्म लिया था आपसे माता पृथ्वी का बोध उतारने के लिए और आपने बाल्यकाल से ही राक्षसों एवं अन्य पापियों का संघार करते रहे कौन उतना का संघार एवं बात सूर्य का शो तथा तांगा सूर जैसे राक्षसों का वध करके अपने बाल लीला प्रस्तुत की पश्चात उसके तरुण अवस्था में महाभारत का विनाशकारी युद्ध कर आया सब उन्हीं की माया थी विदुर जी और अत्यंत में यदुवंशियों का नाश कर के लिए अति क्रोध कहा जाने वाले ऋषि दुर्वासा से यदुवंशियों को शराब दिलवा कर उन्हें आपस में लड़ा दिया जिससे यदुवंशियों का नाश हुआ तत्पश्चात स्वयं भूल लोग छोड़कर बैकुंठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए और जाते समय मुझे बद्री केदार ले जाकर बोले तुम मेरी चिंता मत करो यहां बद्री केदार में रहकर मेरी नाम का ध्यान करो तुम्हें अवश्य मुक्ति प्राप्त होगी एवं उस समय प्रभु ने मुझे अपनी कृपा प्रदान करके जो ज्ञान प्रदान किया उसका वर्णन श्रीमद्भागवत के 11 स्कंध में लिखा गया है तब से मैं उनके नाम का ध्यान कर रहा हूं प्रभु के नाम की माला जप रहा हूं
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The second chapter of the third wing of Shrimad Bhagwat Katha Purana begins
The description of Shri Krishna Leela from the vocal point of borrowing After meeting Uddhav ji very clearly, asked Vidur ji. Praduman etc. are well with all the Yadavas, along with Yudhishthira and other brothers, Kunti and Draupathi are in good condition, so much I know that Lord Krishna has incarnated in human form to take off the weight of the earth and spread his illusions to the visible nation and He made his ungodly sons foolish, therefore Heyut Uddhava, please only tell me the condition of Lord Nanda Nandan. Hearing Vidura's words, Uddhav's eyes were filled with tears and his throat was blocked, Vidur ji was able to speak even after trying a lot. He looked at his sad face and eyes past Aspur and understood that Bhaktavatsal left for Goloka after fulfilling the duty of the incarnation you assumed to take off the weight of the earth, still waiting for Uddhava to speak, after spending a few moments Uddhavji has said as b1 and Sir, you ask the condition of Lord Vasudev, the sun in the form of astrology has set in the fifth direction. Lord left us alone and left. Who kept doing so much struggle and talk, show of the sun and killing demons like Tanga Sur and presented his child Leela, after that, in his youth, he came in the destructive war of Mahabharata, all his illusion was Vidur ji and in extreme he destroyed the Yaduvanshis. For this reason, the sage Durvasa, who was said to be very angry, got the Yaduvanshis to get liquor and made them fight among themselves, due to which the Yaduvanshis were destroyed. Staying here in Badri Kedar, meditate on my name, you will surely get salvation and at that time the description of the knowledge that the Lord gave me by His grace has been written in the 11 skandhas of Shrimad Bhagwat, since then I am meditating on His name Lord name of garland am getting
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