श्रीमद्भागवत पुराण कथा द्वितीय स्कंध आरंभ

श्रीमद् भागवत कथा पुराण 23 इसका मन था आराम दसवां अध्याय

पांच तत्व का वर्णन एवं भागवत कथा के 10 रूप श्रीमद् भागवत महापुराण की 10 कथाओं का वर्णन करते हुए महात्मा सुखदेव जी बोले हे ज्ञानदीप राजा परीक्षित जगत की उत्पत्ति जगत का विनाश जगत का स्थिरता जीवो की रक्षा एवं पालन अति मन मन " ईशा कथा भक्ति एवं नवा कथा डील वीर वीर है नाउ कथाओं का श्रवण एवं ज्ञान पाना दसवी कथा का लक्षण है इस प्रकार श्रीमद्भागवत के 10 लक्षणों की गणना करते हुए उनकी महात्मा का वर्णन करते हुए श्री सुखदेव जी बोले शेषनाग की छाती पर शयन करके बोले श्री हरि नारायण का जब मन ना लगा तो उन्होंने अनेक रूप धारण किए और माया को आज्ञा दी कि तुम स्वर्ग लोग मृत्यु लोग एवं पाताल लोक का निर्माण करो प्रभु की आज्ञा पाकर माया मोहनी ने वैसा ही किया और प्रभु ने प्राणियों को तीन प्रकार के गुण प्रदान किए रजोगुण से हाथ पांव लिंबुदा नाथ एवं तमोगुण से पृथ्वी आकाश वायु जल एवं अग्नि तथा सतोगुण जिससे सविता के रूप में प्रभु ने प्रकट किया सतोगुण से शब्द स्वाद सुनने की शक्ति एवं बुद्धि प्राणी तन में निहित हुए टंकी दसों इंद्रियों को देवता का रूप प्रदान किया मुख में अग्नि देव कान में दिशा नाक में अश्वनी कुमार जी हां में वरुण देव आंख में सूर्य भुजाओं में शक्ति के परिचायक इंद्र देव गुदा में यम लिंग में मित्र वरुण पांव में विष्णु जी तथा बुद्धि में ब्रह्मा जी का निवास सदैव रहता है तब देवताओं में बहुत प्रयत्न किया कि इस मूर्ति में हंसने बोलने एवं चलने फिरने की सामर्थ प्राप्त हो जाए परंतु असफल रहे मानव रूप निर्मित मूर्ति में प्राण वायु तो थी ही नहीं फिर मूर्ति चलती फिरती कैसे तब सभी देवताओं ने श्री नारायण का ध्यान किया है ब्रह्मा हे सृष्टि के रचनाकार हे आशा आशा के सहायक प्रभु आपकी इच्छा के बिना हम सभी एक साथ मिलकर भी कुछ नहीं है स्वर शक्तिमान तो आप हैं जगतपिता तब आदि अनंत रूप प्रभु ने उनकी  मूर्ति में अपना एक छोटा सा अंश प्रवेश कराकर मूर्ति को उठाने का आदेश किया तक्षण मूर्ति उठ खड़ी हुई प्रभु का थोड़ा सा अंश प्राप्त होते ही उसमें चलने फिरने हंसने बोलने की शामत आ गई समस्त देवता गण जो मानव रूप ढांचे में अलग-अलग स्थानों पर विराजमान थे उनमें कार्य करने की क्षमता आ गई अतः हे राजन श्री सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को संबोधित करके कहा मानव के प्रत्येक अंग पर देवता विद्यमान होते हैं किंतु वह भी प्रभु के अधीन होते हैं नारायण की कृपा के बिना देवता गण भी मृतक के समान है जो प्रभु की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है उनकी कृपा से मनुष्य भवसागर पार हो जाता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Shrimad Bhagwat Katha Purana 23 Its mind was rest tenth chapter

Describing the five elements and 10 forms of the Bhagwat story, while describing the 10 stories of Shrimad Bhagwat Mahapuran, Mahatma Sukhdev ji said, O King of Knowledge, the origin of the world, the destruction of the world, the stability of the world, the protection and upbringing of the living beings, "Isha Katha, devotion and Nav Katha Deal Veer Veer Hai Now listening to the stories and gaining knowledge is a symptom of the tenth story, thus enumerating the 10 signs of Shrimad Bhagwat, while describing his Mahatma, Shri Sukhdev ji said after sleeping on Sheshnag's chest and said to Shri Hari Narayan. If she did not feel like it, she assumed many forms and ordered Maya that you should create the people of heaven, death people and Hades, after getting the permission of the Lord, Maya Mohani did the same and the Lord gave three types of qualities to the living beings. From feet Limbuda Nath and Tamogun, earth, sky, air, water and fire, and Satoguna, from which in the form of Savita, the Lord manifested the power of hearing, taste and intellect from Satoguna, the tank contained in the creature's body, gave the form of a deity to the ten senses. Direction in ear, in nose Ashwani Kumar ji Yes, Varun Dev, Sun in the eyes, represents power in the arms, Indra Dev in the anus, Yama in the anus, Vishnu ji in his feet and Brahma ji in his intellect always resides in the anus. That the power is achieved but failed, there was no life air in the man-made idol, then how did the idol move, then all the gods have meditated on Shri Narayan, Brahma, the creator of the universe, O hope, the helper of hope, God without your wish. All together there is nothing even if the voice is powerful, then you are the father of the world, then the Adi Anant Prabhu, entering a small part of himself in his idol, ordered to lift the idol. The ability to work has come, all the deities who were sitting at different places in the human form structure, therefore, O king, Shri Sukhdev Ji addressed King Parikshit and said that the deity is present on every part of the human being. but that too under the Lord It happens that without the grace of Narayan, the deities are also like the dead, which is the best devotion to the Lord, by his grace man crosses the ocean of the universe. 


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